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मनमानी का उदाहरण: नारायण राणे की गिरफ्तारी से भाजपा और शिवसेना के बीच राजनीतिक कटुता और बढ़ेगी

महाराष्ट्र में केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी हतप्रभ करने वाली तो है ही, शासन के मनमाने इस्तेमाल और साथ ही भारतीय राजनीति में लगातार बढ़ती असहिष्णुता की भी परिचायक है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लेकर नारायण राणे ने जो बयान दिया वह अस्वाभाविक, अरुचिकर और सामान्य राजनीतिक शिष्टाचार के प्रतिकूल तो कहा जा सकता है, लेकिन यह ऐसा वक्तव्य नहीं कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए। यदि इस तरह छोटी-छोटी बातों पर गिरफ्तारियां होंगी तो किसी की खैर नहीं। सत्ता के अहंकार में चूर महाराष्ट्र सरकार ने न केवल नारायण राणे की गिरफ्तारी की, बल्कि इस दौरान यह भी सुनिश्चित किया कि उनके साथ किसी अपराधी की तरह व्यवहार किया जाए। नारायण राणे के साथ हुए पुलिसिया व्यवहार ने उन घटनाओं की याद दिला दी जिनकी चपेट में एक टीवी चैनल के संपादक और मशहूर अभिनेत्री कंगना रनोट आई थीं। ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र सरकार अपने राजनीतिक आकाओं का हुक्म बजाते समय सामान्य तौर-तरीकों को भुला देना और शिवसेना की निजी सेना की तरह व्यवहार करना पसंद कर रही है। उसे अपनी प्रतिष्ठा के साथ लोकलाज की कुछ तो परवाह करनी चाहिए। नि:संदेह ऐसी ही अपेक्षा महाराष्ट्र सरकार से भी है, लेकिन शायद उसने उन तौर-तरीकों को अपने शासन का हिस्सा बनाना तय कर लिया है जो उसने विपक्षी दल के रूप में अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति अपना रखे थे।