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भारत के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण एवं चिंता का विषय है कि यहां के लोग भारत की नागरिकता छोड़ रहे हैं
By लोकमत समाचार सम्पादकीय |
भारत के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण एवं चिंता का विषय है कि यहां के लोग भारत की नागरिकता छोड़ रहे हैं. पिछले तीन साल से औसतन 358 लोग प्रतिदिन और प्रतिवर्ष लगभग 1 लाख 63 हजार लोग भारत की नागरिकता त्यागकर विदेशों में बस गए हैं. भारत से पलायन कर विदेशों में बसने के क्या कारण हैं? ऐसा क्यों हो रहा है?
क्या आम नागरिकों को जिस तरह का सहज एवं शांतिपूर्ण जीवन अपेक्षित होता है, उसका अभाव पलायन का कारण है? क्या रोजगार एवं जीवन-निर्वाह की मूलभूत सुविधाएं सुलभ कराने में सरकार नाकाम हो रही है? जो भी कारण हों, नागरिकों का भारत से पलायन एक गंभीर समस्या है. इसके कारणों का पता लगाकर उस पर नियंत्रण किया जाना नितांत अपेक्षित है.
भारत दुनिया में तेजी से आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर होता राष्ट्र है. देश में विकास की फिजां बन रही है, शांति का हिंसामुक्त वातावरण बन रहा है. रोजगार एवं व्यापार की अनेक संभावनाएं उजागर हो रही हैं. फिर भी बड़ी संख्या में भारतीय पलायन कर रहे हैं.
रोजगार की दृष्टि से ही नहीं, शिक्षा की दृष्टि से भी विदेशों का आकर्षण बढ़-चढ़कर सामने आ रहा है. 'ओपन डोर' संस्था की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 में अमेरिकी कॉलेजों में दाखिला लेने वाले भारतीय छात्रों में पच्चीस फीसदी वृद्धि हुई. अमेरिकी अर्थव्यवस्था में उन्होंने बहुमूल्य योगदान दिया है. सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि पिछले कुछ साल में यूरोप और ऑस्ट्रेलिया जाने वाले छात्रों की संख्या में भी नाटकीय वृद्धि हुई है. जबकि इसी दौर में भारत में बड़ी संख्या में उच्च शिक्षण संस्थान और विश्वविद्यालय खुले हैं. आखिर ये छात्र देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में क्यों नहीं पढ़ना चाहते?
एक ओर भारत में उच्च शिक्षा के स्तर को लेकर सवाल उठते रहे हैं तो दूसरी ओर पढ़ने के लिए छात्र बड़ी संख्या में विदेशों का रुख कर रहे हैं, जिसका दुष्प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है. यह स्थिति भारत के विकास की एक बड़ी बाधा है. बिना प्रतिभाओं के कैसा विकास?
भारत में विभिन्न क्षेत्रों के प्रवीण, प्रतिभासंपन्न एवं विलक्षण क्षमता वाले व्यक्तियों की बड़ी तादाद है, जिनमें वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ, साहित्य या कलाओं के विद्वान, चित्रकार, कलाकार, प्रशासनिक अधिकारी, डाक्टर, सी.ए. शामिल हैं. असाधारण प्रतिभासंपन्न ऐसे लोगों का अपने देश की प्रगति और समृद्धि में योगदान होना चाहिए, जबकि वे विदेशों में रहकर अपनी प्रतिभा का उन देशों को लाभ पहुंचा रहे हैं.
हो सकता है ऐसे योग्य व्यक्तियों में से कुछ लोगों को अपने ही देश में कोई संतोषजनक काम नहीं मिल पाता या किसी न किसी कारण से वे अपने वातावरण से तालमेल नहीं बिठा पाते. ऐसी परिस्थितियों में ये लोग बेहतर काम की खोज के लिए या अधिक भौतिक सुविधाओं के लिए दूसरे देशों में चले जाते हैं. भारत में व्यापार करने की स्थितियां भी सहज एवं सरल होने की जगह जटिल होती जा रही हैं.
छोटे व्यापारियों के लिए व्यापार करने की जहां अनेक चुनौतियां हैं, वहीं प्रशासनिक जटिलताएं भी कम नहीं हैं.
भारत से पलायन कर अमेरिका जाने वाले 44 प्रतिशत भारतीय बाद में वहां की नागरिकता हासिल कर वहीं बस जाते हैं. कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जाने वाले 33 प्रतिशत भारतीय भी ऐसा ही करते हैं. ब्रिटेन, सऊदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, सिंगापुर आदि देशों में भी बड़ी संख्या में भारतीय बसे हैं.
गृह मंत्रालय के अनुसार 1.25 करोड़ भारतीय नागरिक विदेश में रह रहे हैं, जिनमें 37 लाख लोग ओसीआई यानी ओवरसीज सिटिजनशिप ऑफ इंडिया कार्डधारक हैं. हालांकि इन्हें भी वोट देने, देश में चुनाव लड़ने, कृषि संपत्ति खरीदने या सरकारी कार्यालयों में काम करने का अधिकार नहीं होता है. पढ़ाई, बेहतर करियर, आर्थिक संपन्नता और भविष्य को देखते हुए भारत से बड़ी संख्या में लोग विदेश का रुख करते हैं.
पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले लोगों में से करीब 80 प्रतिशत लोग वापस भारत नहीं लौटते हैं. करियर की संभावनाओं को देखते हुए और अच्छे अवसर मिलने के कारण वे विदेश में बस जाते हैं.
Rani Sahu
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