- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- वंशवाद की निंदा तो सभी...
वंशवाद की निंदा तो सभी करते हैं पर कोई दल छोड़ता क्यों नहीं है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आज से लगभग पांच दशक पहले एक फिल्म आई थी- सगीना महतो! उसमें एक गाना था- "भोले-भाले ललुआ खाए जा रोटी बासी. बड़ा होकर बनेगा साहेब का चपरासी!" इस गीत में गरीब बच्चे की नियति यही बताई गई है, कि बड़ा होकर वह भी बाप की तरह कोई मजदूर या चपरासी बनेगा. यह एक विद्रूप था, व्यंग्य था व्यवस्था पर. एक तरह से बताया जा रहा था कि भले ही हम लोकतंत्र में जी रहे हों, लेकिन संसाधनों पर कब्ज़ा एक विशेष वर्ग ने ही कर रखा है. यह विशेष वर्ग है उन राजनीतिकों का, जिन्होंने सत्ता के ऊपर वंशवाद ऐसा थोप दिया है, जिसके चलते आम आदमी के विकास के सारे रास्ते बंद हैं. अब देखिए, इस वंशवाद की निंदा तो सब करते हैं, लेकिन कोई भी पार्टी, राजनीतिक दल, संगठन और अफसरों की जमात इससे अछूती नहीं है. सब अपने बेटों को अपनी जगह देखना चाहते हैं, फिर उसके लिए चाहे कितनी तिकड़में करनी पड़ें. आज़ादी की लड़ाई के दौरान के वे त्यागी, विरागी और तपे हुए नेता अब नहीं रहे. अब हर छुटभैया नेता अपने ही परिवार से चिराग उठाता है.