सम्पादकीय

बच्‍चों की कहानियों में भी सारे महत्‍वपूर्ण किरदार मर्द हैं, औरतें सिर्फ उन मर्द किरदारों का लव इंटरेस्‍ट

Gulabi
18 Dec 2021 6:01 AM GMT
बच्‍चों की कहानियों में भी सारे महत्‍वपूर्ण किरदार मर्द हैं, औरतें सिर्फ उन मर्द किरदारों का लव इंटरेस्‍ट
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जो ये कहते हैं कि बच्‍चों की कहानियां और फिल्‍में भी ज्‍यादातर महत्‍वपूर्ण मर्द किरदारों के इर्द-गिर्द ही बुनी जाती हैं
मर्द हर जगह प्रभुत्‍व और नेतृत्‍व की भूमिका में हैं. वयस्‍कों ही नहीं, छोटे-छोटे बच्‍चों की भी दुनिया में. उनकी कहानियों में, उनके सिनेमा में, उनकी किताबों में, उनके आसपास के समाज में, उनके घरों में और उनके जीवन में. बच्‍चे, जो अभी न मर्द हैं, न औरत. न ताकतवर हैं, न कमजोर. वो सिर्फ बच्‍चे हैं. अबोध मन-मस्तिष्‍क वाले, जो अभी गढ़े जा रहे हैं, आकार ले रहे हैं. जो निर्माण की प्रक्रिया में हैं.
लेकिन मर्दों के आधिपत्‍य वाली दुनिया अपने बच्‍चों को कैसे गढ़ रही है. अमेरिका की प्रिंसटन और एमोरी यूनिवर्सिटी में इसे लेकर एक स्‍टडी हुई कि बच्‍चों की कहानियों में स्‍त्री और पुरुष पात्र किस तरह के होते हैं और कितने. पिछले 60 वर्षों में बच्‍चों के लिए लिखी गई 3000 से ज्‍यादा किताबों का अध्‍ययन करके इस स्‍टडी के शोधकर्ताओं ने यह नतीजा निकाला कि पिछले 60 सालों में हमने अपने बच्‍चों को जितनी किताबें, जितनी कहानियां पढ़ाईं, उन सबमें प्रमुख किरदार कोई मर्द ही है, औरत नहीं.
ये इस तरह की पहली स्‍टडी नहीं हैं. इसके पहले जर्मनी, स्‍पेन, इस्राइल और अमेरिका में ऐसे कई अध्‍ययन हो चुके हैं, जो ये कहते हैं कि बच्‍चों की कहानियां और फिल्‍में भी ज्‍यादातर महत्‍वपूर्ण मर्द किरदारों के इर्द-गिर्द ही बुनी जाती हैं. मर्द ही प्रमुख निर्णायक भूमिकाओं में होते हैं. हैरी पॉटर जैसी कहानी, जो कि एक औरत ने लिखी है, वो भी इसका अपवाद नहीं है. यहां तक कि भारत में सत्‍यजीत रे जैसे नामी फिल्‍म डायरेक्‍टर और राइटर की की बच्‍चों के लिए लिखी कहानियों में भी एक भी महत्‍वपूर्ण स्‍त्री किरदार नहीं है.
हैरी पॉटर की लेखिका जे.के. रॉलिंग से जब एक पत्रकार ने ये सवाल पूछा तो उन्‍होंने कहा कि प्रकाशक का इस बात पर जोर था कि प्रमुख किरदार मेल ही होना चाहिए, फीमेल नहीं. प्रकाशकों का भी ये मानना है कि फीमेल किरदारों वाली कहानियां नहीं पढ़ी जातीं, फीमेल किरदारों वाली फिल्‍में नहीं चलतीं. इसलिए वो ऐसी कहानियों की डिमांड करते हैं, जिसका नायक मर्द हो और उसे ही दुनिया के बड़े-बड़े किले फतह करते हुए दिखाया गया हो.
द लॉयन किंग में सारे महत्‍वपूर्ण चरित्र पुरुष ही हैं, सिर्फ एक लड़की है और वो भी सिंबा का लव इंटरेस्‍ट
ये कहानियां सिर्फ छोटे लड़के नहीं, छोटी लड़कियां भी पढ़ रही हैं. चाइल्‍ड साइकॉलजी पर 60 साल तक वृहद कार्य और लेखन करने वाली जर्मन साइकॉलजिस्‍ट एलिस मिलर लिखती हैं कि इन कहानियों को पढ़कर जहां लड़के एक ऐसे मनुष्‍य के रूप में बड़े होते हैं, जिन्‍हें लगता है कि उनके जीवन का कोई बड़ा मकसद और अर्थ है, वहीं लड़कियां एक ऐसे मनुष्‍य के रूप में बड़ी होती हैं, जिनके जीवन का मकसद पुरुषों की मां और उनका लव इंटरेस्‍ट होना ही होता है. वो खुद को एक मनुष्‍य के रूप में नहीं देखतीं, जिसके जीवन का पत्‍नी और मां की भूमिकाओं से इतर भी कोई महत्‍व है, कोई अर्थ है.
एलिस मिलर लिखती हैं कि ये कहानियों बच्‍चों के मनोविज्ञान को डैमेज करने का काम करती हैं. लड़कियों के आत्‍मविश्‍वास पर इन कहानियों का नकारात्‍मक प्रभाव पड़ता है. वहीं लड़के भी इस सोच के साथ बड़े होते हैं कि लड़कियां सिर्फ प्‍यार और सेक्‍स करने के‍ लिए बनी हैं.
लेकिन क्‍या होता है, जब मर्दों की लिखी ऐसी कहानियों को कोई औरत सुनाने लगे?
फ्रीडा जैसी ऐतिहासिक फिल्‍म बनाने वाली अमेरिकन फिल्‍म डायरेक्‍टर जूली तैमोर को एक ऐसी कहानी सुनाने का मौका मिला, जो इसके पहले बच्‍चों के लिए छपी किताबों में और डिजनी की बनाई फिल्‍म में बहुत भव्‍य तरीके से सुनाई जा चुकी थी. कहानी थी लॉयन किंग की. जूली तैमाेर उस फिल्‍म का ब्रॉडवे थिएटर एडाॅप्‍टेशन कर रही थीं. एक भव्‍य मंचन के लिए तैयार हो रहा एक भव्‍य म्‍यूजिकल ड्रामा.
जूली तैमोर
लॉयन किंग की कहानी कौन नहीं जानता. ज्‍यादातर लोगों ने वो फिल्‍म भी देखी होगी. अब आंखें बंद करिए और याद करिए. क्‍या आपको उस फिल्‍म में कोई भी महत्‍वपूर्ण बड़ा स्‍त्री किरदार याद आता है. एक भी नाम अगर जेहन में आए तो. नहीं याद आएगा क्‍योंकि उस कहानी में कोई महत्‍वपूर्ण स्‍त्री किरदार है ही नहीं. सिंबा, पुंबा, मुफासा, सराबी, तिमोन, राफिकी, नाला सब के सब मेल हैं. सिर्फ नाला एक फीमेल कैरेक्‍टर है, जो सिंबा की बचपन की दोस्‍त है और बड़े होने पर सिंबा का लव इंटरेस्‍ट. एक और दूसरा फीमेल कैरेक्‍टर है, जो सिंबा की मां है. इसके अलावा बाकी सब मेल कैरेक्‍टर हैं. सिंबा के दोस्‍त, फ्रेंड, फिलॉसफर, गाइड.
कहानियां चाहे वयस्‍कों के लिए हों या बच्‍चों के लिए, फीमेल कैरेक्‍टर दो ही भूमिकाओं में दिखाई देते हैं. या तो हीरो की मां के रूप में या फिर उसके लव इंटरेस्‍ट के रूप में. जंगल बुक को ही याद कर लीजिए. मोगली की कहानी में मोगली की मां रक्षा के अलावा और कोई भी महत्‍वपूर्ण फीमेल किरदार नहीं था. बघीरा, बालू सब मेल थे. मां तो सब बच्‍चों की होती है. मोगली की भी थी. लेकिन मां के अलावा औरतें महत्‍वपूर्ण किरदार नहीं होतीं. बड़े और महत्‍वपूर्ण काम नहीं करतीं. जीवन और संसार को चलाने में उनका कोई भारी-भरकम रोल नहीं होता. वो सिर्फ मां होती हैं. बाकी फ्रेंड, फिलॉसफर, गाइड, सब मर्द होते हैं.
लेकिन मर्दों की लिखी इस कहानी को सुनाने की जिम्‍मेदारी एक जब औरत को मिली तो उसने मूल कहानी को उलट दिया. जूली तैमोर जब बच्‍चों और वयस्‍कों, दोनों के लिए लॉयन किंग को नाटक के रूप में तैयार कर रही थीं तो उन्‍होंने कहानी के सबसे महत्‍वपूर्ण और जरूरी किरदार राफिकी को मेल से बदलकर फीमेल कर दिया.
हैरी पॉटर में भी एक भी महत्‍वपूर्ण किरदार स्‍त्री नहीं हैं, जबकि ये कहानी खुद एक स्‍त्री ने लिखी है
अब उस कहानी में सिंबा की मां और लव इंटरेस्‍ट के अलावा एक और फीमेल कैरेक्‍टर थी, जो बहुत महत्‍वपूर्ण थी. जो बुद्धिमान और काबिल थी. उम्रदराज और अनुभवी थी. जिसे सब आदर से देखते और उसके आगे सिर झुकाते थे. अब तक जिन भी बच्‍चों ने ये कहानी पढ़ी, उन्‍हें ऐसा नहीं लगा कि औरत भी बुद्धिमान, समझदार, चतुर, मेधावी, काबिल और आदर की पात्र हो सकती है. अब जो छोटे बच्‍चे ये कहानी देख रहे थे, उनके अबोध मन पर स्‍त्री की एक दूसरी ही छवि अंकित हो रही थी.
औरतें भी महत्‍वपूर्ण हैं. जरूरी हैं. केंद्रीय भूमिकाओं में हैं. बुद्धिमान हैं. यहां अलग से ये बताना जरूरी है कि लॉयन किंग का जूली तैमोर के द्वारा किया गया ब्रॉडवे अडॉप्‍टेशन अब तक का सबसे ज्‍यादा देखा गया और सबसे ज्‍यादा पैसे कमाने वाला नाटक है.
जूली तैमोर ने मर्दवाद की मजबूत दीवार में एक छोटी ही सही, कील ठोंक दी और दीवार में दरार पड़ गई.
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