सम्पादकीय

सभी को लगे कोरोना टीका !

Subhi
17 March 2021 5:21 AM GMT
सभी को लगे कोरोना टीका !
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सवाल उठना वाजिब है कि जब भारत का सरकारी व निजी क्षेत्र का चिकित्सा तन्त्र प्रत्येक दिन एक करोड़ लोगों को कोरोना टीका लगा सकता है

सवाल उठना वाजिब है कि जब भारत का सरकारी व निजी क्षेत्र का चिकित्सा तन्त्र प्रत्येक दिन एक करोड़ लोगों को कोरोना टीका लगा सकता है तो यह टीका सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए विशेष रूप से युवा वर्ग के लिए क्यों नहीं खोला जा रहा है? कोरोना संक्रमण के नये दूसरे हल्के हमले को देखते हुए क्या हमें टीकाकरण की नई नीति नहीं अपनानी चाहिए? इसके साथ ही भारतीय संघीय व्यवस्था को देखते हुए क्या राज्य की सरकारों को अपने नागरिकों के टीकाकरण के लिए मुक्त हस्त नहीं दिया जाना चाहिए जिससे कोरोना संक्रमण के हमले को पूरी तरह असफल किया जा सके और सभी भारतीयों को इससे भयमुक्त किया जा सके। फिलहाल केवल 60 वर्ष से ऊपर के वरिष्ठ नागरिकों को ही यह टीका लगाया जा रहा है और 45 वर्ष से ऊपर के उन लोगों को भी यह सुविधा दी जा रही है जो अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं। मगर टीकाकरण वह रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है जिसकी उम्मीद की जा रही थी। इसकी वजह टीके के बारे में कुछ भ्रम व अफवाहें फैलाना भी है। दुर्भाग्य से यह काम कुछ एेसे राजनीतिज्ञों ने किया है जिनका ईमान सिर्फ वोट बटोरना रहता है।

ऐसे ही उत्तर प्रदेश के एक राजनीतिज्ञ अखिलेश यादव हैं जिन्होंने कोरोना वैक्सीन को 'भाजपा वैक्सीन' करार दिया था। उन्हीं की पार्टी के एक विधानपरिषद सदस्य ने वैक्सीन के बारे में बेलगाम बातें बोल कर 'जहर' घोलने का काम किया था। ऐसी राजनीति पर सिर्फ लानत भेजने के अलावा दूसरा काम नहीं किया जा सकता क्योंकि ऐसे राजनीतिज्ञों को संकट काल में भी आदमी 'वोटर' ही नजर आता है। असल में यह इंसानियत के खिलाफ वह बद दिमागी हैं जिसमें आदमी की जान में भी कुछ लोग अपना नफा ढूंढते हैं। इस हकीकत के बावजूद बुजुर्ग लोग टीका लगवा रहे हैं और ऐसे बद जुबान राजनीतिज्ञों को सबक सिखा रहे हैं। इसके बावजूद यह बहुत जरूरी है कि जल्दी से जल्दी देश के सभी नागरिकों को टीका लगाने की प्र​िक्रया शुरू की जाये। इस मामले में युवक-युवतियों को प्राथमिकता दिये जाने की जरूरत इसलिए है क्योंकि वे ही पढ़ाई-लिखाई या काम धंधे के बारे में घर से बाहर जाते हैं और संक्रमण के खतरे के बावजूद उनका एेसा करना जरूरी हो जाता है। यह भी कोरोना का प्रकोप ही रहा कि छात्र-छात्राओं का पूरा एक वर्ष यह संक्रमण खा गया। अब उनके दूसरे शैक्षणिक वर्ष के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।

यह भी सच है कि कोरोना का सर्वाधिक प्रकोप बड़े महानगरों व शहरों में रहा है। अतः ऐसी नीति की जरूरत है जिसमें एक विशिष्ट जनसंख्या वाले शहरों के सभी नागरिकों को बिना आयु सीमा की परवाह किये टीका लगाने की प्रक्रिया शुरू की जाये और इसके लिए राज्य सरकारों को पूरे अख्तियार दिये जायें। यह करना इसलिए संभव है कि भारत कोरोना वैक्सीन उत्पादन करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश है और इसमें वैक्सीनों की कोई कमी नहीं है। दुनिया के विभिन्न देशों को वैक्सीन की सप्लाई करने वाला भी यह सबसे बड़ा देश है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू हो जाने के बाद और 'अन्तर्राष्ट्रीय पेटेट कानून' की परिधि​ में आने के बाद भारत 'दुनिया की फार्मेसी' बन चुका है।

भारत के विशाल चिकित्सा सेवा तन्त्र को देखते हुए यह बहुत जरूरी है कि इसका लाभ आम नागरिकों को दिया जाये और इसमें निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी कराते हुए जनता को कोरोना से निर्भय किया जाये लेकिन यह कार्य केन्द्र व राज्य सरकारों के आपसी सहयोग से ही संभव हो पायेगा। इस बारे में विशेषज्ञों का सुझाव है कि केन्द्र को कोरोना वैक्सीन की सप्लाई की गारंटी राज्य सरकारों को देकर टीकाकरण अभियान युद्ध स्तर पर चलाना चाहिए और कोरोना वैक्सीन की सप्लाई निजी क्षेत्र के पात्र अस्पतालों व नर्सिंगहोमों में इस प्रकार करनी चाहिए कि जिस आयु वर्ग का भी सक्षम व्यक्ति टीका लगवाना चाहे वह सरकार द्वारा नियत कीमत पर लगवा सके। जाहिर है इसके लिए एक एेसी प्रणाली गठित करनी पड़ेगी जिसमें केन्द्र सरकार की हिदायत में राज्य सरकारों की जिम्मेदारी तय होगी। राज्य सरकारों को ग्रामीण व उपनगरीय क्षेत्रों में टीकाकरण के लिए प्रचार माध्यमों का भी सहारा लेना पड़ेगा और जनता के मन में बैठे किसी भी भ्रम को दूर करना होगा जिससे लोग स्वयं आगे आकर टीका लगवाये

सवाल यह है कि इसे पूरा करने के लिए आयु वर्ग के खांचों को जल्दी से जल्दी समाप्त करना होगा। हरियाणा राज्य में 'आशा' परिचारिकाएं घर-घर जाकर टीकाकरण की अलख जगा रही हैं परन्तु यह बुजुर्गों तक ही सीमित है। लेकिन पंजाब में सबको टीका लगाने की शुरूआत कर दी है। अतः प्रधानमन्त्री आज राज्यों के मुख्यमन्त्रियों के साथ होने वाली अपनी बैठक में इन सभी पक्षों पर जब विचार करेंगे तो कोई न कोई हल जरूर निकलेगा। जब अमेरिका आगामी 2 मई से सभी नागरिकों के लिए टीका खोल सकता है तो भारत को भी अपने विशाल व वृहद चिकित्सा तन्त्र पर पक्का यकीन होना चाहिए। सोने पे सुहागा यह है कि यहां वैक्सीन की कोई कमी नहीं है बल्कि यह बहुतायत में है। पेंच केवल यह है कि वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों 'सीरम संस्थान' व 'भारत बायोटेक' को अपनी उत्पादन क्षमता में सुस्ती नहीं लानी होगी बल्कि और वृद्धि करनी होगी। अतः हम हरेक को वैक्सीन का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं और वह भी सीमित समय के भीतर।



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