- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- बचत पर टेढ़ी नजर
Written by जनसत्ता: केंद्र सरकार अगर गरीबों को मुफ्त का अन्न धन बांट सकती है, तो जो लोग मेहनत कर अपनी कमाई का कुछ हिस्सा बचा कर अपना भविष्य सुरक्षित रखने के लिए किसी बचत योजना में धनराशि जमा करते हैं, तो सरकार उस पर मिलने वाली मामूली ब्याज दरों पर भी क्यों टेढ़ी नजर रखती है? केंद्र सरकार ने ईपीएफ की ब्याज दर में कटौती कर करोड़ों लोगों को झटका दे दिया। यह ब्याज दर पिछले लगभग चालीस वर्षों में सबसे कम है। सरकार ने ईपीएफ की ब्याज दर 8.5 फीसद से घटा कर 8.1 फीसद कर दिया है।
हमारे देश में सबको सरकारी नौकरी देना सरकार के वश की बात नहीं है। इस कारण हमारे देश में करोड़ों लोग निजी क्षेत्र में नौकरी करते हैं। सरकार को उन सभी कंपनियों, कारखानों और अन्य संस्थाओं की आर्थिक सहायता करनी चाहिए और करों में रियायत देनी चाहिए, जिन्होंने अपने यहां बेरोजगार युवाओं को नौकरी दी है। सरकार को निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए विभिन्न योजनाओं को अमल में लाना चाहिए, न कि ईपीएफओ की ब्याज दर में कटौती करके इन्हें आर्थिक नुकसान पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए। अगर सरकार इस पर ही टेढ़ी नजर रखेगी, तो सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती मंहगाई में निजी क्षेत्र में नौकरी करने वाले लोग कैसे निर्वाह करेंगे बुढ़ापे में?
केंद्र सरकार अगर गरीबों को मुफ्त का अन्न धन बांट सकती है, तो जो लोग मेहनत कर अपनी कमाई का कुछ हिस्सा बचा कर अपना भविष्य सुरक्षित रखने के लिए किसी बचत योजना में धनराशि जमा करते हैं, तो सरकार उस पर मिलने वाली मामूली ब्याज दरों पर भी क्यों टेढ़ी नजर रखती है? केंद्र सरकार ने ईपीएफ की ब्याज दर में कटौती कर करोड़ों लोगों को झटका दे दिया।
यह ब्याज दर पिछले लगभग चालीस वर्षों में सबसे कम है। सरकार ने ईपीएफ की ब्याज दर 8.5 फीसद से घटा कर 8.1 फीसद कर दिया है। हमारे देश में सबको सरकारी नौकरी देना सरकार के वश की बात नहीं है। इस कारण हमारे देश में करोड़ों लोग निजी क्षेत्र में नौकरी करते हैं। सरकार को उन सभी कंपनियों, कारखानों और अन्य संस्थाओं की आर्थिक सहायता करनी चाहिए और करों में रियायत देनी चाहिए, जिन्होंने अपने यहां बेरोजगार युवाओं को नौकरी दी है।
सरकार को निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए विभिन्न योजनाओं को अमल में लाना चाहिए, न कि ईपीएफओ की ब्याज दर में कटौती करके इन्हें आर्थिक नुकसान पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए। अगर सरकार इस पर ही टेढ़ी नजर रखेगी, तो सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती मंहगाई में निजी क्षेत्र में नौकरी करने वाले लोग कैसे निर्वाह करेंगे बुढ़ापे में?