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सड़क कब मौत की खाई तक पहुंच जाए या वाहन कब श्मशान की अर्थी बन जाएं
सोर्स- divyahimachal
सड़क कब मौत की खाई तक पहुंच जाए या वाहन कब श्मशान की अर्थी बन जाएं, इस पर सोचे बिना हम हिमाचल की यातायात व्यवस्था का मूल्यांकन नहीं कर सकते। अचानक दो दिन पहले कांगड़ा बाइपास के समक्ष एक बाइक खाई में उतर जाती है और दोनों सवार मौत के आगोश में समाहित हो जाते हैं। इसी तरह रामशहर में दोपहिया वाहन पर दंपती अपनी अंतिम यात्रा पर निकल जाते हैं। घुमारवीं में आईटीआई जा रहा युवा या सारचू पार कर रहा पर्यटक अपने दोपहिया वाहनों के कारण आज इस दुनिया में नहीं हैं। प्रदेश में हर साल बारह सौ लोग सड़क पर किसी न किसी बहाने, लापरवाही, गति या सड़क के कारण मौत के मुंह में समा रहे हैं, लेकिन हम केवल एक घटना को देखकर यह नहीं समझ पा रहे कि यह हिमाचल की यातायात व्यवस्था का अंजाम भी तो है। मरने वाले पंजीकृत वाहनों पर या वैध ड्राइविंग लाइसेंस के बावजूद दुखद घटना का शिकार होते हैं, तो यह मानना पड़ेगा कि स्थिति में कोई सुधार नहीं है। ब्लैक स्पॉट ढूंढता विभाग या क्रैश बैरियर लगाता उपचार हो, हर बार पसलियां टूटती हैं, अपंग होते हैं या घाव का ताव न सहते हुए लोग मर जाते हैं। गाडि़यां और सड़कें गति को प्रेरित कर रही हैं, लेकिन ट्रैफिक व्यवस्था सही ढंग की ड्राइविंग नहीं सिखा पा रही। आश्चर्य है कि हिमाचल में पंद्रह फीसदी लोग तो पैदल चलते हुए वाहनों की टक्कर से मर रहे हैं। क्या हमारी सड़कें इस लायक भी नहीं कि कोई पैदल यात्री सुकून से चल सके। हद तो यह कि पूरे प्रदेश के चौक-चौराहे घातक बने हुए हैं, लेकिन यातायात के अनुरूप इनका न तो विस्तार हो रहा है और न ही इन्हें संचालन सुविधाओं से सुसज्जित किया जा रहा है। सड़कों पर ट्रैफिक नियमों की अवहेलना अब हिमाचल की यातायात व्यवस्था बन चुकी है, फिर भी यह देखना पड़ेगा कि सड़कों के कारण वाहन चालन में खीज क्यों उभर रही है।
एक संकरी सड़क पर बिना किसी व्यस्थित बस स्टॉप के यहां-वहां लगती ब्रेक, मुख्य बाजारों से निकलता यातायात, सड़क पर घात लगाए बैठी भवन निर्माण सामग्री, अतिक्रमण से सिकुड़ती सड़कें और अधीर होते वाहन चालकों के कारण, यातायात सुरक्षा अब सबसे बड़ा प्रश्न होना चाहिए। खास तौर पर युवा या दोपहिया वाहन चालकों पर कड़ी नज़र अगर नहीं रहेगी, तो सीधे रास्ते भी टेढ़े-मेढ़े यातायात के गुलाम हो जाएंगे। प्रदेश के व्यापारिक, सार्वजनिक व निजी वाहनों के बीच एक अद्भुत होड़ है, तो उस जीवन शैली को समझा जाए जो या तो ढांचागत दुरुस्ती चाहती है या ट्रांसपोर्ट के तरीके बदलने की दुहाई दे रही है। हम जिस सड़क पर सेब, सरिया या सीमेंट ढोते हैं, उसी पर नॉन स्टाप बस के जरिए शिमला पहुंचना चाहते हैं। न रूट परमिट बांटते विभाग को कुछ पता कि गंतव्य तक पहुंचने के घंटों में कितना विषाद है और न ही जनता को पता चल रहा है कि सड़क दुर्घटनाओं के पीछे क्या ़फसाद है। हर कोई तंग गली से निकलकर भागना चाहता है। हर कोई ट्रैफिक नियम ताक पर रखकर आगे निकलना चाहता है। हर कोई मुकाबिल है, जनता दुर्घटनाओं की तमाशबीन और जनप्रतिनिधि सड़कों की लंबाई के शौकीन। पुलिस वीआईपी ड्यूटी में जिस तरह वाहनों को चलाती है, वही रूटीन हर दिन सड़क के हर किलोमीटर पर चल जाए तो कई लापरवाह ड्राइवर बच जाएंगे या यातायात नियमों की संस्कृति में तमाम वाहन चालक बच जाएंगे, वरना हिमाचल की वर्तमान सड़कें अपनी योग्यता की कमजोरी में लंबी बसों, वोल्वो बसों, टैक्सियों, निजी बसों, या खासकर दोपहिया वाहनों की दौड़ में कलंकित होती रहेंगी।

Rani Sahu
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