सम्पादकीय

लापरवाही की हद

Subhi
8 July 2021 3:08 AM GMT
लापरवाही की हद
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लोगों की लापरवाही को लेकर इन दिनों जिस तरह की तस्वीरें देखने को मिल रही हैं, वे हैरान करने वाली हैं।

लोगों की लापरवाही को लेकर इन दिनों जिस तरह की तस्वीरें देखने को मिल रही हैं, वे हैरान करने वाली हैं। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पर्यटन स्थलों पर भीड़ उमड़ रही है। हालत यह है कि शिमला, मनाली, मसूरी जैसी जगहों पर तो होटलों में जगह ही नहीं है। फिर भी लोग पहुंच रहे हैं। यहां के बाजारों से लेकर घूमने-फिरने के ठिकानों तक पर पैर रखने की जगह नहीं है। यही हाल दिल्ली और दूसरे शहरों के बाजारों का है जो लोगों से खचाखच भरे नजर आ रहे हैं। यह सब देख कर तो लगता है जैसे भारत में महामारी जैसा कभी कुछ रहा ही नहीं होगा।

लोगों में इस बात का भय ही नहीं है कि जरा-सी भी लापरवाही फिर से बड़े जोखिम में धकेल सकती है। पिछले एक महीने के दौरान दूसरी लहर का असर कम पड़ते देख देश के ज्यादातर हिस्सों में प्रतिबंधों में ढील दी जा चुकी है। बाजार, मॉल, रेस्टोरेंट, सिनेमाघर आदि खुल गए हैं। दिल्ली में तो शराबखाने भी देर रात तक खोल दिए गए हैं। यह ढिलाई इसलिए दी गई ताकि जनजीवन धीरे-धीरे बंदी की जकड़ से बाहर निकले और आर्थिक गतिविधियां भी रफ्तार पकड़ें। पर देखा जा रहा है कि जैसे ही बाजार खुले, सामान्य दिनों की तरह भीड़ बढ़ने लगी। यह स्थिति फिर से एक और लहर का कारण बन जाए तो ताज्जुब की बात नहीं। क्योंकि हम खुद ही फिर से संकट न्योता दे रहे हैं।

हकीकत तो यह है कि दूसरी लहर अभी खत्म नहीं हुई है। सिर्फ असर कम पड़ा है। संक्रमण के रोजाना मामले उतार पर हैं। मौतों का आंकड़ा भी कम हुआ है। लेकिन अब ज्यादा बड़ा खतरा डेल्टा प्लस जैसे विषाणु का खड़ा हो गया है। विशेषज्ञ इस बात का अंदेशा पहले ही जता चुके हैं कि डेल्टा प्लस तीसरी लहर का कारण बन सकता है। हालांकि तीसरी लहर को लेकर अभी निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह अगस्त-सितंबर में आ सकती है तो कुछ इसका वक्त अक्तूबर-नवंबर बता रहे हैं। लेकिन तीसरी लहर का अंदेशा जरूर बना हुआ है। और अगर तीसरी लहर आई तो इसकी सबसे बड़ी वजह बाजारों और पर्यटनों पर बढ़ती भीड़ ही कही जाएगी। पहले तो हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड ने दूसरे राज्यों से आने वाले लोगों की लिए आरटीपीसीआर जांच अनिवार्य कर रखी थी। लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया। इसी का नतीजा है कि लोग तेजी से पहाड़ी ठिकानों की ओर सैर के लिए निकल पड़े।

सवाल है कि हम सब कुछ जानते-बूझते भी आखिर ऐसा जोखिम क्यों उठा रहे हैं? इसमें कोई दो राय नहीं कि लंबे समय से घरों में बंद रहने से लोगों की मानसिक स्थिति पर गहरा असर पड़ा है। इसलिए अब वे बाहर निकलना चाह रहे हैं। पर अभी जान बचाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। महामारी से बचाव के लिए मास्क, बार-बार हाथ धोने और सुरक्षित दूरी बनाए रखना सबसे जरूरी उपाय माना गया था। लेकिन पर्यटन स्थलों से लेकर बाजारों में इन नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं। इस खतरे को देखते हुए ही दिल्ली में दो दिन के लिए एक बड़े बाजार को बंद करना पड़ा। भीड़ में कौन व्यक्ति संक्रमित है या कौन बिना लक्षणों वाला संक्रमित, किसको पता है? अब तक हमने देखा है कि जब-जब और जहां-जहां भीड़ बढ़ी है, वहां संक्रमण तेजी से फैला है। ऐसे में बेहतर है कि अभी हम बचाव पर ध्यान दें। वरना महामारी पर अब तक जितना भी काबू पाया है, उस पानी फिरने में देर नहीं लगेगी।


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