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बेशक पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) कानूनन आतंकवादी संगठन साबित न हुआ हो, लेकिन यह एक विवादास्पद और संदिग्ध संगठन जरूर है
By: divyahimachal
बेशक पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) कानूनन आतंकवादी संगठन साबित न हुआ हो, लेकिन यह एक विवादास्पद और संदिग्ध संगठन जरूर है। इसकी बुनियाद ही आतंकी है, क्योंकि जब सिमी पर पाबंदियां थोपी गई थीं, तो उसके ज्यादातर सदस्य पीएफआई में शामिल हो गए थे। पीएफआई की स्थापना 2007 में की गई थी और इसका मुख्यालय राजधानी दिल्ली के 'कालिंदी कुंज' में पंजीकृत है। देश के विभिन्न हिस्सों में दंगे हुए, हिंदू-मुस्लिम टकराव हुए, सीएए और एनआरसी के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किए गए, शाहीन बाग जैसे धरने दिए गए और ज्ञानवापी सरीखे सांप्रदायिक विवाद पनपे, उन सबके पीछे पीएफआई की मौजूदगी और रणनीति सामने आई है। लगातार यह मांग की जाती रही है कि सरकार पीएफआई पर पाबंदी चस्पा करे। संभव है कि सरकार भी मंथन कर रही हो और संगठन के खिलाफ साक्ष्य जुटाए जा रहे हों! पीएफआई के इस्लामी संबंधों और समर्थनों की जांच पुख्ता की जा रही हो, लेकिन अभी तक पीएफआई को प्रतिबंधित नहीं किया जा सका है। उसकी सियासी पार्टी 'सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया' (एसडीपीआई) कई राज्यों में, कई स्तरों के, चुनाव लड़ती रही है। उस पर भी पाबंदी की कोई पहल नहीं की जा सकी है। बहरहाल अब एक खौफनाक बेनकाब सामने आया है, तो पीएफआई की कलई भी खुले! बिहार की राजधानी पटना के फुलवारी शरीफ इलाके से 3 संदिग्ध चेहरों को गिरफ्तार किया गया है और 26 अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है
प्रधानमंत्री मोदी निशाने पर थे और उनके प्रवास के दौरान गड़बड़ी करने की साजि़श रची जा रही थी। दूसरा मंसूबा देश के खिलाफ जंग छेड़ देने से कमतर नहीं है। इस मंसूबे पर काम किया जा रहा था कि भारत को 2047 में, आज़ादी के 100 साल बाद, 'इस्लामी देश' बनाया जाए। काडर के दिमाग में ये दलीलें घुसाई जा रही थीं कि इस्लाम, यानी मुसलमान, हिंदुस्तान पर राज करता रहा है। बीच में अंग्रेजों ने हुकूमत छीन ली। अब वही हुकूमत हासिल करनी है और कायर बहुसंख्यकों को घुटनों पर लाकर 'इस्लामी देश' बनाना है। बिहार के इसी इलाके में मॉर्शल आर्ट की आड़ में बाकायदा हथियारों और मारने-काटने की टे्रनिंग दी जा रही थी। बंगाल, उप्र, तमिलनाडु, केरल आदि राज्यों से लोगों को बुलाकर प्रशिक्षित किया जा रहा था। सुरक्षा एजेंसियों ने इसे 'टेरर मॉड्यूल' करार दिया है। बहरहाल इन दोनों साजि़शों के पीछे पीएफआई का 'हाथ' माना जा रहा है। अभी तक जो 'लीड' मिली हैं, वे गुप्तचर ब्यूरो और बिहार पुलिस की हैं। तेलंगाना में भी ऐसे मॉड्यूल की बात कही गई है। अब एनआईए इन साजि़शों की गहन और सम्यक जांच करेगी। बेशक प्रधानमंत्री मोदी कई विरोधी और नफरती ताकतों के निशाने पर रहे हैं। यह संपूर्ण दायित्व उनकी सुरक्षा एजेंसियों का है कि देश के प्रधानमंत्री की हिफाजत की जाए। गिरफ्तार आरोपितों में अतहर परवेज़ भी है, जिसका भाई 2013 की गांधी मैदान रैली में 8 सिलसिलेवार धमाकों के साजि़शकारों में शामिल था।
मंसूबा-2047 के लिए क्या करना है, क्या किया जा रहा है और किन इस्लामी देशों से आर्थिक मदद भी लेनी है, इनके ब्यौरे बरामद दस्तावेजों में साफ तौर पर दिए गए हैं। पीएफआई के 49 झंडे बरामद किए गए हैं। करीब 2 करोड़ मुसलमानों की टीम बनाने की योजना है। संघ और हिंदू नेताओं का डाटा तैयार करना है। वैसे तो हर घर से एक मुसलमान को काडर में भर्ती करना है, लेकिन 10 फीसदी मुसलमानों के जरिए ही भारत को 'इस्लामी देश' बनाने का मकसद है। यदि सेना लड़ने उतरी, तो हम इस्लामी देशों से मदद मांगेंगे। यह दस्तावेज में स्पष्टतः दर्ज है। छापों में पीएफआई और एसडीपीआई के झंडों के अलावा बैनर, प्रचार सामग्री भी बरामद की गई है। साजि़श कितनी गहरी और वास्तविक है, यह तो जांच के बाद ही खुलासा होगा, लेकिन हैरानगी वाला तथ्य यह है कि लंबे वक़्त से पटना के करीब ही आतंकी टे्रनिंग दी जा रही थी और उसी शहर में बिहार की सरकार मौजूद है, अभी तक यह जानकारी सार्वजनिक क्यों नहीं हुई? आतंक के मास्टरों और साजि़शकारों को अभी तक पकड़ा क्यों नहीं गया था? निश्चित तौर पर यह खुफियागीरी और पुलिस की नाकामी थी। चूंकि अब साजि़श प्रधानमंत्री और 'इस्लामी देश' तक पहुंच गई, तो सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े हो गए। यह लापरवाही कमोबेश सुरक्षा के मामले में नहीं बरतनी चाहिए। इस मामले में कुछ गिरफ्तारियां हुई हैं। गिरफ्तार किए गए लोगों के विघटनकारी ताकतों से संबंध बताए जाते हैं। उनसे कड़ी पूछताछ की जानी चाहिए तथा इस पूरे मामले को पूरी तरह खंगाला जाना चाहिए। यह पता लगाना जरूरी है कि कौनसी शक्तियां भारत का अहित करना चाहती हैं।
Rani Sahu
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