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- वार्ता से उम्मीद
वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव कम करने के मकसद से भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों के बीच चौदहवें दौर की वार्ता से एक बार फिर उम्मीद बनी है कि दोनों देश अपनी सेनाओं को पीछे लौटाएंगे। पिछले साल अक्तूबर में तेरहवें दौर की वार्ता हुई थी, जिसमें चीन ने भारतीय सैन्य अधिकारियों के प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया था। इस बीच न सिर्फ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव का वातावरण बना हुआ है, बल्कि चीन लगातार अपनी कब्जे वाली रणनीति पर आगे बढ़ने का प्रयास भी करता रहा है।
उसने लद्दाख के पैंगोंग झील इलाके में एक पुल बना लिया, तो भारत सरकार ने सख्त एतराज जताया। सरकार ने कहा कि वह इलाका पिछले साठ सालों से चीन के अवैध कब्जे में है। इसी तरह, चीन उन तमाम विवादित जगहों पर अपने स्थायी निर्माण करने का प्रयास करता रहा है, जिसे भारत लंबे समय से सुलझाने की मांग करता रहा है। पैंगोंग झील इलाके में चीन के पुल बनाने पर भारत के एतराज के बाद ही चौदहवें दौर की वार्ता तय हुई थी। इस वार्ता में लद्दाख के सभी टकराव वाले स्थानों से सेना पीछे लौटाने को लेकर बातचीत हुई। देखना है, चीन इस मुद्दे पर कितना सकारात्मक रवैया अख्तियार करता है।
दरअसल, चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के तहत भारत के हिस्से वाले उन तमाम इलाकों पर कब्जा करने की कोशिश करता रहा है, जिन्हें लेकर विवाद है। बरसों से चीन उन्हें अपना बताता और भारत उन पर अपना दावा जताता रहा है। इसी के चलते दोनों देशों की सेनाओं के बीच अक्सर टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है। बरसों से चीन की सेना नियंत्रण रेखा पार कर भारत के हिस्से वाले इलाकों में अपने तंबू तान देती रही है, फिर भारत के एतराज जताने पर वे वापस लौट जाती रही है। मगर पिछले दो सालों से उसने ऐसा नहीं किया।
वह स्थायी रूप से अपना डेरा जमा लेना चाहता है। उपग्रह से ली गई तस्वीरों से यह भी जानकारी मिली कि उसने भारत की सीमा से सटे विवादित इलाके में सौ घरों का एक गांव भी बसा लिया है। इसी तरह, वह भारतीय सीमा के नजदीक तक सड़क निर्माण आदि की गतिविधियों में जुटा रहा है। छिपी बात नहीं है कि इस तरह न सिर्फ वह भारत पर अपना शिकंजा कसने का प्रयास करता है, बल्कि भारत के पड़ोसी देशों पर भी अपना नियंत्रण रखना चाहता है।
चीन की इस विस्तारवादी नीति के चलते दुनिया के अनेक देश परेशान हैं। भारत के लद्दाख इलाके में वह इसलिए सड़क, पुल और अपनी सेना के लिए स्थायी ठिकाने बनाना चाहता है कि लगातार दबाव बनाए रख सके। भारत से उसकी प्रतिस्पर्धा केवल भूभाग पर कब्जे की नहीं है। विश्व बाजार में भारत की बढ़ती पैठ और विश्व राजनीति में उसकी अहमियत से भी चीन असहज महसूस करता रहा है। खासकर अमेरिका के साथ भारत की नजदीकी और कई बार अपने दम पर किए गए उसके साहसिक फैसले चीन को चुभते रहे हैं।
इसलिए वह भारत को अस्थिर करने के लिए उसके पड़ोसी देशों, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, अफगानिस्तान आदि में भी अपनी मौजूदगी बनाए रखना चाहता है। मगर भारत अभी तक बातचीत के जरिए सीमा संबंधी विवादों को सुलझाने का प्रयास करता रहा है। चीन सीनाजोरी से बाज नहीं आता। इसलिए भारत को न सिर्फ बातचीत, बल्कि दूसरे व्यावहारिक रास्तों पर भी विचार करना चाहिए।