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- जंग में नजर तंग
तवलीन सिंह: शुरू करती हूं यह लेख स्पष्ट करके कि मुझे समझ में नहीं आता है कि व्लादिमीर पुतिन ने क्या सोच कर यूक्रेन पर हमला किया। जो लोग मुझसे इसके बारे में बेहतर जानते हैं और जो दुनिया के जाने-माने विदेश नीति के पंडित माने जाते हैं उनका कहना है कि पुतिन थोड़ा-सा पगला गए हैं। कहते हैं कि पिछले दो सालों में कोरोना के डर के मारे वे बहुत कम लोगों से मिले हैं और जिन मुट्ठी भर लोगों से मिले हैं वे सब उनकी तरह पुराने केजीबी के जासूस हुआ करते थे, उस समय जब शीत युद्ध चरम सीमा पर था और परमाणु विश्व युद्ध का भयानक साया हमेशा मंडराया करता था। सुरक्षा और विदेश नीति के ये विशेषज्ञ कहते हैं कि अपने इन पुराने साथियों के साथ बैठ कर पुतिन ने यूक्रेन पर कब्जा करने की योजना बनाई थी।
विदेश नीति के विशेषज्ञों का एक दूसरा खेमा मानता है कि पुतिन कभी नहीं स्वीकार कर पाए हैं कि सोवियत संघ अब टूट कर बिखर गया है और उस विशाल कम्युनिस्ट साम्राज्य की जो शान थी उसको दोबारा जिंदा करने का सपना आज भी देख रहा है रूस का यह तानाशाह। पिछले कुछ सालों में पुतिन ने उन सब छोटे देशों को वापस रूस के कब्जे में लाने की कोशिशें की हैं।
यूक्रेन पर यह पहला हमला नहीं है। पहला हमला 2014 में हुआ था, जिसके बाद क्रीमिया को यूक्रेन से अलग करके रूस के राजनीतिक और आर्थिक दायरे में वापस लाया गया। उस समय पश्चिमी देशों ने कुछ नहीं किया, तो शायद सोचा होगा पुतिन ने कि इस बार भी उसको कोई रोकने वाला नहीं होगा। यथार्थ यह भी है कि जर्मनी और इटली जैसे देश रूस के तेल और गैस पर काफी निर्भर हैं।
सो, फिर से यूक्रेन को हथियाने का प्रयास किया है पुतिन ने। नतीजा यह कि इस युद्ध के पहले दिनों का हिसाब यह है कि कम से कम दस लाख लोग अपने घरों से भाग कर शरणार्थी बन गए हैं, कुछ यूक्रेन के अंदर बेहाल और बेघर हैं, कुछ जो अपने देश की सीमाएं पार करके पड़ोसी देशों में शरण ले रहे हैं। पिछले हफ्ते में यूक्रेन के कई बड़े शहरों पर रूस ने इतनी बमबारी की है कि जीते-जागते रिहायशी इलाके खंडहर हो चुके हैं और हर तरफ तबाही मच गई है। ऐसा हुआ है इसलिए कि यूक्रेन ने चुप करके अपने हथियार नहीं डाले रूसी सेना के आगे।
निजी तौर पर मेरा रूस से रिश्ता इतना ही है कि एक बार मैं पूर्व सोवियत संघ गई थी, जब विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री थे और मैं उन पत्रकारों में थी, जो उनके साथ सोवियत संघ गए थे। यह वह समय था, जब बर्लिन की दीवार गिराई गई थी मिखाइल गोर्बाच्येव की रजामंदी से उनके ग्लास्नोस्त और पेरेस्त्रोईका नाम के सुधारों के तहत।
जब दीवार गिरी तो दिखा कि पूर्वी जर्मनी, जो सोवियत संघ के कब्जे में था, इतना पिछड़ा और गरीब था कि बुनियादी चीजें भी मुश्किल से मिलती थीं। मास्को हम गए थे एअर इंडिया के विशेष विमान से और वहां उतरने से पहले एयर इंडिया के कर्मचारियों ने हमको कई सारी छोटी विस्की की बोतलें और चाकलेट और चीज के डिब्बे दिए, यह कह कर कि मास्को में काम आएंगे। इसका सच तब पता चला हमें, जब होटल रोस्सिया में हमने पाया कि सुबह की चाय भी तभी मिलती थी जब हम अपने तोहफों का सौदा करते थे उस मोटी महिला के साथ, जो हमारे कमरों के बाहर एक पहरेदार की तरह बैठी रहती थी दिन रात।
रोस्सिया होटल बिलकुल एक विशाल जेल की तरह दिखता था। कमरे इतने छोटे थे कि जैसे कैदियों के लिए बने हों। याद है मुझे कि कमरे के अंदर सुविधाएं कोई नहीं थीं बाथरूम में एक देसी हमाम साबुन के अलावा। अगले दिन जब घूमने निकले तो देखा कि मास्को की दुकानें बिलकुल खाली थीं और एक भय की चादर बिछी हुई थी सारे शहर पर। आम रूसी लोग हमारे पास आते थे अमेरिकी डालर मांगने।
दूसरी बार मास्को गई मैं 2019 में और जहां रोस्सिया होटल कभी था वहां अब आलीशान होटल है और चमकते शापिंग माल, जहां वे सारी चीजें मिलती हैं जो लंदन, पेरिस और न्यूयार्क की दुकानों में मिलती हैं। आलीशान रेस्तरां हैं मास्को में अब और विदेशी पर्यटक लाखों की तादाद में दिखते हैं। यह परिवर्तन आया है पुतिन के बाईस साल लंबे शासनकाल में।
सो, ऐसा नहीं है कि आर्थिक तौर पर रूस में विशाल परिवर्तन पुतिन ने न लाया हो, लेकिन ऐसा जरूर है कि राजनीतिक आजादी बिलकुल नहीं है। पुतिन के खिलाफ जो आवाज उठाता है, वह या तो मारा जाता है या जेल में सड़ता है कई-कई साल। पुतिन ने उन अति-अमीर ओलिगारकों को भी नहीं बख्शा है, जो फले-फूले हैं उसके दौर में।
यूक्रेन चाहता है असली लोकतंत्र, जो रूस में नहीं है। सो, धीरे-धीरे पास आता रहा है उन पश्चिमी देशों के, जहां राजनीतिक आजादी है और आर्थिक भी। नतीजा यह कि जहां पुतिन का रूस अटका रहा है उस पुरानी, तानाशाही नीतियों की उलझनों में, जिन्होंने सोवियत संघ को डुबोया था, यूक्रेन उससे आगे निकल गया है। यही बात है यूक्रेन की जो पुतिन को बर्दाश्त नहीं है, क्योंकि तानाशाह कभी नहीं चाहते हैं कि उनके आसपास आजाद, खुशहाल देश हों। तो क्या यही सबसे बड़ा कारण था पुतिन के आक्रमण का?
युद्ध शुरू होने से पहले कई जाने-माने विशेषज्ञों से यह सवाल किया दुनिया के जानेमाने टीवी पत्रकारों ने और अक्सर इन सबका एक ही जवाब था: इस प्रश्न का उत्तर एक ही आदमी जानता है और वह है पुतिन। आज यूक्रेन का भविष्य भी सिर्फ पुतिन को पता है।