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- ध्वंस मंदिरों के सच को...
हृदयनारायण दीक्षित। सत्य शाश्वत है। सदा से है, सदा रहता है। वह काल अबाधित है। सत्य पर काल का प्रभाव नहीं होता, लेकिन निहित स्वार्थी तत्व राष्ट्रीय सत्य पर भी पर्दा डालते रहते हैं। इस्लामी आक्रमण के पूर्व भारत में लाखों मंदिर थे। यहां जो भी उत्कृष्ट है, उसे मंदिर कहते हैं। भारतवासी मंदिरों के प्रति श्रद्धालु हैं। संसद भवन को मंदिर मंडप कहते है। बंकिमचंद्र ने वंदे मातरम में भारत माता की आराधना की। मंदिर भारत का धैर्य हैं। उल्लास हैं। दार्शनिक ओशो ने कहा है, 'मंदिर जीवंत होते हैं। भारत पुन: भारत नहीं हो सकता, जब तक मंदिर जीवंत न हो। कोई बीमार हुआ, मंदिर गया। दुखी हुआ, मंदिर गया। सुखी हुआ, मंदिर गया। पूरब की संस्कृति को तोड़ने के लिए सबसे बड़ा काम था मंदिर के आविष्ट रूप को तोड़ना।' वहीं इस्लामी परंपरा में मंदिर ध्वस्तीकरण सवाब है। यही कारण है कि बिन कासिम के हमले से लेकर औरंगजेब तक भारत में मंदिर ध्वंस का अपमानजनक इतिहास है। उन्होंने मंदिर तोड़े, उसकी सामग्री से प्राय: उसी जगह मस्जिद बनाई। यह कुकृत्य आम जनों को भी साफ दिखाई पड़ता है।