सम्पादकीय

चुनावों में भी वो गर्मी नहीं जो इस कड़कड़ाती ठंड से निजात दिला सके

Gulabi
23 Dec 2021 1:52 PM GMT
चुनावों में भी वो गर्मी नहीं जो इस कड़कड़ाती ठंड से निजात दिला सके
x
उत्तर भारत में लटालूम ठंड पड़ रही है। अब ये लटालूम क्या बला है
नवनीत गुर्जर का कॉलम: उत्तर भारत में लटालूम ठंड पड़ रही है। अब ये लटालूम क्या बला है! दरअसल पेड़ की टहनी से लूमता यानी लटकता हुआ कुछ जो होता है, उसे लटालूम कहते हैं। मुख्यतया आम के पेड़ में जो भारी संख्या में मौर (मौर जिसमें कैरियां लगती हैं) आते हैं, वे नीचे की तरफ लटकते हैं। वहीं से यह शब्द निकला है लटालूम। बाद में तो इस शब्द का राजनीतिक उपयोग भी होने लगा। किसी वक्त भारी बहुमत को लटालूम कहा गया।
किसी समय एक पार्टी से दूसरी में बड़ी संख्या में पलायन को भी लटालूम कह दिया गया। फिलहाल हम ठंड की बात कर रहे हैं। बर्फ की बूंदें पेड़ों की टहनियों, पत्तों से लटक रही हैं और इसी को लटालूम कहा जा रहा है। ठंड बेतहाशा है। उत्तर और मध्य भारत में ही नहीं, पश्चिम में भी शीत लहर चल पड़ी है। गुजरात के लोग भी ऊपर से नीचे तक ढंके छिपे, बाक़ायदा कनटोप लगाए नजर आ रहे हैं। बहरहाल, ठंड उत्तर भारत में ज्यादा है।
लोग नहाने से घबरा रहे हैं। थर थर कांपते, दांत किटकिटाते ( एक-दूसरे पर नहीं, खुद ही खुद पर) लोग यहां वहां देखे जा रहे हैं। आज कल, सुबह भी बड़ी देर से जागती है। देर तक कोहरा उसे जागने नहीं देता। शाम का चेहरा भी जल्द स्याह हो जाता है। गुजरात और मध्यप्रदेश के पंचायत चुनावों में भी वो गर्मी नहीं जो इस कड़कड़ाती ठंड से निजात दिला सके।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में जरूर इतनी गर्मी हो सकती है लेकिन उन चुनावों का अलाव अभी ठीक से जला नहीं है या कहा जा सकता है कि जलाया ही नहीं गया है। चुनावों के लिए आखिर अभी से कोई माथापच्ची क्यों करें भला। अंदरखाने तैयारी चल रही है। कहीं कोई फंड बनाया जा रहा है। उसमें पैसे भी डाले जा रहे हैं लेकिन हल्ला उतना नहीं है जितना होना चाहिए।
समय आने पर हल्ला भी होगा। गुल्ला भी होगा। फिलहाल तो कड़कड़ाती ठंड है और इस मुई ठंड में तो जोर से बोला भी नहीं जाता। हल्ला -गुल्ला तो दूर की, बहुत दूर की बात है। ठंड जैसे जैसे बढ़ रही है, कोरोना हर साल की तरह अपनी एनिवर्सरी मनाने की तैयारी में है। जनवरी में उसकी एनिवर्सरी आती है। पांच दिन पहले तक देश में ओमिक्रॉन के केवल सौ मामले थे, पांच दिन में दो सौ से ज्यादा हो गए।
हालांकि अब तक वैक्सीन के 140 करोड़ डोज लग चुके हैं। इनमें लगभग 57 करोड़ को डबल डोज और लगभग 83 करोड़ को सिंगल डोज लग चुका है। इसलिए इस बार दूसरी लहर जैसा कोहराम मचने की आशंका बहुत कम है। अच्छी बात यह है कि ओमिक्रॉन के ज्यादातर मामलों में लोग ठीक हो रहे हैं। कई मामलों में तो अस्पताल जाने की भी जरूरत नहीं पड़ी। यानी दूसरी लहर जितना गंभीर नहीं लगता इस बार का ये नया वैरिएंट। फिर भी सावधानी जरूरी है। मास्क भी जरूरी है।
पेड़ की टहनी से लूमता यानी लटकता हुआ कुछ जो होता है, उसे लटालूम कहते हैं। मुख्यतया आम के पेड़ में जो भारी संख्या में मौर (जिसमें कैरियां लगती हैं) आते हैं, वे नीचे की तरफ लटकते हैं। वहीं से यह शब्द निकला है लटालूम।
Next Story