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दुर्भाग्य है कि आज भी भारतीय समाज अपनी ही जाति में विवाह की विचारधारा में जकड़ा हुआ है
सुनीता मिश्रा। दुर्भाग्य है कि आज भी भारतीय समाज अपनी ही जाति में विवाह की विचारधारा में जकड़ा हुआ है। हमारे समाज के कुछ लोग आज भी मध्यकाल में जी रहे हैं। वे अपनी झूठी शान के लिए अपनों को मौत के मुंह में धकेलने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। सभ्य समाज के लिए आनर किलिंग की घटनाएं बहुत बड़ी त्रासदी बनती जा रही हैं। बीते दिनों महाराष्ट्र के औरंगाबाद में छोटे भाई ने मां के साथ मिलकर अपनी 19 साल की गर्भवती बहन को मार दिया। युवती का दोष केवल इतना था कि उसने घरवालों की मर्जी के खिलाफ जाकर कोर्ट मैरिज की थी।
हमारे देश में यह कोई पहला मामला नहीं है, जब झूठी शान के लिए रिश्तों का कत्ल किया गया हो। इससे पहले भी कई परिवार वालों ने अंतरजातीय विवाह करने पर अपने बच्चों को मौत के घाट उतारा है। वर्ष 2020 में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में 28 साल के युवक की हत्या कर दी गई थी, क्योंकि उसने अपने ही गांव की एक दूसरी जाति की लड़की से प्रेम किया था। इसी तरह वर्ष 2019 में गुजरात के अहमदाबाद में एक युवक हरेश सोलंकी को लड़की के घरवालों ने मौत के घाट उतार दिया था। झूठी शान के लिए मानवता को शर्मसार करने वालों में आखिर कानून का भय क्यों नहीं दिखता?
बताते चलें कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत वयस्कों को अपनी पसंद से जीवन साथी चुनने का अधिकार है। इस अधिकार में दखल देना संविधान के खिलाफ है। जब दो वयस्क एक दूसरे को जीवन साथी के रूप में चुनते हैं तो यह उनकी पसंद की एक अभिव्यक्ति है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) के तहत मान्यता प्राप्त है।इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने भी अंतरजातीय विवाह को व्यक्ति की पसंद, उसके बुनियादी हक और आत्मसम्मान का अहम हिस्सा बताया है। कोर्ट के अनुसार, 'किसी की पसंद को झूठी शान के नाम पर कुचलना उसको शारीरिक प्रताड़ना देने के बराबर है, जिससे समाज सिहर उठता है।
'दुर्भाग्य है कि आज भी भारतीय समाज अपनी ही जाति में विवाह की विचारधारा में जकड़ा हुआ है। सामाजिक दबाव के चलते कई माता-पिता अपने बच्चों की खुशियों का गला घोंट देते हैं और उन्हें अपनी ही जाति में विवाह करने के लिए मजबूर करते हैं, जिसके बाद कई अप्रिय घटनाएं सामने आती हैं। उन्हें इससे भी फर्क नहीं पड़ता कि वे उनके द्वारा कराए जा रहे है विवाह से खुश हैं या नहीं। उस समय परिवार केवल और केवल अपना सम्मान सर्वोपरि रखता है।
यह सच है कि अपने बच्चों के लिए माता-पिता के भी कुछ अरमान होते हैं। जन्म से पहले ही अभिभावक अपने बच्चों के भविष्य के सपने संजोने लगते हैं। इसलिए उनके बेहतर कल के लिए उनकी चिंता लाजमी है, लेकिन प्यार करने वालों को मौत की सजा देने का अधिकार उन्हें किसने दिया है? बच्चों को जान से मार देना किसी समस्या का समाधान नहीं है। इसके बजाय उन्हें नैतिक शिक्षा और संस्कार दें।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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