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- यूरोप का फैसला
Written by जनसत्ता: सोमवार देर शाम बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में यूरोपीय संघ के सभी सत्ताईस देश एकजुटता प्रदर्शित करते हुए, इस साल के अंत तक रूसी तेल के आयत को नब्बे फीसद तक कम कर देने पर सहमत हुए हैं। रूस के ऊपर आर्थिक बमबारी करने का इससे अच्छा दूसरा रास्ता और कोई नहीं था। वैसे यूरोपीय संघ के देशों ने इस नतीजे पर पहुंचने में तीन महीने से ऊपर का समय लगाया है। इसलिए इन सभी ने अच्छी तरह से इस पर चिंतन-मंथन और होमवर्क तो कर ही लिया होगा। इन देशों ने इस वर्ष का अंत तक का समय दिया है।
अगर रूस आज से ही तेल की आपूर्ति बंद कर दे तो क्या होगा? तेल के साथ-साथ वह तरल गैस भी देना बंद कर दे तो, इन सताईस में से आधे देशों का क्या होगा? हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर अर्बन के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जिन्होंने कहा कि एक प्रतिबंध उनके देश की अर्थव्यवस्था को नष्ट कर देगा। इनके साथ साथ पोलैंड और जर्मनी ने भी नाखुशी जाहिर की है। भले ही इन तीनों ने हस्ताक्षर किए हैं। क्या इन तीनों देशों के ऊपर जो आर्थिक बोझ पड़ेगा, उसे संघ के सभी देश आपस बांटेंगे?
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक देश एक स्वास्थ्य तंत्र का मंत्र देते हुए देशवासियों से उस नियम को पालन करने की बात कही है। यह एक अच्छी सौगात कही जा सकती है। उनका कहना है कि आज आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी और एलोपैथी के विशेषज्ञ चारों पद्धति को समानांतर उपयोग में लाने की रणनीति को अंतिम रूप दे रहे हैं, जो कि आरोग्य भारती की देखरेख में किया जा रहा है। आज देश को एक देश, एक स्वास्थ्य तंत्र की आवश्यकता है। आज हम सबको दैनिक दायित्व के साथ प्रकृति के अनुरूप सरल जीवन शैली अपनाने की भी जरूरत है। इससे हमारा स्वास्थ्य बेहतर रहेगा, उनका यह भी कहना है कि योग को हम किसी भी धर्म से जोड़ कर नहीं देख सकते। भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति ने विश्व का हर तरह से मार्गदर्शन किया है।
योग, प्राणायाम, व्यायाम और अध्यात्म एक बड़ी शक्ति का बोध कराते हैं। कुछ लोग योग को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां फैलाते हैं, जबकि निरोग रहने के लिए कोई किसी तरह का मतभेद या भ्रांतियां आड़े नहीं आना चाहिए, दुनिया भर के महंगे इलाज के बीच भारत में सस्ते इलाज की पद्धतियां मौजूद हैं, आज राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत सभी के आरोग्य की व्यवस्था सरकार ने की है। राष्ट्रपति के एक देश एक स्वास्थ्य मिशन मंत्र का स्वागत करना चाहिए।
पंजाब में पिछले दिनों सुरक्षा कर्मियों की कमी का हवाला देते हुए राज्य सरकार ने अनेक महत्त्वपूर्ण लोगों की सुरक्षा हटा दी गई थी। इस मामले को लेकर इलेक्ट्रानिक मीडिया ने खूब समाचार दिखाए। तमाम जानकारियों के लीक होने के बाद ही सिद्धू मूसा की हत्या हुई है। आज समझ नहीं आता कि क्यों मीडिया संगीन मामलों को सार्वजनिक करता है? जब एक आम आदमी इस मामले की गंभीरता को समझता है, तो फिर लोकतंत्र का चौथा स्तंभ क्या अपना कर्तव्य भूल गया? अमन चैन वाला पंजाब राज्य अचानक हिंसा का शिकार हो रहा है, तो इसकी एक वजह गुप्त सूचनाओं का सार्वजनिक होना है। इससे केंद्र और राज्य सरकार दोनों को मुसीबत खड़ी हो गई है। अच्छा यही हो कि भविष्य में जब भी इस तरह के गंभीर मुद्दे सामने आएं, मीडिया थोड़ा संयम रखे।