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- देश के लिए बहुमूल्य...
आर विक्रम सिंह। कश्मीर में कश्मीरी सिखों-हिंदुओं और प्रवासी मजदूरों की हत्या के बाद आतंकियों और उनके समर्थकों पर लगाम लगाने के लिए कई उपाय किए गए हैं। इन उपायों के बाद भी यह कहना कठिन है कि कश्मीरी पंडितों की वापसी हो सकेगी। उचित यह होगा कि इस काम को पूरा करने के लिए पूर्व सैनिकों का उपयोग किया जाए। करीब-करीब प्रत्येक पूर्व सैनिक का कश्मीर से एक रिश्ता है। अपनी सेवा के दौरान पूर्व सैनिक कभी न कभी कश्मीर की सीमाओं पर रहा होता है। इस पर संदेह है कि वर्तमान परिवेश में घाटी में नई कालोनियां बनाकर कश्मीरी पंडितों को बसाना स्थायी समाधान बन सकेगा। देश के पूर्व सैनिकों की कश्मीर के समाधान की राह में एक महत्वपूर्ण भूमिका बन सकती है। पूर्व सैनिकों को एक योजना के तहत साथ लेकर व्यवस्थित रूप से कश्मीरी पंडितों के साथ-साथ बसाने की कार्ययोजना पर कार्य किया जाए, तो हम इस संकट के समाधान का मार्ग खोज सकते हैं।
इस अभियान के लिए मुख्य नगरों का मोह छोड़कर उनसे अलग क्षेत्रों का रुख करना उचित होगा। उदाहरण के लिए हम जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग एन एच 44 के पूर्व में स्थित अनंतनाग जनपद और उसकी तहसीलों कोकरनाग, पहलगाम, काजीकुंड आदि को लें। यह इलाका सुरक्षित भी है और सड़कों से जुड़ा हुआ भी। यह क्षेत्र जम्मू राजमार्ग के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश के चंबा-मनाली से भी सड़क से जुड़ता है। सड़कें बेहतर हो रही हैं।
सैनिकों-पूर्व सैनिकों की सुरक्षा में यह कश्मीर पंडितों के लिए नया आदर्श विकास क्षेत्र हो सकता है। यहां भविष्य की दृष्टि से संभावनाशील पर्यटन क्षेत्र भी हैं।कश्मीर में जब तक जनसांख्यिकी संतुलन नहीं होगा, तब तक कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लक्ष्य में सफलता हासिल नहीं होगी। कश्मीर घाटी के इस पूर्वी सिरे से पूर्व सैनिकों की बिरादरी साथ लगकर कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। पूर्व सैनिकों में संगठन और अनुशासन की अद्भुत क्षमता होती है। कोरोना के दौर में अघोषित कोरोना योद्धा के तौर पर उन्होंने बहुत कुछ किया है। यदि हमें अपने सामाजिक परिवेश और प्रशासनिक मशीनरी को सुधारना है तो पूर्व सैनिकों को भूमिका देनी पड़ेगी। ये सबसे सक्षम अनुशासित
संगठन से आए हैं। सीमित प्रशिक्षण से ये आदर्श पुलिसकर्मी, फारेस्ट गार्ड, ड्राइवर, वायरलेस आपरेटर, सुरक्षा कर्मी, होमगार्ड कमांडर, सिविल डिफेंस, एनफोर्समेंट संबंधी विभागों के सफल कर्मचारी हो सकते हैं। आपदा प्रबंधन इनसे अच्छा कोई नहीं कर सकता। दरअसल, हमारे विभाग उत्कृष्टता की खोज नहीं करते। अत: सरकारी सेवाओं के दरवाजे अक्सर बंद मिलते हैं। कई राज्यों में पूर्व सैनिकों का कोटा तय है, लेकिन तकनीकी कारणों से वह सरेंडर होता रहता है। बतौर उदाहरण उत्तर प्रदेश में राशन की दुकानों में पांच प्रतिशत का कोटा है, लेकिन गांव ही चिन्हित नहीं हुए। पूर्व सैनिकों को उनकी योग्यता क्षमता के अनुरूप भूमिकाएं और दायित्व नहीं मिल पाते।