सम्पादकीय

एक छोटी सी घटना भी जीवन में बड़ी सीख दे जाती है, अशिक्षित व्यक्ति भी बेहतरीन शिक्षक हो सकते हैं!

Gulabi Jagat
4 April 2022 8:27 AM GMT
एक छोटी सी घटना भी जीवन में बड़ी सीख दे जाती है, अशिक्षित व्यक्ति भी बेहतरीन शिक्षक हो सकते हैं!
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ओपिनियन
एन. रघुरामन का कॉलम:
दूर-दूर तक जहां नजरें जाती थीं, रेत ही रेत थी। दो बज रहे थे और सूरज सिर पर था। मेरी कार का एसी न्यूनतम तापमान पर चल रहा था। मैं राजस्थान के उस कभी खत्म न होने वाले रेगिस्तानी इलाके से गुजर रहा था और वहां मुश्किल से ही कोई हरा पेड़ दिखता था। सैकड़ों मीटर दूर एक लड़की- जो सात या आठ वर्ष की रही होगी- मेरी कार की ओर हाथ हिलाकर इशारा करने लगी और मेरे रेतीले रास्ते की ओर दौड़ने लगी। उसे पता था कि किस जगह पर मेरी गाड़ी क्रॉस होगी और वह मेरी कार से पहले ही वहां पहुंच गई। जैसे ही गाड़ी उसके करीब पहुंची, उसने मेरी तरफ हाथ हिलाकर टाटा कहा, मैंने भी उत्तर में टाटा कह दिया।
इससे पहले मैं यहां बारिश के दिनों में आया था और मैंने देखा था कि ऐसी छोटी लड़कियां-लड़के स्थानीय फल बेचने के लिए कार की ओर दौड़ते हैं। उस मौसम में यहां मशरूम सबसे ज्यादा बेचे जाते हैं। लेकिन इस लड़की के पास कुछ नहीं था। तब जाकर मैंने गौर किया कि उसने उस गर्मी में नंगे पैर तकरीबन 150 मीटर की दूरी तय की थी। मुझे उसके लिए बुरा लगने लगा।
मैं उसे अपनी कार में बैठाकर उसकी झोपड़ी तक नहीं छोड़ सकता था, क्योंकि वो जिस रास्ते से आई थी, वह इतना संकरा था कि कोई बड़ी कार उस पर नहीं चल सकती थी। मेरे पास उसके पैरों के आकार की कोई चप्पलें भी नहीं थीं, जिन्हें मैं उसे पहनने के लिए दे पाता। जब मैंने ड्राइवर से पूछा कि वह दौड़ते हुए हमारे पास क्यों आई तो उसने जवाब दिया- हमसे पैसा मांगने के लिए।
मैं सोचने लगा कि अगर मैंने उसे पैसा दिया तो वह उसके घर की जरूरतों में खर्च हो जाएगा, चप्पलें नहीं खरीदी जाएंगी। मैं अपने ड्राइवर को रुकने को कह पाता, इससे पहले ही वह उसके पास से तेज गाड़ी चलाते हुए कई मीटर आगे बढ़ गया। मैंने तुरंत पीछे मुड़कर देखा कि बच्ची के चेहरे पर निराशा थी। ड्राइवर ने कहा, आपको गर्मियों में यहां ऐसे बहुत लोग मिलेंगे। शायद उसकी बात उसके नजरिए से सही थी।
पर पता नहीं क्यों मुझ जैसे बाहर से आए व्यक्ति के मन पर उस लड़की के निराश चेहरे की गहरी छाप पड़ी। ये नया अनुभव था, क्योंकि मेरी गाड़ी में हमेशा पानी की बोतलें रहती हैं, जिन्हें मैं पुलिसवालों को देता हूं, या मुम्बई के ट्रैफिक सिगनलों पर गरीब या लावारिस बच्चों को देने के लिए मेरे पास छोटे-छोटे ग्लूकोस पैकेट्स होते हैं। इस एक लड़की ने मुझे स्कूल के दिनों में सीखा हमदर्दी का सबक याद दिला दिया।
हमदर्दी का मतलब होता है दूसरों की भावनाओं को समझना, उनकी कल्पना करना, कोई क्या महसूस कर रहा है या सोच रहा है इससे खुद को जोड़ना, दूसरों की नजर से चीजों को देखना, दूसरे जो कह रहे हैं उसे ध्यान से सुनना और दूसरों की त्रासदियों से भावुक होना। जूते-चप्पलों की लोकल दुकान से कुछ चप्पलें खरीदकर मैंने ड्राइवर को दे दीं। उसने मुझसे वादा किया कि जब वह मुझे छोड़कर लौटेगा तो वे चप्पलें उस लड़की को दे देगा। मैं जानता हूं कि वह वैसा ही करेगा।
उस लड़की ने मुझे कम से कम इन गर्मियों के लिए एक नया सबक सिखाया है। मैं मुम्बई जाकर कुछ और वैसी चप्पलें खरीदकर अपनी कार की डिक्की में रख लूंगा। मैं कम से कम इन्हें उन छोटे बच्चों को दे सकता हूं, जो मुम्बई की डामर और सीमेंट वाली सड़कों पर खड़े रहते हैं। राजस्थान की एक नंगे पैरों वाली लड़की ने मुझे जो सबक सिखाया है, उससे मुम्बई के कुछ गरीब बच्चों को इन गर्मियों में कुछ राहत मिलेगी। जो लोग सर्दियों में कम्बल वितरण करते हैं, मैं उनसे आग्रह करूंगा कि वे गर्मियों में चप्पलें वितरित करने के बारे में भी सोचें!
फंडा यह है कि इस दुनिया को एक बच्चे के दिल से देखें, क्या पता जिंदगी और खूबसूरत हो जाए।
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