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साधो! दौर बाज़ारवाद का है। प्रतियोगिता गला काट है। कुछ भी खऱीदने पर कम से कम एक के एक साथ फ्री है। संभव है कि लॉचिंग से पहले ट्रायल के नाम पर जिओ सिम की तरह आपको कुछ फ्री मिल जाए। जहां प्रतियोगिता ज़्यादा है, वहां असुरक्षा की भावना अधिक होने से बाज़ार में एक्सट्रा टू एबी उपलब्ध है। विश्व के महान वैज्ञानिक, गणितज्ञ और भारत के परिधानमंत्री डंकेश द्वारा अपनी विश्वभ्रमण श्रृखंला के दौरान कनाडा में उपलब्ध करवाए गए फार्मूले के अनुसार ए प्लस बी स्केयर इनटू ब्रैकेट स्केयर निकालने पर ए स्केयर प्लस टू एबी प्लस बी स्केयर के साथ एक्स्ट्रा टू एबी मिलता है। नोटबंदी की सफलता को ध्यान में रखते हुए निकाला गया, इस फार्मूले का यह नायाब हल केवल उन्हीं की प्रयोगशाला में मुमकिन है। पर यह भी संभव है कि किसी दिन अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प इससे बेहतर हल के साथ दुनिया के सामने आ जाएं। विश्वगुरू ने पहले सवाल उठाया कि यह एक्स्ट्रा टू एबी आता कैसे है।
फिर उन्होंने समझाया कि भारत और कनाडा के विश्वास के साथ जुडऩे की ताक़त से एक्स्ट्रा एनर्जी के रूप में एक्सट्रा टू एबी मिलता है। पर वह उदाहरण देना भूल गए कि उनके और अंधभक्तों के पावन मिलन से भारत में झूठ फैलाने में जो मदद मिलती है, वह एक्स्ट्रा टू एबी का ही कमाल है। इस तरह एक्स्ट्रा झूठ फैलाने से देश को एक्स्ट्रा एनर्जी के रूप में बेरोजग़ारी, महंगाई, गरीबी, भ्रष्टाचार, पक्षपात और अखंड अशांति मिलती है। राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में परिधानमंत्री के इस फार्मूले को समझने पर पता चलता है कि यह एक्स्ट्रा टू एबी का ही कमाल है कि आज सदन सडक़ पर है और सडक़ सदन में। यह लोकतंत्र में निहित एक्स्ट्रा टू एबी का ही जलवा है कि सदन में मुर्गाछाप और सडक़छाप दोनों तरह के माननीय मौजूद हैं, जो सदन के भीतर मिली अनाप-शनाप बोलने की सुरक्षा की आड़ में आपस में मुर्गों या साँडों की तरह लड़ सकते हैं। कोई बलात्कारी माननीय होकर प्रधानमंत्री के पीछे बैठ कर खीसें निपोर सकता है, चिकन कॉर्नर चलाने वाला हरया-मन्या गैंग का मुखिया मंत्री होने के बाद सदन में किसी दूसरे माननीय से उसकी औकात पूछ सकता है, कोई टैक्सी चालक माननीय होने के बाद सदन में सडक़छाप भाषा का इस्तेमाल कर सकता है या खोमचा लगाने का दंभ भरने वाला देश का प्रधान सेवक होने का दावा कर सकता है। कोई दलाल फजऱ्ी डिग्रियाँ जुगाड़ते हुए मान्यता प्राप्त करने के बाद सत्ता की पींगें झूल सकता है।
सदन में मणिपुर अविश्वास प्रस्ताव पर कुतर्क करते हुए प्रधानमंत्री लोहड़ी माँगने के अन्दाज़ में चुनावी बोली डाल सकता है और एक्स्ट्रा टू एबी की चाह उनके माननीय उनके सुर में सुर मिलाते नजऱ आ सकते हैं। देशवासियों का भट्टीवाला दूल्हा उनकी बचत की कमाई से भरे गए बैंकों के धन को अपने दोस्त व्यापारियों की जेबों में एक्स्ट्रा टू एबी के रूप में जमा कर सकता है। चुनावों में एक्स्ट्रा टू एबी सीटों की चाह में यह लोहड़ी गायक महिला पहलवानों को बलात्कारी सासंद से छुड़ाने की बजाय उसके हवाले कर सकता है। विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पर परिधानमंत्री के भाषण का बायकॉट करने पर सत्ता पक्ष पूर्ण सात्विक भाव से विष्णु के ग्यारहवें अवतार का कीर्तन कर सकता है। लेकिन एक्स्ट्रा टू एबी की चाह में डूबा व्यक्ति हर बार सफल हो ज़रूरी नहीं। इधर, परिधानमंत्री की तरह संसदीय ज़ुबान में बड़ी-बड़ी हाँकने वाला आदिपुरुष फिल्म का डायलॉग लेखक मनोज शुक्ला कहां मुन्तशिर हुआ, ख़बर नहीं। उधर, युगपुरुष प्रधानमंत्री के अति वैज्ञानिक सुझाव पर कोरोना काल के दौरान दीवार पर चढक़र थालियाँ पीटने वाला और पत्रकार बनने की कोशिश में उनसे आम खाने के तरीके पूछने वाला दोहरी नागरिकता सम्पन्न अभिनेता अक्षय कुमार अपनी नई फिल्म रिलीज़ होने के बाद अब राष्ट्रवादियों के चाँटों से बचता भाग रहा है। इस एक्स्ट्रा टू एबी की चाह में लोग दिन के उजाले में भी उल्लू बने घूम रहे हैं, जबकि साधो! बक़ौल शौक़ बहराइची बर्बाद गुलिस्ताँ करने को एक ही उल्लू काफी है।
पीए सिद्धार्थ
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu
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