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दुनिया में सर्वाधिक युवा आबादी भारत में है। कुल जनसंख्या का करीब 66 प्रतिशत, यानी लगभग 75 करोड़ भारतीय 35 वर्ष से कम उम्र के हैं
सृजनपाल सिंह,
दुनिया में सर्वाधिक युवा आबादी भारत में है। कुल जनसंख्या का करीब 66 प्रतिशत, यानी लगभग 75 करोड़ भारतीय 35 वर्ष से कम उम्र के हैं। इन नौजवानों को अमूमन हमारी सबसे बड़ी ताकत माना जाता है, और यही कारण है कि दुनिया भारत के भविष्य को लेकर मुतमइन है। हम एक पुरानी सभ्यता और एक युवा राष्ट्र हैं। वैश्विक मानचित्र के कई पटल पर हमारी मौजूदगी है, क्योंकि हमने वक्त-वक्त पर अपनी दृढ़ता, मजबूती और उदारता का परिचय दिया है। चुनौतियों को स्वीकार करने और बाधाओं के बावजूद सफल होने की कुव्वत भारतीयों में है, जिस कारण भारत आज उन देशों के साथ मुकाबला कर रहा है, जिन्होंने सदियों पहले आजादी हासिल की थी।
भारत 75 साल का हो रहा है। इस जनसांख्यिकीय लाभांश को राष्ट्रीय विकास और खुशहाली में बदलने के लिए हमें स्पष्ट रूपरेखा बनानी होगी। अगर यह काम रचनात्मक तरीके से हो सका, तो सभी क्षेत्रों में हम इसका फायदा उठा सकेंगे। और अगर नहीं कर सके, तो यकीनन इसके परिणाम अनिष्टकारी हो सकते हैं। सबसे पहले तो नौजवान भारतीयों को इस बाबत जागरूक करना होगा कि वे अपना ध्यान सही दिशा में लगाएं। पिछली बातों को लेकर आज उलझना गलत होगा। युवा भारत को अपने समृद्ध इतिहास से सीखना चाहिए। हालांकि, कुछ खास ऐतिहासिक घटनाओं के औचित्य पर अनवरत ध्यान लगाने से सीमित नतीजे हासिल होंगे। आपस में एकजुट होकर हम किस तरह से उज्ज्वल भविष्य बना सकते हैं, इस दिशा में प्रयास करने से निस्संदेह हम नई-नई प्रौद्योगिकी, आविष्कार, पेटेंट और सफलताएं हासिल कर सकेंगे।
दूसरी बात, दुनिया 'सुपर स्पेशलाइजेशन' के दौर से गुजर रही है। भारत के नौजवान यदि कार्य-बल में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना चाहते हैं, तो उन्हें अपने कौशल निर्माण और बदलते उद्योग को लेकर जागरूक होना चाहिए। आने वाले समय में ऑटोमेशन कई नौकरियों को लील लेगा। कृत्रिम बुद्धिमता, यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से कारें चलेंगी, ड्रोन से उत्पाद व सेवा मुहैया कराए जाएंगे और पेट्रो उत्पादों से चलने वाले इंजन की जगह इलेक्ट्रिकल व हाइड्रोजन इंजन काम आएंगे। आज के नौजवानों को खुद से यह पूछना चाहिए कि क्या वे इस नई दुनिया का सामना करने को तैयार हैं?
तीसरी बात, नौजवानों को बड़े सपने देखने चाहिए। जैसा कि डॉ एपीजे अब्दुल कलाम कहा करते थे, सपने वे नहीं होते, जो आप सोते समय देखते हैं, बल्कि सपने वे होते हैं, जो आपको सोने नहीं देते। हमें अपने-अपने परिवार और अपने राष्ट्र के लिए बड़े-बड़े, यहां तक कि असंभव सपने भी देखने चाहिए। हमें अपनी सोच को व्यापक बनाना होगा और न सिर्फ अपना करियर बनाने के लिए, बल्कि दुनिया बदलने के लिए भी तैयार रहना होगा। कोविड-19 टीकों को विकसित करने के क्षेत्र में भारत की सफलता इस बात का ज्वलंत प्रमाण है कि लक्ष्य बनाकर काम करने से चुनौतीपूर्ण समय में भी सफलता हासिल की जा सकती है।
चौथी बात, भारत के नौजवानों को किसी खतरे से नहीं डरना चाहिए। कोई भी बड़ी सफलता तमाम अनिश्चितताओं से जूझने के बाद ही हासिल होती है। हमें यह सोचकर कोई नौकरी नहीं करनी चाहिए कि वह 'सुरक्षित' है। यह चार दशक पहले की सोच मानी जाएगी। 75 साल का भारत एक ऐसा राष्ट्र है, जिसमें दुनिया निवेश को तैयार है। ऐसे वक्त में, जब अमेरिका बंटा हुआ है, यूरोप बुजुर्ग हो रहा है और चीन व रूस सबसे पसंदीदा राष्ट्र नहीं रहे, तब भारत निश्चय ही ऐसी भूमि है, जहां तमाम तरह के अवसर उपलब्ध हैं। यहां की युवा प्रतिभाओं की मौलिक सोच दुनिया भर में बाजार और समर्थन हासिल कर सकती है। देश के नौजवानों को पता होना चाहिए कि पिछले 300 वर्षों में यह पहली बार है, जब दुनिया भारत को एक उभरती हुई ताकत के रूप में देख रही है।
पांचवीं बात, भारत के नौजवानों को अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। कई पश्चिमी देशों ने पिछले चार-पांच दशकों में आर्थिक तरक्की की है, लेकिन वे आज भी संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि उनका समाज टूट गया है और परिवार में बिखराव है। भारतीय सभ्यता की सबसे बड़ी ताकत उसकी बहु-सांस्कृतिक मूल्य प्रणाली है। हमारा इतिहास, हमारी विरासत, हमारी भाषाएं और हमारी आस्था हमारे समाज की अंतर्निहित ताकतें हैं। कई लोग सोचते हैं कि भारत में अनुशासन की कमी है, पर दुनिया को देेखें, तो सच्चाई समझ में आ जाती है। दुनिया में कहीं भी लोग इतने परिवारोन्मुख, माता-पिता या अभिभावक के प्रति इतने सम्मानजनक और बिना किसी दबाव के इतने आत्म-नियंत्रित नहीं हैं। बेशक हम में सुधार की गुंजाइश है, लेकिन हमें इस पश्चिमी सोच के आगे समर्पण नहीं करना चाहिए कि हमारे समाज में अनुशासन नहीं है। राष्ट्र के विकास का मकसद तभी हासिल होता है, जब नागरिक खुश हों, और यह खुशी सिर्फ आर्थिक विकास से नहीं, आध्यात्मिक राहों से भी हासिल की जा सकती है।
आखिरी बात, भारत के नौजवानों को अपनी सेहत पर भी ध्यान देना चाहिए। भारत दुनिया भर में मधुमेह और हृदय रोग का मुल्क बनकर उभरा है। चिंता की बात यह है कि इन रोगों के ज्यादातर मामले नौजवानों में सामने आ रहे हैं। भारत में हृदयाघात के शिकार लोगों में आधे 50 साल से कम उम्र के पुरुष हैं और 25 फीसदी की आयु 40 साल से कम है। यदि नौजवान बीमार रहेंगे, तो युवा शक्ति का कोई अर्थ नहीं। इसका मतलब यह है कि हमें स्वस्थ खान-पान और स्वस्थ आदतों पर ध्यान देना चाहिए, और सबसे जरूरी यह कि हम अपना मानसिक तनाव कम करें।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था, भविष्य को लेकर मेरी उम्मीद सद्चरित्र, बुद्धिमान, दूसरों की सेवा के लिए सब कुछ त्याग करने वाले और आज्ञाकारी युवाओं से बंधी है। ये गुण उनके लिए भी अच्छे हैं और देश के लिए भी। हमरा देश उन तमाम महापुरुषों ने गढ़ा है, जिन्होंने इसे इस मुकाम पर लाने के लिए अपना खून-पसीना एक कर दिया। जाहिर है, नई पीढ़ी के लिए एकमात्र रास्ता यही है कि वह खड़ी हो जाए और भविष्य में तेज गति से आगे बढ़े, और यह सुनिश्चित करे कि 100 साल का भारत शांतिपूर्ण समृद्धि और सद्भावपूर्ण विकास का प्रकाशस्तंभ बने।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
Hindustan Opinion Column

Rani Sahu
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