- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- अतिवादी प्रतिकार
Written by जनसत्ता; अफगानिस्तान में एक गुरुद्वारे पर हमला कर इस्लामिक स्टेट ने एक बार फिर अपनी संकीर्ण सोच उजागर की है। शनिवार को काबुल के एक गुरुद्वारे पर हमला हुआ, जिसमें सिख समुदाय के एक व्यक्ति सहित दो लोगों की मौत हो गई। इस हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली है। उसने कहा है कि यह हमला कुछ दिनों पहले भारत में पैगंबर को लेकर की गई विवादित टिप्पणी की प्रतिक्रिया में किया गया है। हालांकि अफगानिस्तान सरकार सहित विभिन्न देशों ने इस घटना की निंदा की है। संयुक्त राष्ट्र ने भी तल्ख टिप्पणी की है।
इस्लामिक स्टेट ने कुछ दिनों पहले ही ऐसे हमले की चेतावनी दे दी थी। फिर भी वहां की सरकार इसे रोक पाने में कैसे नाकाम रही। पिछले तीन-चार सालों में अफगानिस्तान में हिंदू और सिख उपासना स्थलों पर कई बड़े हमले हुए हैं। पिछले साल अगस्त में वहां तालिबान सरकार बनने के बाद ऐसे हमलों में तेजी आई है। अगर सचमुच तालिबान सरकार दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णु होती, तो ऐसे हमले नहीं हो पाते। तालिबान और इस्लामिक स्टेट के सैद्धांतिक आधार समान हैं, इसलिए आइएसआइएस को वहां अपने पांव फैलाने में ज्यादा सहूलियत हुई है। जब अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हुआ था, तभी आशंका जताई जाने लगी थी कि हिंदू और सिख समुदाय के लोगों को ऐसी हिंसा का सामना करना पड़ सकता है। वही हुआ।
ताजा घटना के बाद भारत सरकार ने सौ से अधिक अफगान सिखों और हिंदुओं को इलेक्ट्रानिक वीजा जारी किया है। मगर अब भी वहां जो बचे हैं, उन्हें इस तरह के हमले की आशंका में दिन गुजारने होंगे। तालिबान के कब्जे के समय ही बहुत सारे अफगान सिख और हिंदू भारत लौटना चाहते थे। वहां रह रहे भारतीय मूल के बहुत सारे लोगों को तो वहां से निकाल लिया गया, मगर अफगान मूल के लोगों को निकालने की प्रक्रिया में तेजी नहीं लाई गई।
हालांकि वहां बड़ी तादाद में अफगान सिख और हिंदू सदियों से रह रहे हैं, वहां उनके कारोबार, घर-बार हैं। उन्हें छोड़ कर आना आसान काम नहीं है। उन्हें लग रहा था कि तालिबान सरकार के साथ भारत के रिश्ते मधुर बनेंगे, तो उन पर हमले की आशंका नहीं रहेगी। इसलिए कि अफगानिस्तान में भारत की अनेक विकास परियोजनाएं चल रही थीं। भारत ने इमदाद में रसद और दवाएं वगैरह भी पहुंचार्इं। मगर धार्मिक कट््टरता मानवीय तकाजों को भला कहां देखती है!