सम्पादकीय

चेहरा फ्रिंज नहीं होता

Gulabi Jagat
7 Jun 2022 6:16 AM GMT
चेहरा फ्रिंज नहीं होता
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भाजपा समर्थकों के एक बड़े हिस्से को यह समझना मुश्किल हो गया है कि
By NI Editorial
भाजपा समर्थकों के एक बड़े हिस्से को यह समझना मुश्किल हो गया है कि अचानक भाजपा ने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ टिप्पणियां करने वाले उन दो प्रवक्ताओं को पार्टी से क्यों निलंबित कर दिया?
नुपूर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल भारतीय जनता पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ता के बतौर मीडिया से रू-ब-रू होते थे। इसलिए भाजपा की ये बात किसी के गले नहीं उतरेगी, तो उन्होंने जो कहा वह फ्रिंज (जो मुख्यधारा नहीं है) की राय है। प्रवक्ता पार्टी या संगठन का चेहरा होते हैँ। इस बात से पार्टी का सर्वोच्च नेतृत्व भी वाकिफ होगा कि शर्मा और जिंदल ने जो कहा, वैसी बातें भाजपा और उसके सहमना संगठनों की सोच की मुख्यधारा बनती गई हैं। दरअसल, पार्टी की सफलता यह है कि ऐसी बातों की उसने हिंदू समाज के एक बड़े हिस्से में स्वीकृति बना दी है। नतीजा है कि आम शासन के तमाम मोर्चों पर भाजपा सरकारों की नाकामियों के बावजूद उसका समर्थन आधार बीते आठ साल में मजबूत होता गया है। इसी समर्थन आधार से भाजपा को वो ताकत मिली है, जिसकी बदौलत उसने भारतीय राज्य-व्यवस्था का स्वरूप ही बदल दिया है। बहरहाल, चूंकि ये मुख्यधारा पार्टी नेतृत्व की प्रत्यक्ष या परोक्ष सहमति बनी है, इसीलिए इस समर्थन आधार के एक बड़े हिस्से को रविवार को यह समझना मुश्किल हो गया कि अचानक भाजपा ने 'सभी धर्मों का सम्मान करने' की घोषणा क्यों की और पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ टिप्पणियां करने वाले उन दो प्रवक्ताओं को पार्टी से क्यों निलंबित कर दिया गया?
उनके लिए यह गले उतरना और भी मुश्किल है कि ऐसा कुछ 'छोटे' मुस्लिम देशों की आपत्ति के कारण किया गया। इस रूप में यह उनमें से अनेक को कुछ-कुछ लाल कृष्ण आडवाणी के मीनार-ए-पाकिस्तान पर जाकर मोहम्मद अली जिन्ना को श्रद्धांजलि देने जैसा क्षण महसूस हुआ। यह मानना किसी के लिए मुश्किल है कि खाड़ी की इस्लामी राजशाहियां सचमुच दुनिया भर के मुसलमानों या इस्लाम धर्म की चिंता करती हैँ। उन्होंने शर्मा और जिंदल की बातों की बातों पर इतनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की, तो उसकी वजह भारत की स्थितियों पर वहां की जनता में बनी मनोदशा है। इसे नजरअंदाज करना उनके लिए आगे भी कठिन नहीं होगा। तो भारत सरकार को चुनना है कि वह उनकी नाराजगी को पहले जैसा ही ठुकरा दे, या फिर कुछ सुधार के कदम उठाए। उसने सुधार का एक कमजोर, लेकिन दिखावटी कदम उठाया है। इससे सूरत बदलेगी, इसकी कोई संभावना नहीं है।
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