सम्पादकीय

ज्वाइनिंग लेटर के लिए भी बिहार के युवाओं को चलाना पड़ रहा है कैंपेन

Gulabi
22 Nov 2021 4:20 PM GMT
ज्वाइनिंग लेटर के लिए भी बिहार के युवाओं को चलाना पड़ रहा है कैंपेन
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बिहार के युवाओं को चलाना पड़ रहा है कैंपेन
#GiveBiharTeachersAppointment. इस रविवार 21 नवंबर को ट्विटर पर अपनी तरह का यह अनूठा हैशटैग नंबर वन पर ट्रेंड कर रहा था. रात आठ बजे तक इस हैशटैग से साढ़े छह लाख से अधिक ट्वीट किये जा चुके थे. ट्वीट करने वाले बिहार के युवा उन 38 हजार लोगों के लिए नियुक्ति पत्र की मांग कर रहे थे, जिन्हें बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने जुलाई, 2021 में अंतिम रूप से चयनित कर लिया है.
मगर चार महीने बीतने के बाद भी सरकार उनके लिए नियुक्ति पत्र जारी नहीं कर पायी है. ट्विट करने वाले इस प्रक्रिया के तहत निश्चित 94 हजार प्रारंभिक शिक्षक पद पर नियुक्ति और राज्य में खाली पड़े शिक्षकों के तीन लाख पदों पर बहाली की भी मांग कर रहे थे. इस आंदोलन ने बिहार सरकार की बेरोजगार युवाओं के प्रति संवेदनहीनता को तो उजागर किया ही है, साथ ही यह सवाल भी उठाया है कि क्या अब अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र के लिए भी आंदोलन करना पड़ेगा.
दरअसल बिहार में बेरोजगार युवाओं के बीच एक चुटकुला बहुत प्रचलित है. दूसरे राज्यों में जहां किसी भी सरकारी नौकरी की बहाली दो से तीन चरणों में यानी पीटी, मेंस और वाइवा के जरिये हो जाती है. मगर बिहार में नौकरी कई चरणों से गुजरने के बाद ही किसी-किसी को मिलती है. पीटी-मेंस और वाइवा के अलावा ये चरण हैं, फार्म भरने से लेकर मेरिट लिस्ट जारी करवाने के लिए इन छात्रों द्वारा बार-बार विभिन्न चरणों में किये जाने वाले आंदोलन.
यहां सरकारी नियुक्ति प्रक्रिया हर बार आंदोलनों के सहारे ही कदम- दो कदम सरकती है. पहले खाली सीटों पर बहाली की घोषणा करवाने के लिए आंदोलन होता है. घोषणा करवाने के बाद आवेदन फार्म जारी करवाने, फिर आवेदन भरने के बाद पीटी परीक्षा आयोजित करवाने, फिर पीटी का रिजल्ट घोषित करवाने, फिर मेंस परीक्षा आयोजित करवाने, फिर रिजल्ट निकलवाने और फिर मेरिट लिस्ट जारी करवाने के लिए आंदोलन होते हैं.
अब इसमें नियुक्ति पत्र जारी करवाने का एक चरण और जुड़ गया है. इन बीच में इन युवाओं में सड़कों पर उतरना पड़ता है, ऑनलाइन कैंपेन चलाना पड़ता है और अदालत के पास जाकर अपील करनी पड़ती है. बिहार के बेरोजगार युवक जानते हैं कि उन्हें सिर्फ परीक्षा की तैयारी ही नहीं करनी है, साथ-साथ आंदोलन और दवाब की राजनीति में भी निपुण होना है.
रविवार को ट्विटर पर चला अभियान भी इसी की एक कड़ी है. वरना भला नियुक्ति पत्र हासिल करने के लिए भी कहीं आंदोलन होता है. फाइनल रिजल्ट के बाद तो नियुक्ति पत्र जारी करना महज औपचारिकता रह जाती है. मगर बिहार सरकार की धीमी गति ने यहां के बेरोजगार युवाओं को यह सिखाया है कि यहां कोई भी काम बिना आंदोलन के, बिना धक्का दिये नहीं हो सकता है. खास तौर पर सरकारी नौकरी तो बिल्कुल नहीं मिल सकती.
पिछले कुछ वर्षों का बिहार सरकार का अनुभव यही है कि सरकार युवाओं को सरकारी नौकरी देने के मामले से हर संभव पीछा छुड़ाना चाहती है. इसी वजह से पिछले चुनाव में बेरोजगारी बड़ा मुद्दा बना था. तब विपक्षी पार्टियों ने वादा किया था कि वे पहली कैबिनेट बैठक में 10 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी देंगे. इस दावे का असर पड़ा और सत्ता पक्ष को मजबूरन साढ़े चार लाख सरकारी नौकरी और 19 लाख रोजगार देने का वादा करना पड़ा.
चुनाव के बाद नीतीश कुमार की सरकार ने आनन-फानन में सभी विभागों से खाली पड़े पदों के ब्योरे मंगवाये. पता चला कि राज्य में शिक्षकों के तीन लाख खाली पदों समेत पांच लाख से अधिक सरकारी नौकरियों के पद खाली पड़े हैं. उस वक्त ऐसा लगा था कि सरकार जल्द इन खाली पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू करेगी. मगर आज एक साल बीत जाने के बावजूद स्थिति जस की तस है.
शिक्षकों की भर्ती तो 2014 के बाद से नही हुई है. कोरोना में जब स्वास्थ्य विभाग की बदहाली सामने आयी तो डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य कर्मियों के पद भरे जाने की घोषणाएं जोर-शोर से हुईं. मगर उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला. दरअसल सरकार बेहतर वेतन और स्थायी पद के बदले महीने-दो महीने के लिए अस्थायी पदों पर लोगों को बहाल करना चाह रही थी. ये अनुभव इस बात की ओर साफ इशारा कर रहे हैं कि सरकार की लोगों को नौकरी देने में कोई अभिरुचि नहीं है.
संभवतः इसकी वजह राज्य के पास आर्थिक संसाधनों का अभाव है, वह लोगों को वेतन देने में खुद को अक्षम पा रही है. हालांकि दूसरी तरफ राज्य में अधोसंरचना विकास पर लाखों करोड़ खर्च हो रहे हैं.
बहरहाल इन परिस्थितियों में राज्य का युवा एक बार फिर से खुद को छला महसूस कर रहा है. सरकार ने जरूर 19 लाख लोगों को रोजगार देने का वादा किया था, मगर वह वादा खोखला साबित हुआ. इस बीच 2014 में जिस भर्ती की प्रक्रिया शुरू हुई थी, वह नजीर बनकर रह गयी है. मतलब वह प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हुई है. यही वजह है कि बिहार के युवाओं को नौकरी तो नौकरी नियुक्ति पत्र के लिए भी ट्विटर पर आकर हैशटैग ट्रेंड करवाना पड़ रहा है.
यह बिहार सरकार के लिए बहुत बेहतर स्थिति नहीं है. उसकी अकर्मण्यता की छवि ऐसे आंदोलनों से लगातार पुख्ता हो रही है. सरकार को अब भी अपने संसाधन जुटाकर युवाओं के लिए नौकरी का और रोजगार का इंतजाम करना चाहिए. आखिर कब बिहार का युवा चार-पांच हजार की नौकरी के लिए पलायन करता रहेगा.



(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

पुष्यमित्र, लेखक एवं पत्रकार
स्वतंत्र पत्रकार व लेखक. विभिन्न अखबारों में 15 साल काम किया है. 'रुकतापुर' समेत कई किताबें लिख चुके हैं. समाज, राजनीति और संस्कृति पर पढ़ने-लिखने में रुचि.
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