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- उम्मीदों के आंकड़े
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी के जो आंकड़े सामने आये हैं, वे अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने के संकेत कहे जा सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियां और वित्तीय संस्थान अर्थव्यवस्था में दस फीसदी तक गिरावट की जो आशंका जता रहे थे, वह निर्मूल साबित हुई है और यह साढ़े सात प्रतिशत पर जा टिकी है। निस्संदेह अभी चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं लेकिन चिंताओं के विपरीत अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार की उम्मीदें जगी हैं। आर्थिकी की दूसरी तिमाही का यह दौर जून से सितंबर तक वह था जब देश में अनलॉक की प्रक्रिया चल रही थी।
इसके बावजूद अर्थव्यवस्था ने रवानगी पकड़ी। हालांकि, दूसरी तिमाही में भी विकास दर का नकारात्मक होना तकनीकी रूप से इस बात का संकेत जरूर है कि देश की आर्थिकी मंदी के भंवर की ओर उन्मुख हो चली है लेकिन आर्थिक विशेषज्ञ इस बात से उत्साहित हुए हैं कि विकास दर में सुधार उम्मीदों से ज्यादा है। निस्संदेह पहली तिमाही में करीब चौबीस फीसदी की गिरावट के बाद दूसरी तिमाही में विकास दर साढ़े सात प्रतिशत रहना उम्मीद जगाने वाली है। अब ऐसा भी नहीं है कि तीसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था कुलांचे भरने लगेगी लेकिन निरंतर सुधार की उम्मीद तो जगी ही है।
निस्संदेह कृषि, वानिकी व मछली उत्पादन में वृद्धि उत्साहवर्धक है। उत्पादन क्षेत्र में भी वृद्धि सुखद है। उद्योगों में रवानगी का मतलब यह भी है कि कुछ उन रोजगारों की बहाली हुई है जो लॉकडाउन के दौरान खत्म हो गये थे। उद्योगों से जुड़े लाखों लोगों की जीविका की बहाली निस्संदेह क्रय शक्ति बढ़ाने में सहायक होगी, जो मंदी की स्थितियों से मुकाबले में भी सहायक होंगी। इसी तरह अन्य क्षेत्रों में रवानगी भी आशाजनक ही कही जायेगी। कोशिश होनी चाहिए कि मांग की यह तेजी लगातार बनी रहे।
कहा जा रहा है कि उद्योग जगत में यह तेजी त्योहारी मौसम में मांग को पूरा करने के चलते रही लेकिन इसे स्थायी बनाने की जरूरत है। निस्संदेह ऐसे वक्त में उद्योग जगत को सरकारी सहायता उत्प्रेरक का काम करती है। इस मायने में सरकार को लचीला रवैया अपनाना चाहिए। यह जानते हुए कि सरकारी राहत पैकेजों का धरातल पर अपेक्षा के अनुरूप लाभ नजर नहीं आया है। वह भी ऐसे वक्त में जब कोरोना की दूसरी लहर ने आर्थिक गतिविधियों को नये सिरे से प्रभावित किया है, जिससे देश में उत्पादन और निर्यात पर भी प्रतिकूल असर देखा जा रहा है। कोशिश हो कि अब लॉकडाउन लगाने की जरूरत न पड़े और उद्योग-धंधे पूर्ण क्षमता से काम करते रहें, जिससे रोजगारों का संकट भी पैदा न हो, ऐसे वक्त में जब हम बेरोजगारी की उच्च दर से जूझ रहे हैं। बहरहाल यह रुझान इस बात के संकेत जरूर हैं कि अार्थिकी फिर पटरी पर आने की ओर उन्मुख है।
इसमें दो राय नहीं कि मार्च के अंतिम सप्ताह से जून तक लगाये गये सख्त लॉकडाउन का आर्थिकी पर खासा प्रतिकूल असर पड़ा था। हवाई, सड़क व रेल यातायात बंद होने से समस्या की जटिलता में और विस्तार हुआ था। अब जब धीरे-धीरे स्थितियां सामान्य हो रही हैं तो आर्थिकी के गति पकड़ने की संभावनाएं भी बढ़ी हैं। अब सरकार को उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिनमें सुधार की तेज गुंजाइश है। भारतीय आर्थिकी में चालीस प्रतिशत का योगदान देने वाले सेवा क्षेत्र को भी संबल देने की जरूरत है। साथ ही त्योहारी सीजन में जिस तरह मांग में वृद्धि हुई, उसे निरंतरता प्रदान करने की जरूरत है।
कोशिश हो कि लोगों की क्रय शक्ति में इजाफा किया जाये, जिससे मांग को बढ़ावा मिलेगा और मंदी की आशंकाओं को टाला जा सकेगा। इस दिशा में आत्मनिर्भर भारत की मुहिम का भी सकारात्मक प्रतिसाद मिलने की उम्मीद है। क्रेडिट के रूप में दिये गये आर्थिक पैकेज के भी देर-सवेर परिणाम आयेंगे। कोशिश हो कि कोविड संक्रमण की दूसरी लहर के बीच देशव्यापी मांग को बढ़ाया जाये ताकि आर्थिकी के चक्र को गति दी जा सके।