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एक साधारण सा लेकिन अति महत्वपूर्ण सवाल- विश्व भर में सबसे मूल्यवान जगह कौन-सी है
डॉ. ज्ञानवत्सल स्वामी। एक साधारण सा लेकिन अति महत्वपूर्ण सवाल- विश्व भर में सबसे मूल्यवान जगह कौन-सी है? रुचि और प्रवृत्ति के अनुसार लोगों के अलग-अलग जवाब हो सकते हैं, लेकिन एक चिंतक ने बहुत ही मार्मिक-सटीक उत्तर दिया है- श्मशान। कारण, ये है कि मोक्ष भूमि रूपी श्मशान की भूमि में बहुत से लोग अपूर्ण-अधूरे लेकिन मूल्यवान अपने मूल्यवान सपनों के साथ पंचभूत में विलीन हुए हैं।
दुनिया को और अधिक सुंदर बनाने में समर्थ भव्य आविष्कार, करिअर को उन्नति के शिखर पर पहुंचाने वाले गेम चेंजर आइडिया, मानव मर्यादाओं की सीमाओं को पार कर मनुष्य जीवन को अधिक सुखी-समृद्ध बनाने वाले क्रांतिकारी विचार-विधानों पर किसी का व्यक्तिगत आधिपत्य नहीं है। सामान्य से प्रतीत होने वाले मन-मस्तिष्क में भी दुनिया में आमूलचूल परिवर्तन करने वाले विचार कौंधते ही हैं। कमोवेश अधिकांश लोग ऐसे विचार संसार को अपने मन की गहराई में दबाए हुए ही अपनी जीवन यात्रा पूरी कर जाते हैं और वे वे विचार श्मशान में समा जाते हैं।
सवाल है कि आखिर क्या वजह है कि वे विचार आकार नहीं ले पाते? जवाब है, अनेक आयामी कारकों में से एक कारण है- साहस का अभाव। अधिकांश मामलों मे ऐसा होता है जब भी कोई नया बदलाव का विचार अपनी संपूर्णता के साथ किसी मस्तिष्क में कौंधता है तभी विफल होने के डर से हमारे 'कंफर्ट जोन' की केंचुली उसे अपने पाश में लेकर उसका वहीं कत्ल कर देती है।
हां, इसी समय हम यदि समझदारी-विवेकपूर्ण साहस कर आगे कदम बढ़ाएं तो हो सकता है कि हमारा यह एक कदम विश्व को नए सूर्योदय के दर्शन करवा दे। एक साहस हमारे जीवन की समूची तासीर बदल-बना सकता है। गांधीजी ने एक मुठ्ठी नमक उठाने का साहस विश्व शक्ति को दिया तो भारत की आजादी की मुहिम में नई ऊर्जा का संचार हो गया। लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 563 रियासतों के एकीकरण का साहसी कार्य किया तो अखंड भारत की भेंट मिली।
25 मई 1961 को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने एक घोषणा की कि संभव है इस दशक के अंत तक हम चंद्रमा पर जाकर सुरक्षित वापस लौट जाएं। इस एक साहसपूर्ण घोषणा से 1970 में तो पृथ्वीवासियों ने चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक अपने पैरों के निशान छोड़ दिए। सचिन तेंदुलकर ने गेंदबाजी छोड़कर बल्लेबाजी में हाथ आजमाने का साहस किया तो विश्व को 'क्रिकेट के भगवान' के दर्शन हुए। सरल शब्दों में बात ये है कि सच्चे रचनात्मक कदमों से इतिहास की करवट बदलती है।
इसी क्रम में यदि उचित साहसिक कदम न उठाए जाएं तो सफलता के शिखर से रसताल में जाने में भी वक्त नहीं लगता। 20वीं सदी में फोटोग्राफी में एक छत्र राज करने वाली कंपनी थी-कोडक। वर्ष 1968 तक इस क्षेत्र के वैश्विक बाजार में कोडक की हिस्सेदारी थी 80% लेकिन 2012 में कंपनी को खुद को दिवालिया घोषित करना पड़ा। वजह थी कि कोडक, फिल्म कैमरे से डिजिटल कैमरे की ओर छलांग नहीं लगा सकी।
कंफर्ट जोन में रहना हम सभी को भाता है लेकिन वहां विकास अवरुद्ध होता है। कभी-कभी तो ऐसी पछाड़ लगती है कि फिर खड़ा होना ही एक चुनौतीपूर्ण उद्यम बन जाता है। संक्षेप में सार ये है कि साहस कोई विकल्प नहीं अपितु उन्नति का अनिवार्य अंश है। वर्ष 2002 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने बीते 1000 वर्ष के 200 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की एक सूची तैयार की।
दस शताब्दी के कालखंड की महत्वपूर्ण हस्तियों की इस सूची में दो ही भारतीय थे- एक महात्मा गांधी, दूसरे प्रमुख स्वामी महाराज। गुजरात के एक दूरदराज इलाके के चाणसद जैसे छोटे से गांव में जन्मे और सिर्फ छठवीं तक ही पढ़े प्रमुख स्वामी महाराज की इस दैदीप्यमान सफलता में उनकी साहसिकता झलकती है। साहस आपके कदमों में अकल्पनीय उपब्धियां-सिद्धियां लेकर आएगा लेकिन यह भी जानना-समझना व याद रखना अपेक्षित है कि साहस कैसा करना है?
महंत स्वामी महाराज (बीएपीएस के वर्तमान गुरु) कहते हैं कि सफल देने वाला, उन्नति करने वाला और उचित हो वह साहस करना चाहिए। मन और लोगों का रंजन करने वाला साहस नहीं करना चाहिए। प्रमुख स्वामी महाराज के किसी भी कार्य के पीछे यह जीवन भावना होती थी कि- यदि हमारी नियति-उद्देश्य शुद्ध होगा तो ईश्वर हमारे साथ रहेगा। इसलिए जरूरी है कि कोई भी साहस करने से पहले उसके उद्देश्य की परख-पड़ताल कर ली जाए।
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