सम्पादकीय

तेलंगाना पर नजर

Subhi
4 July 2022 3:08 AM GMT
तेलंगाना पर नजर
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बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की हैदराबाद में हुई दो दिवसीय बैठक इस मामले में कामयाब कही जा सकती है कि इसके जरिए पार्टी जो संदेश देना चाहती थी, वह सभी संबद्ध पक्षों तक काफी हद तक प्रभावी ढंग से पहुंच गया।

नवभारत टाइम्स: बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की हैदराबाद में हुई दो दिवसीय बैठक इस मामले में कामयाब कही जा सकती है कि इसके जरिए पार्टी जो संदेश देना चाहती थी, वह सभी संबद्ध पक्षों तक काफी हद तक प्रभावी ढंग से पहुंच गया। पांच वर्षों में यह पहला मौका था जब पार्टी के इस सर्वोच्च निकाय की फिजिकल मीटिंग दिल्ली के बाहर बुलाई गई। इसके लिए हैदराबाद को चुनना राजनीतिक तौर पर खासा अहम था। अगले राउंड में अपने विस्तार के लिहाज से पार्टी की नजर दक्षिण भारत पर है। यहां कर्नाटक के बाद बीजेपी अब तेलंगाना में आधार मजबूत करना चाहती है, जहां अभी टीआरएस की सरकार है। टीआरएस के प्रमुख और तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर इस बात को अच्छी तरह समझ रहे थे। इसका संकेत उन्होंने इस रूप में दिया कि इस मीटिंग के लिए हैदराबाद आ रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रिसीव करने अपने मंत्री को भेजा जबकि विपक्ष के राष्ट्रपति पद प्रत्याशी यशवंत सिन्हा को खुद एयरपोर्ट जाकर रिसीव किया। साफ है कि अगले साल विधानसभा चुनाव पर दोनों पक्षों की नजर है और अपने तईं दोनों पोजिशनिंग में लगे हुए हैं। बहरहाल, इन राजनीतिक संकेतों से अलग पार्टी की अपनी रणनीति को देखें तो उसके राजनीतिक प्रस्ताव में गुजरात दंगों के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिली क्लीन चिट का प्रमुखता से उल्लेख बताता है कि पार्टी इसे भी भविष्य में होने जा रहे चुनाव में मुद्दा बना सकती है।

मोदी की लोकप्रियता के मद्देनजर पार्टी के लिए आम लोगों की सहानुभूति पाने का यह कारगर तरीका हो सकता है। इसी तरह क्षेत्रीय दलों के संदर्भ में परिवारवाद की राजनीति पर पार्टी का जोर देना भी काफी महत्वपूर्ण है। महाराष्ट्र का ठाकरे परिवार कुछ समय पहले तक भले बीजेपी के साथ खड़ा नजर आता हो, पिछले ढाई साल से यह उसके निशाने पर था और अब सरकार बदलने के बाद तो बीजेपी खुलकर उस परिवारवाद का विरोध कर रही है। ऐसे ही पंजाब में अकाली दल से भी उसके संबंध टूट चुके हैं। बिहार में लालू की आरजेडी और यूपी में अखिलेश की एसपी ही नहीं तेलंगाना में केसीआर की टीआरएस, तमिलनाडु में स्टालिन की डीएमके और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी- इन सबको वह इस एक तीर से निशाने पर ले सकती है। मगर राजनीतिक तौर पर बीजेपी पहले से सुविधाजनक स्थिति में है। यह बात चुनाव परिणामों से भी लगातार साबित होती रही है। सत्तारूढ़ पार्टी के नाते उसकी मुख्य चुनौती सुशासन की लोगों की उम्मीद पूरी करने की है। आर्थिक मोर्चे पर लोगों को राहत मिले और समाज में शांति व सौहार्द कायम रहे यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार के साथ-साथ सत्तारूढ़ दल की भी बनती है। आने वाले दिनों में उसकी सफलता मुख्यत: इन्हीं दोनों कसौटियों पर नापी जानी हैं।


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