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- उम्मीदों के निष्कर्ष
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा देश में कराये गये चौथे सीरो सर्वे में कोरोना महामारी से जुड़े जो आंकड़े मंगलवार को सामने आए हैं, वे आश्वस्त करते हैं कि देश की दो-तिहाई आबादी में संक्रमण के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुई है। मगर लापरवाही की कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि अभी एक-तिहाई आबादी संक्रमण के दायरे में आ सकती है। इस सर्वे का सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि देश में दोनों टीके लगाने वाले लोगों में सबसे ज्यादा एंटीबॉडी पायी गयी है। साथ ही बच्चों में पायी गई एंटीबॉडी उस निष्कर्ष को नकारती है कि तीसरी लहर बच्चों के लिये खतरनाक होगी। हालांकि, बच्चों में संक्रमण की संवेदनशीलता को लेकर कोई प्रामाणिक अध्ययन सामने नहीं आया था, लेकिन कहा जा रहा था कि बच्चों को तीसरी लहर से खतरा ज्यादा रहेगा। निश्चित रूप से सर्वे की रिपोर्ट अभिभावकों की चिंता को कम करेगी। देश में 45 से 60 आयु वर्ग में सबसे ज्यादा एंटीबॉडी का पाया जाना भी सुखद है क्योंकि यह देश की कर्मशील आबादी है, जो अपने पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन में रत रहती है। निस्संदेह देश में 67.6 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी पाये जाने का मतलब है कि ये लोग संक्रमण से गुजर चुके हैं और इनमें सार्स-सीओवी-2 के वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित हो चुकी है। कह सकते हैं कि तीसरी लहर उनका ज्यादा नुकसान नहीं कर पायेगी। दरअसल, यह सीरो सर्वे देश के 21 राज्यों के 70 जिलों में जून-जुलाई में कराया गया था, जिसमें 6-17 आयु वर्ग के बच्चे भी शामिल थे। अच्छी बात यह भी है कि देश के 85 फीसदी स्वास्थ्य कर्मियों में एंटीबॉडी पायी गई जबकि दस फीसदी कर्मियों ने टीका नहीं लगवाया, जो इस बाबत भी आश्वस्त करता है कि यदि देश में तीसरी लहर ने दस्तक दी तो हमारा स्वास्थ्य तंत्र उसके मुकाबले को मुस्तैद रह सकेगा। यह सीमित चिकित्सा साधन वाले देश के लिये अच्छी खबर कही जा सकती है।