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- कृषि कानूनों को वापस...
संजय गुप्त : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरु पर्व पर तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर सबको चौंका दिया। राजनीतिक कारणों से इन कानूनों का विरोध तभी शुरू हो गया था, जब उन्हें पिछले साल जून में अध्यादेश के रूप में लाया गया था। बाद में जब इन्हें संसद की ओर से कानूनी शक्ल दी गई तो विपक्षी दलों ने इस आरोप के साथ विरोध किया कि उन्हें न तो व्यापक विचार-विमर्श के लिए सेलेक्ट कमेटी भेजा गया और न किसानों से सही तरह बात की गई। सितंबर में इन कानूनों के अमल में आते ही पंजाब और हरियाणा के आढ़तियों को अपनी जमीन खिसकती दिखी। उन्होंने किसानों को उकसाना शुरू कर दिया। राजनीतिक कारणों से पंजाब की तत्कालीन अमरिंदर सिंह सरकार ने भी किसानों का साथ देना शुरू कर दिया, जबकि खुद उनकी सरकार ने अनुबंध खेती पर कानून बनाए थे। एक समय कांग्रेस ने ऐसे कानूनों की मांग की थी और यहां तक कि अपने घोषणा पत्र में ऐसे कानून बनाने का वादा किया था, लेकिन जब उसने देखा कि इन कानूनों के विरोध से उसे राजनीतिक लाभ मिल सकता है तो वह पूरी तरह उनके खिलाफ खड़ी हो गई। कांग्रेस से आगे निकलने की होड़ में अकाली दल भी भाजपा से अलग होकर कृषि कानूनों का विरोध करने लगा। धीरे-धीरे अन्य दल भी किसान संगठनों के साथ खड़े हो गए। नवंबर में किसान संगठन दिल्ली के सीमांत इलाकों में राजमार्गो को घेर कर बैठ गए। वे अब भी आंदोलन वापस लेने से इन्कार कर रहे हैं। उनके इस रवैये के पीछे उन्हें बरगलाने वाले दल भी हैं। किसान संगठनों के साथ उन्होंने भी यह दुष्प्रचार किया है कि इन कानूनों से कारपोरेट समूह किसानों की जमीनों को हड़प लेंगे।