सम्पादकीय

हर कोई अपनी जिंदगी का 'रीसेट' बटन दबा सकता है, हर चीज के लिए किस्मत को दोष न दें

Rani Sahu
31 Aug 2021 3:38 PM GMT
हर कोई अपनी जिंदगी का रीसेट बटन दबा सकता है, हर चीज के लिए किस्मत को दोष न दें
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उसने 10 वर्ष से दुनिया नहीं देखी है, जबकि वह अभी महज 25 वर्ष की है। दरअसल 2011 में एक बाइक हादसे में उसकी दृष्टि छिन गई थी

एन. रघुरामनउसने 10 वर्ष से दुनिया नहीं देखी है, जबकि वह अभी महज 25 वर्ष की है। दरअसल 2011 में एक बाइक हादसे में उसकी दृष्टि छिन गई थी। उसके माता-पिता और भाई-बहनों ने यह सुनिश्चित करने में काफी मेहनत की कि वह सामान्य जीवन जी सके और खुद अपनी आजीविका कमा पाए। एक महिला के लिए यह आसान नहीं था। फिलहाल वह आगरा के एक स्कूल में मेंटल मैथ्स पढ़ाती है। लेकिन इस सोमवार उसने अपनी जिंदगी का रीसेट बटन दबाने का फैसला लिया।

आपमें से बहुत से लोग सोमवार को वर्चुअली उससे मिले होंगे और मेंटल मैथ्य के गुर सीखे होंगे, अगर आपने महानायक अमिताभ बच्चन का केबीसी कार्यक्रम देखा होगा। आप निश्चिततौर पर उसके हैप्पीनेस वायरस से आकर्षित हुए होंगे। मिलिए हिमानी बुंदेला से जो कार्यक्रम के 13वें एडिशन की पहली करोड़पति बनी हैं।
उससे एक दिन पहले, रविवार को गुजरात की 34 वर्षीय दिव्यांग, भाविना पटेल ने देश को गौरवान्वित किया। वे पैरालिंपिक्स में मेडल जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला और टेबल टेनिस में जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं। मेहसाना के नजदीक बर्तन की छोटी-सी दुकान चलाने वाले परिवार के घर जन्मी भाविना को मात्र 12 माह की उम्र में पोलियो हो गया। वे तब से व्हीलचेयर पर हैं। उनके पिता हसमुख पटेल के टीवी साक्षात्कार को सुनकर लगता है कि इन 33 वर्षों में भाविना ने परिवार को कभी महसूस नहीं होने दिया कि वे दिव्यांग हैं।
उन्होंने टेबल टेनिस खेलना शुरू किया और 2007 में पैरा स्पोर्ट्स (दिव्यांगों के लिए खेल प्रतियोगिताएं) को पूरी तरह अपना लिया। अब तक वे भारत का 28 अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। वर्ष 2011 में पीटीटी थाइलैंड चैम्पियनशिप में सिल्वर जीतकर वे अपने कॅरिअर के सर्वश्रेष्ठ, दूसरे पायदान पर पहुंचीं। फिर बीजिंग में उन्होंने 2013 में एशियन चैम्पियनशिप में सिल्वर जीता। उन्होंने भारत के लिए 2017 में आईटीटीएफ एशियन चैम्पियनशिप में ब्रॉन्ज और 2021 में टोक्यो पैरालिम्पिक्स में सिल्वर जीता।
हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के 21 वर्षीय निषाद कुमार जब आठ वर्ष के थे, तब परिवार के खेत पर काम करते हुए घास काटने की मशीन में उन्होंने अपना हाथ खो दिया। वे हाईजम्प का प्रशिक्षण लेने पंचकुला के ताऊ देवीलाल स्टेडियम आ गए और दुबई में 2019 में गोल्ड मेडल जीतकर शुरुआत की। पिछले हफ्ते वे दुनिया शीर्ष तीन में पहुंचे और टोक्यो पैरालिम्पिक्स में ब्रॉन्ज जीता।
रोहतक (हरियाणा) के 41 वर्षीय विनोद कुमार एक सैन्य परिवार से आते हैं। उनके पिता ने पाकिस्तान के खिलाफ 1971 का युद्ध लड़ा था। विनोद भी पढ़ाई पूरी कर सीमा सुरक्षा बल से जुड़े। वे 2002 में जब प्रशिक्षण कार्यक्रम में थे तो लेह में एक चोटी से गिर गए और पैरों में गंभीर चोटों के कारण उन्हें 10 साल से ज्यादा बिस्तर पर रहना पड़ा।
उन्हें 2016 पैरालिम्पिक्स के दौरान पैरा स्पोर्ट्स के बारे में पता चला और उन्होंने रोहतक साई सेंटर में डिस्कस थ्रो की ट्रेनिंग शुरू की। उन्हें 2017 और 2018 में राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स में ब्रॉन्ज मेडल मिला और पिछले हफ्ते उन्होंने टोक्यो पैरालिम्पिक्स 2021 में ब्रॉन्ज जीता। वहां विनोद की जीत के खिलाफ विरोध दर्ज किया गया है लेकिन भारतीय दल को भरोसा है कि वे ब्रॉन्ज मेडल बरकरार रखेंगे।
फंडा यह है कि हर चीज के लिए किस्मत को दोष न दें। दृढ़निश्चय के साथ कोई भी अपनी जिंदगी का 'रीसेट' बटन दबाकर, बुरी तरह गिरने के बावजूद उठकर सफल हो सकता है।


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