सम्पादकीय

महंगा चुनाव

Gulabi
31 Oct 2020 2:42 PM GMT
महंगा चुनाव
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अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव में अब चंद रोज बचे हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव में अब चंद रोज बचे हैं। लेकिन इस बीच समूची दुनिया के तमाम देशों में अगर अमेरिकी चुनाव को दम साध कर देखा जा रहा है तो यह स्वाभाविक ही है। यों आमतौर पर हर बार का राष्ट्रपति चुनाव बराबर महत्त्व का होता है और प्रत्याशियों का अभियान भी उसी मुताबिक चलता है, लेकिन इस साल कई वजहों से रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी बने डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन के बीच की प्रतिद्वंद्विता सुर्खियों में है।

इस बार कोरोना महामारी के दौर में हो रहा यह चुनाव वहां के राष्ट्रीय मसलों के मुकाबले अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में अमेरिकी हित सुरक्षित रखने के वादे पर ज्यादा केंद्रित लग रहा है और टकराव के मुद्दे थोड़े ज्यादा तीखे हैं। लेकिन अगर मुद्दों से इतर अभियानों की बात करें तो यह खबर ध्यान खींचती है कि अमेरिका में इस बार का चुनाव अब तक के इतिहास में सबसे खर्चीला साबित होने जा रहा है।

हालांकि अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव परंपरागत रूप से बेहद खर्चीले होते रहे हैं। इस साल अनुमान यह लगाया जा रहा था कि इस बार अमेरिकी चुनावों में ग्यारह बिलियन डॉलर खर्च होगा। लेकिन एक शोध संस्थान द सेंटर फॉर रेस्पॉन्सिव पॉलिटिक्स के आकलन मुताबिक पिछले सभी रिकॉर्डों को ध्वस्त करते हुए 2020 में राष्ट्रपति चुनाव की लागत चौदह बिलियन डॉलर के आसपास हो सकती है।

गौरतलब है कि डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडेन ने अमेरिका में लोगों से दान प्राप्त करने के मामले में रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप को काफी पीछे छोड़ दिया है। बाइडेन को इस बार जहां करीब एक अरब डॉलर रकम दान के रूप में प्राप्त हुए, वहीं ट्रंप को लगभग साठ करोड़ डॉलर मिल सके हैं। दरअसल, उम्मीदवारों को आम लोगों से मिले दान के आधार पर उनके समर्थन के आधार का अनुमान भी लगाया जाता है।

इस लिहाज से समर्थन जुटाने के मामले में बाइडेन को आगे बताया जा रहा है। अनौपचारिक रूप से अमेरिका में चुनाव प्रक्रिया निर्धारित तारीख से डेढ़ साल पहले से ही शुरू हो जाती है। काफी लंबी और जटिल प्रकिया के तहत चलने वाले चुनाव में जनता के बीच समर्थन जुटाने के लिए उम्मीदवार जितने बड़े पैमाने पर अभियान चलाते हैं, उसमें उन्हें स्थानीय कार्यकर्ताओं से लेकर सामग्रियों और जनसंपर्कों तक के मामले में कई स्तरों पर खर्च चुकाने पड़ते हैं। यों किसी भी देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत होने वाले चुनावों में ऐसा ही होता है, लेकिन अमेरिका में इसी कसौटी पर खर्च में कई गुना ज्यादा होता है।

यह जगजाहिर है कि वैश्विक राजनीति और कूटनीति में अमेरिका की क्या हैसियत है और अक्सर बड़े या अहम मुद्दों पर उसके रुख का क्या महत्त्व है। यह भी सच है कि कई बार अमेरिका बिना जरूरत के भी अन्य देशों के मामलों में मदद के नाम पर दखल देने की कोशिश करता है और उसे नजरअंदाज कर पाना मुश्किल होता है।

हालांकि अंतरराष्ट्रीय मामलों पर अपनी विदेश नीति के मुताबिक ही अमेरिकी सरकार अपना रुख जाहिर करती है, भले ही किसी भी पार्टी की सरकार हो। बहरहाल, इसी समय उपराष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस के बारे में जिस तरह नस्लीय धारणाओं पर आधारित झूठे प्रचार किए गए हैं, वह अमेरिका के बारे में उस धारणा को तोड़ता है, जिसमें अक्सर नस्लवाद पर आधारित विचारों को खारिज करने का दावा किया जाता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अमेरिकी समाज अपनी प्रचारित छवि के मुताबिक ऐसे मसलों पर अपने विवेक से फैसला लेगा।

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