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यूरोपियन यूनियन (ईयू) के देशों में कोरोना टीकाकरण की गति इतनी धीमी है
यूरोपियन यूनियन (ईयू) के देशों में कोरोना टीकाकरण की गति इतनी धीमी है, यह नए-नए विवादों की वजह बन गया है। इसकी मिसाल ऑक्सफॉर्ड- ऐस्ट्राजेनिका और रूसी वैक्सीन स्पुतनिक वी को लेकर पैदा हुआ टकराव है।
ऑक्सफॉर्ड- ऐस्ट्राजेनिका के वैक्सीन के सुरक्षित होने का प्रमाणपत्र अब यूरोपीय ड्रग एजेंसी के साथ- साथ अमेरिकी एजेंसी से भी मिल चुका है। लेकिन ये प्रमाणपत्र आने के पहले उसके कथित दुष्प्रभाव के शक में यूरोप के 13 देशों में इस टीके का इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। इसका असर यह हुआ कि इस टीके को लेकर आम जनता में शक फैल गया। जनमत सर्वेक्षणों में सामने आया कि फ्रांस और जर्मनी में 50 फीसदी से ज्यादा लोगों ने इस टीके को असुरक्षित माना। ऐसे में ये साफ है कि इस वैक्सीन को लगाने का काम फिर शुरू करना आसान नहीं होगा।
यूरोपीय देश वैक्सीन डोज की कमी से जूझ रहे हैं। इसके बीच एस्ट्राजेनिका वैक्सीन को लेकर पैदा हुए शक से समस्या और गहरा गई है। उधर स्पुतनिक वी को लेकर ईयू देशों में विवाद चल रहा है। ताजा परीक्षणों से ये साबित हुआ है कि स्पुतनिक वी बेहद प्रभावी और सुरक्षित है। इसके बावजूद राजनीतिक स्तर पर ईयू में इस वैक्सीन को लेकर गहरा विरोध भाव देखने को मिला है। इसका कारण रूस से बढ़ा तनाव है। लेकिन जब वैक्सीन की कमी है, तो सभी देश उस विरोध भाव से संचालित होने को तैयार नहीं हैँ। कुछ छोटे देश पहले ही स्पुतनिक और चीन में बने वैक्सीन को अपने यहां मंजूरी दे चुकी है।
अब जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने भी कहा है कि अगर ईयू देशों में कोई सहमति नहीं बनी, तो वे अकेले इसे खरीदने की मंजूरी अपने देश के विनियामक एजेंसी को दे देंगी। इस बीच वैक्सीन के सवाल पर तीसरा विवाद ब्रिटेन और ईयू के बीच एक विवाद खड़ा हुआ है। ईयू के नेताओं ने धमकी दी है कि वे ईयू में निर्मित वैक्सीन का ब्रिटेन को निर्यात रोक देंगे। उनकी शिकायत है कि ब्रिटेन ईयू से वैक्सीन आयात कर रहा है, लेकिन ब्रिटेन में बने वैक्सीन को ईयू देशों को निर्यात नहीं कर रहा है। वैक्सीन निर्माता कंपनियों का कहना है कि अगर निर्यात प्रतिबंध लगाया गया, तो उसका खराब असर वैक्सीन के सप्लाई चेन पर पड़ेगा। कुल सूरत चिंताजनक है। इससे इस बात को समझा जा सकता है कि जब अभाव का सामना हो, तो कैसे अच्छे से अच्छे परिवार टूट जाते हैं।
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