सम्पादकीय

असंवेदनशीलता की मिसाल

Gulabi
4 Feb 2021 10:14 AM GMT
असंवेदनशीलता की मिसाल
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केंद्रीय बजट में हर बार की तरह इस बार भी भाजपा सरकार ने आंकड़ों का खूब खेल किया।

केंद्रीय बजट में हर बार की तरह इस बार भी भाजपा सरकार ने आंकड़ों का खूब खेल किया। जहां असल में बढ़ोतरी नहीं हुई, वहां बड़ी बढ़ोतरी दिखा दी गई। मसलन, स्वास्थ्य क्षेत्र में 137 फीसदी का इजाफा बताया गया। लेकिन जब आंकड़ों का विश्लेषण किया गया, तो सामने आया कि वैक्सीन या वित्त आयोग के अनुदान के कारण एक बार आवंटित धन को भी स्वास्थ्य बजट का हिस्सा बता दिया गया। जब महामारी वाले साल में स्वास्थ्य बजट के साथ ऐसा हुआ, तो बाकी मदों में कैसे हेडलाइन मैनेजमेंट की कोशिश हुई होगी, इसका अनुमान कोई लगा सकता है। सबसे हैरतअंगेज व्यवहार तो कृषि क्षेत्र के साथ किया गया है। जिस समय किसान आंदोलन सुर्खियों में है, ये सहज अपेक्षा थी कि सरकार किसानों को लुभाने के लिए बजट में कोई ठोस पहल करेगी। लेकिन जो पहल उसके दावों में ऊपर छाई रहती है, उसके लिए आवंटन घटा दिया गया। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री किसान मान धन योजना का शुभारंभ किया था। इसके तहत 60 वर्ष की आयु पूरी करने वाले किसानों को न्यूनतम 3000 रुपये प्रति माह पेंशन उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया था।


अब 2021-22 के लिए प्रधानमंत्री किसान मान-धन योजना के लिए सिर्फ 50 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। जबकि पिछले साल इसके तहत 220 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। तीन नए कानूनों के पक्ष में सरकार की एक प्रमुख दलील ये है कि वे किसानों को एक नया कृषि बाजार मुहैया करा रहे हैं। लेकिन असलियत यह है कि कृषि बाजार से संबंधित योजनाओं के लिए फंड में लगातार कटौती हुई है। 'कृषि विपणन पर एकीकृत योजना' के लिए 2021-22 के 410 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जबकि 2020-21 में इस योजना के तहत 490 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। इसके अलावा देश में रासायनिक खेती को कम करके जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए लाई गई 'परंपरागत कृषि विकास योजना' के बजट में भी कमी देखने को मिली है। कृषि में सिंचाई व्यवस्था में सुधार करने के लिए लाई गई 'प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना' के तहत पिछले साल 4,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। लेकिन अब इसे कम करके 2,563.20 करोड़ रुपये कर दिया गया है। कुल मिलाकर देखें तो कृषि मंत्रालय के बजट में पिछले साल की तुलना में करीब आठ फीसदी की कटौती हुई है। इसे साफ तौर पर सरकार की असंवेदनशीलता ही कहा जा सकता है।


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