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- जनादेश के बाद...
युद्ध तो न जाने कब थमेगा? कब विभीषिकाओं पर विराम लगेगा? ये सवाल अनुत्तरित हैं। हम लोकतंत्र हैं, लिहाजा राजनीतिक जनादेश और उसकी अपेक्षाओं का आकलन करना भी हमारा दायित्व है। पांच राज्यों में मतदान पूरी तरह सम्पन्न हो चुका है। अब 10 मार्च को जनादेश की प्रतीक्षा है। उसके बाद उसकी चुनौतियों की भी समीक्षा करेंगे। उप्र से मणिपुर तक राज्यों की जनता की अलग-अलग अपेक्षाएं होंगी, लेकिन रोजी-रोटी, महंगाई, घर, सामाजिक सम्मान आदि साझा अपेक्षाएं हैं। चुनाव के समापन तक आते-आते ये मुद्दे भी गूंजने लगे थे। बेशक 'लाभार्थी' नाम का एक सामाजिक समूह इन चुनावों की ही देन है। कोरोना वायरस के संक्रमण काल से लेकर आज तक भारत सरकार और कुछ राज्य सरकारों ने भी मुफ्त खाद्यान्न मुहैया कराया है। गेहूं, चावल के अतिरिक्त दाल, खाद्य तेल, चीनी और नमक का एक पैकेज बनाया गया और देश भर में 80 करोड़ से अधिक नागरिकों को कमोबेश भूखा नहीं सोने दिया गया।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल