सम्पादकीय

हर साल पूरी दुनिया में प्रदूषण से मरते हैं एक करोड़ लोग, इतने तो कोविड, आतंकवाद और सिगरेट-शराब से भी नहीं मरते

Rani Sahu
17 Nov 2021 9:09 AM GMT
हर साल पूरी दुनिया में प्रदूषण से मरते हैं एक करोड़ लोग, इतने तो कोविड, आतंकवाद और सिगरेट-शराब से भी नहीं मरते
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हर साल पूरी दुनिया में एक करोड़ से ज्‍यादा लोग इसलिए मरते हैं

मनीषा पांडेय हर साल पूरी दुनिया में एक करोड़ से ज्‍यादा लोग इसलिए मरते हैं क्‍योंकि वो जिस हवा में सांस ले रहे हैं, वो हवा जहरीली है. क्‍योंकि इंसान पर पैसे, पावर और सफलता का ऐसा नशा सवार है कि उस रास्‍ते अगर जल, जंगल, जमीन सबकुछ की कुर्बानी देनी पड़े तो उसे कोई संकोच नहीं हो रहा. क्‍योंकि विकास के नाम पर इंसान इतने जहरीले केमिकल बना रहा है, जो पर्यावरण को तबाह कर रहे हैं. क्‍योंकि विकास का झूठा भ्रम पाले इंसान को इतनी सारी ऊंची चमकीली इमारतें खड़ी करनी है कि अगर उसके लिए हजारों-हजार पेड़ों और जंगलों को तबाह करना पड़े तो इंसान को न जरा सी शर्म आती है, न संकोच होता है.

कितनी भी सरल भाषा में और जाने कितने उदाहरणों के साथ कह दो कि पटाखे इसलिए नहीं फोड़ने चाहिए कि इससे वायु प्रदूषण होता है, हवा खराब होती है लेकिन मजाल है जो इंसान की बुद्धि में ये इतनी सीधी, इतनी मामूली सी बात घुस जाए. उसे धर्म, जाति, भेदभाव के सारे तर्क-कुतर्क समझ में आ जाते हैं, लेकिन इतनी सी बात समझ में नहीं आती कि इंसान जिस घर में रहता है, उसी घर में कचरा नहीं फैलाता.
कचरा तो वो खुद अपने घर में भी नहीं फैलाते. अपना घर बुहारकर कचरा बाहर फेंक देते हैं. लेकिन हवा के साथ तो ऐसा है कि कोई चाहे भी तो अपने लिए अलग से हवा और ऑक्‍सीजन का इंतजाम नहीं कर सकता, चाहे वो कितना भी करोड़पति क्‍यों न हो. हां, गंदी हवा वाले शहर को छोड़कर हवाई जहाज में बैठकर साफ हवा वाले शहर में जरूर जा सकता है, जहां बेहतर ऑक्‍सीज है, जहां की हवा में जहर नहीं घुला हुआ है. लेकिन बाकियों को तो उसी जहर में सांस लेना है, लेकिन मलाज है जो उसकी आंखों पर पड़ा पर्दा हिल जाए.
इसी साल मार्च में साइंस डायरेक्‍ट जनरल में एक लंबी रिपोर्ट छपी, जो प्रदूषण के कारण पूरी दुनिया में हर साल होने वाली बीमारियों और मौतों का हलफिया बयान है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी दुनिया में पर्टिकुलेट मैटर के कारण 10.2 मिलियन लोग मरते हैं. यह संख्‍या इतनी बड़ी है कि इतने तो हर साल क्रॉनिक बीमारियों से भी लोग नहीं मरते. न ही सिगरेट और शराब के कारण इतने लोग मरते हैं, जिसे लेकर इतना हल्‍ला मचाया जाता है. और सबसे बड़ी बात कि इतने लोग हर साल पूरी दुनिया में आतंकवाद से भी नहीं मरते, जिससे लड़ने के नाम पर दुनिया के सारे ताकतवर मुल्‍कों ने अपनी सारी सेना, इंटेलीजेंस एजेंसियां और पैसा झोंक रखा है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका ने 9/11 के हमले के बाद आतंकवाद से निपटने के नाम पर अपने कुल संसाधनों की 43 फीसदी सेना, बम, बंदूकों, पुलिस और इंटेलीजेंस एजेंसियों पर खर्च किया, जिसका दस हजारवां हिस्‍सा भी वो अपनी हवा को साफ रखने के लिए खर्च नहीं करता, जिसकी वजह से अमेरिका में हर साल 3 लाख से ज्‍यादा मौतें होती हैं. इतने लोग तो 9/11 के हमले में भी नहीं मरे थे. इतने तो अफगानिस्‍तान में भी नहीं मरे, जहां अमेरिका ने खरबों डॉलर पानी की तरह बहा दिए.
ग्‍लोबल वार्मिंग, पर्यावरण ये सब हमें वायवीय से शब्‍द लगते हैं. लगता है, ये कोई ऐसी काल्‍पनिक चीज है, जिसका हमारे जीवन से सीधा-सीधा कोई रिश्‍ता नहीं है. जबकि मौसम तबाह हो रहे हैं, ठंड में बरसात, बरसात में गर्मी, गर्मी में ठंड पड़ रही है, प्रकृति का सारा संतुलन उल्‍टा-सीधा हो रहा है, लेकिन हमें समझ में नहीं आता कि इसकी वजह कोई और नहीं, बल्कि हम खुद हैं.
ग्लोबल वार्मिंग के कारण न्यूयॉर्क से लेकर मुंबई, मालदीव और बांग्लादेश, थाईलैंड जैसे देश पूरी तरह से खत्म हो सकते हैं.
वो इंसान, जो लालच में इतना अंधा हो गया है कि खुद अपना ही दुश्‍मन बन बैठा है. ये विकास आखिर किसके लिए है. अगर धरती पर जीवन ही नहीं होगा तो विकास लेकिन क्‍या माथे पर सजाएंगे और सजाएगा भी कौन.
वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गेनाइजेशन का कहना है कि आने वाले समय में पर्यावरणीय असंतुलनइंसानियत के लिए सबसे बड़ा खतरा है. डब्‍ल्‍यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल दुनिया में 7 मिलियन यानि करीब 70 लाख लोग प्रदूषण के कारण मरते हैं.
अब तो पर्यावरण को बचाने के नाम पर हर साल समिट भी होने लगे हैं. दुनिया के सारे ताकतवर देश बैठकर हर साल ये चर्चा करते हैं कि दुनिया को बर्बाद होने से कैसे रोका जाए. कार्बन इमिशन को कैसे कम किया जाए और अंत में पता ये चलता है कि दुनिया के सबसे अमीर और सबसे ताकतवर देश पर्यावरण को तबाह करने में सबसे आगे हैं. सबसे ज्‍यादा कार्बन इमिशन उन्‍हीं के देशों में हो रहा है.
खरबों की दौलत कमाकर अंतरिक्ष में घूमकर आने के बाद जेफ बेजोस ने ग्‍लोबल वार्मिंग के लिए अपनी निजी संपत्ति में से 10 अरब डॉलर देने का संकल्‍प लिया है. हालांकि इसके ठीक पहले उन्‍होंने महज अंतरिक्ष की सैर करने के लिए 4 मिनट में 5.5 अरब डॉलर फूंक दिए थे.
अपने देश की बात करें तो पूरी दुनिया के सबसे प्रदूषित और सबसे खराब हवा वाले देशों में भारत, पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश का नाम सबसे ऊपर है. हम इस बात पर इतना सकते हैं कि पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश हमसे भी ऊपर हैं, लेकिन हम भी बस तीसरे नंबर पर ही हैं.
विश्‍व गुरू होने का दावा करने वाले मुल्‍क की हवा सबसे खराब है. अगर आपके पास अरबों रुपए हैं तो भी अगर आप इस देश में रहते हैं तो आप जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं. आपके शरीर में कितनी बीमारियां सिर्फ इस वजह से पल रही होंगी क्‍योंकि आपकी हवा साफ नहीं है.
बाकी इंसानी हक, न्‍याय, बराबरी की बातें तो बाद में आती हैं. हर इंसान का सबसे पहला हक तो यही है कि उसे पीने को साफ पानी और सांस लेने के लिए साफ हवा मिले. लेकिन इंसान को वो भी नसीब नहीं. और उस पर ये तुर्रा ये है कि पूरी दुनिया में हमारा डंका बजता है.
इससे बड़ा दुर्भाग्‍य और क्‍या हो सकता है कि हम अपने ही घर को तबाह किए दे रहे हैं और हमें इस बात का इलहाम भी नहीं है.


Rani Sahu

Rani Sahu

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