सम्पादकीय

यूरोप को बाइडेन से उम्मीदें

Gulabi
26 Jan 2021 10:32 AM GMT
यूरोप को बाइडेन से उम्मीदें
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यूरोपीय नेताओं की प्रतिक्रियाओं से जाहिर है कि नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से उन्हें बड़ी उम्मीदें हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यूरोपीय नेताओं की प्रतिक्रियाओं से जाहिर है कि नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से उन्हें बड़ी उम्मीदें हैं। यूरोपीय संघ के नेताओं को आशा है कि यूरोप- अमेरिका के संबंध अब पहले जैसे हो जाएंगे। यानी अमेरिका के साथ संबंध सामान्य हो जाएंगे। लेकिन जानकारों ने कहा है कि इन नेताओं को इस रास्ते में खड़ी बाधाओं से भी परिचित रहना चाहिए।

यूरोप इस बीच "रणनीतिक स्वायत्तता" के रास्ते पर आगे बढ़ चुका है। यूरोप को अपने हितों और अपने मूल्यों को अब अपने ढंग से परिभाषित कर रहा है। क्या बाइडेन के दौर में वह फिर से अमेरिका पर निर्भर हो जाएगा, यह अहम सवाल है। हालांकि यह जरूर है कि नए दौर में पर्यावरण नीति, सुरक्षा और व्यापार के मामलों में अमेरिका से यूरोप के संबंधों में सुधार देखने को मिलेगा।


फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने "रणनीतिक स्वायत्तता" के विचार को खास बढ़ावा दिया है। उनकी सोच है कि यूरोपीय संघ को अमेरिका और नाटो के साथ अपनी साझेदारी की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, लेकिन भविष्य के बारे में उसे जरूर सोचना चाहिए। अधिक स्वायत्त हो कर रहना और अपनी अधिक जिम्मेदारी लेना सही रास्ता है। वैसे भी अमेरिका लगातार यूरोप से रक्षा पर अधिक खर्च करने को कह रहा है। इसी बीच यूरोपीय संघ और चीन के हुए निवेश समझौते को लेकर अमेरिका से यूरोप का विवाद खड़ा हुआ है।
लेकिन ईयू के अधिकारियों का कहना है कि यह सोचना अजीब होगा कि यूरोपीय संघ को अपने समझौतों पर हस्ताक्षर करने का अधिकार नहीं है। बहरहाल, विशेषज्ञों ने कहा है कि आपसी रिश्तों के हित में अमेरिका और यूरोप को ट्रंप प्रशासन की नीतियों से फौरन किनारा कर लेना चाहिए। फिर भी अब यूरोप से जो बाइडेन को एक स्पष्ट संदेश जाना चाहिए कि "हम दास नहीं हैं और घड़ी की सूई वापस नहीं कर सकते हैं।" देखा यह गया है कि रणनीतिक स्वायत्तता के विचार का यूरोप में व्यापक समर्थन है। इसके पीछे दलील यह है कि यह विचार यूरोपीय लोगों को बेहतर साझेदार बनाने का मौका देता है। दूसरी समस्या यह है कि यूरोप में भी धुर दक्षिणपंथ की लहर है। यहां अनेक ट्रंप समर्थक पार्टियां इस बीच उभरी हैँ। सोशल मीडिया साइटों के जरिए परंपरागत लोकतंत्र पर हमले जारी हैं। अगर इन समस्याओं से दोनों पक्ष उबर पाए, तभी रिश्तों का पुराना रूप बहाल हो पाएगा।


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