सम्पादकीय

परमादरणीय इंटरनेट के लती

Rani Sahu
18 July 2023 7:06 PM GMT
परमादरणीय इंटरनेट के लती
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जबसे गूगल जी महाराज आया है, जीव को कुछ भी याद करने की जरूरत नहीं रही। इसलिए वे भी सुबह सुबह स्वास्थ्य खराब को सैर पर निकलते तो हैं पर हाथ में अपना मोबाइल लिए उस पर हनुमान चालीसा लगाए। वे हर समय ऑन रहें या न, पर उनके मोबाइल का नेट हरदम ऑन रहता है। वे सैर को जाते वक्त अपने साथ अपनी टांगें ले जाना भूल सकते हैं, पर मोबाइल नहीं। कुछ सुनते तो खैर अब वे कुछ भी नहीं। उन्हें और कुछ भी पसंद नहीं हनुमान चालीसा के अतिरिक्त। जब उनकी नई नई शादी हुई थी तब हर वक्त वे बीवी चालीसा सुना करते थे। पर कुछ दिन बाद हनुमान चालीसा सुनना शुरू कर दिया। वे कुत्तों से बहुत डरते हैं। सैर को निकले को क्या पता कब जैसे गली का कोई कुत्ता उनको काट डाले। वैसे गली का कोई कुत्ता उनको काटेगा, यह उनका मात्र वहम है। क्योंकि जितना वे गली के कुत्तों से डरते हैं, गली के कुत्ते उससे सौ गुणा अधिक उनसे डरते हैं। इसलिए बहुधा उनको सैर पर दूर से ही आते देख वे आंखें मूंदें अपना रास्ता बदल लेते हैं या उनको सेफ पैसेज देने में ही अपनी भलाई समझते हैं।
पर इसका मतलब यह कदापि न लिया जाए कि वे कुत्तों से भी अधिक खतरनाक हैं। वे बहुत ही शील स्वभाव किस्म के प्राणी हैं। वे बाजार जाते हैं तो अपनी आखों के सामने मोबाइल किए। हनुमान चालीसा लगाए। क्या पता बाजार में किस सब्जी का भाव उन्हें आतंकित कर दे? वे घर में रहते हैं तो अपनी आंखों के सामने हरदम मोबाइल का नेट ऑन किए रहते हैं। उनके मोबाइल पर तब हनुमान चालीसा चलता रहता है। क्या पता बीवी की ओर सेे कब क्या प्रहार हो जाए और हनुमान चालीसा उनकी रक्षा कर सके। कल वे सुबह की सैर करते करते बहुत आगे निकल गए। उन्होंने सोचा घर में भी जल्दी जाकर क्या करना। बीवी कहेगी, ‘जाओ! बाजार से शिमला मिर्च लेकर आओ। भरवा शिमला मिर्च बनानी है। उन्होंने अभी अभी जायकेदार शिमला मिर्च बनाने की रैसिपी यू ट्यूब पर देखी है।’ और आप तो जानते ही हैं कि इन दिनों शिमला मिर्च भी छूने लायक नहीं है। शिमला मिर्च लाल मिर्च से भी अधिक तीखी चल रही है। …कि अचानक उनके नेट का सिग्नल गायब हो गया।
नेट का सिग्नल गायब होते ही जनाब का फ्रेश एयर में भी दम घुटने लगा। लगा, ज्यों उनको हार्ट अटैक आ रहा हो। और वे वहीं बैठ गए। परेशानी में उन्हें पता ही न चला कि यह श्मशान घाट है या पार्क। कुछ देर बाद जब होश आया तो उन्होंने अपने सामने बेताल पाया। पर वे उसे पहचान नहीं पाए। उन्होंने सोचा उनकी तरह स्वास्थ्य लाभ लेने यहां दूसरा भी आया है। उसे तो वे तब पहचानते जो उनकी आंखें इन दिनों टमाटर, शिमला मिर्च से आगे भी कुछ देख पातीं। ‘बंधु! परेशान क्यों हो?’ बेताल ने उनके कंधे पर हाथ रखते उनसे पूछा। ‘इंटरनेट का सिग्नल नहीं मिल रहा’, कह वे श्मशान की परिक्रमा करने लगे ताकि कहीं तो वे कहीं जैसे तो नेट की रेंज में आ जाएं। तभी अचानक उनको वाईफाई का सिग्नल मिला। उनकी सांसें नार्मल हुईं। दिल ने सामान्य रूप से धडक़ना चालू किया। उन्होंने बेताल से पूछा, ‘भाई साहब! यहां वाईफाई है क्या?’ ‘जी हां बंधु!’ ‘तो उसका पासवर्ड क्या है?’ तब उनके चेहरे पर आई परम शांति देखने लायक थी, ‘श्मशान।’ ‘श्मशान का श स्मॉल या कैपिटल?’ यह सुन बेताल जोर का ठहाका धीरे से लगाया और गायब हो गया।
अशोक गौतम

By: divyahimachal

Rani Sahu

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