सम्पादकीय

गर्मी से उबलता यूरोप

Subhi
30 July 2022 3:26 AM GMT
गर्मी से उबलता यूरोप
x
इस वर्ष दिल्ली की गर्मी ने बहुत रुलाया है। मानसून के आगमन के बाद दिल्ली वालों को गर्मी से झुलसते महानगर में राहत महसूस की है। हालांकि कई राज्यों में अति वर्षा से बाढ़ जैसी स्थितियां पैदा हो गई हैं।

आदित्य नारायण चोपड़ा: इस वर्ष दिल्ली की गर्मी ने बहुत रुलाया है। मानसून के आगमन के बाद दिल्ली वालों को गर्मी से झुलसते महानगर में राहत महसूस की है। हालांकि कई राज्यों में अति वर्षा से बाढ़ जैसी स्थितियां पैदा हो गई हैं। जिस तरह से ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, स्पेन और इटली समेत यूरोप के 28 देशों में प्रचंड गर्मी का प्रकोप देखने को मिला है, उससे तो स्पष्ट है कि यह वर्ष दुनिया का सबसे गर्म साल हो सकता है। यूरोप में गर्मी से मरने वालों की संख्या 1800 से ऊपर बताई जा रही है। वैसे तो पृथ्वी का तापमान हर साल बढ़ रहा है, लेकिन इस साल गर्मी ने पुराने सभी रिकार्ड तोड़ दिए हैं। जलवायु परिवर्तन का असर अब दुनिया भर में नजर आने लगा है। जहां दिल्ली वाले और भारत के कई शहरों के लोग 42 डिग्री तापमान झेल जाते हैं लेकिन यूरोप के लोग 39-40 डिग्री तापमान भी झेल पाने में सक्षम नहीं हैं। यूरोप के लोगों में गर्मी झेलने की क्षमता नहीं है। ​ब्रिटेन आदि देशों में भीषण गर्मी के लिए बुनियादी ढांचा ही नहीं है। हालात इतने डराने वाले हैं कि गर्मी की वजह से रनवे तक पिघल गए। लंदन से करीब पचास किलोमीटर दूर न्यूटॉन एयरपोर्ट पर उड़ानें निलम्बित करनी पड़ीं। मौसम विशेषज्ञों की मानें तो यूरोपीय देशों में जो तापमान है अगर उसकी तुलना भारत से की जाए तो यह कहीं ज्यादा है। विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले एक दशक से भारत में जितनी गर्मी नहीं पड़ी है ​उतनी यूरोप ने अनुभव कर ली है। तापमान 41 डिग्री पहुंचने पर ही था फिर इसकी चेतावनी जारी किए जाते ही हाहाकार मच जाता है। ज्यादा गर्मी से यूरोप के कई देशों में ट्रेन यातायात भी प्रभावित हुआ है। क्योंकि 41 डिग्री तापमान में रेलवे ट्रैक हवा की तुलना में 20 डिग्री ज्यादा गर्म होता है, ऐसी स्थिति में लाइनें पिचक कर झुक जाती हैं। ऐसे में ब्रिटेन में कई जगह रेल यातायात निलम्बित करना पड़ा है। लोगों को घरों में रहने की चेतावनी दी गई है। वर्ष 2019 में वैदर सर्विस ने 38.60 डिग्री सेल्सियस तापमान की भविष्यवाणी की थी अब तीन साल बाद हालात बिगड़ गए हैं। फ्रांस के मौसम विज्ञानी प्रैकॉइस का कहना है कि इस वर्ष गर्मी किसी कयामत से कम नहीं होगी। स्पेन और पुर्तगाल दोनों जगह गर्मी से 800 लोगों का मारा जाना काफी दुखद है। स्पेन में इस समय तक बारिश होने लगती है लेकिन इस बार बारिश का कोई संकेत नहीं मिल रहा। सूखे की वजह से स्पेन और उत्तरी इटली में डेल्टा नदी क्षेत्र में 70 फीसदी फसल तबाह हो चुकी है। विश्व मौसम संबदन ने चेतावनी जारी की है कि अभी कुछ दिनों में तापमान से कोई राहत नहीं मिलने वाली​ और प्रचंड गर्मी की ऐसी लहरें आने वाले वर्षों में भी आती रहेंगी। चेतावनी में स्पष्ट कहा गया है कि यह गर्मी ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा है और ऐसा मानवीय गतिविधियों के कारण हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिमी यूरोप के अनेक जंगलों में एक के बाद एक आग लगने की घटनाएं हुई हैं। इससे जंगल तो तबाह हुआ ही बल्कि निकटवर्ती बस्तियां भी प्रभावित हुई हैं। जंगल की आग से प्रदूषण भी बढ़ा और तापमान भी बढ़ा।संपादकीय :समस्या क्या संसद में है?कांग्रेस का 'बोझ' अधीर रंजनविदेशी मीडिया और भारतअमृत महोत्सव : जारी रहेगा यज्ञ-10'रेवड़ी' और सर्वोच्च न्यायालयमेरा असली जन्मदिन है बुज़ुगों के चेहरों पर मुस्कानमौसम विशेषज्ञ पूरी दुनिया को आगाह कर रहे हैं कि अगर ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए एकजुट प्रयास नहीं किए गए तो मानव का भविष्य ही खतरे में पड़ जाएगा। यूरोप में पहले भी ऐसी घटनाओं के चलते मानव जीवन पर संकट आता रहा है। अमेरिकी महाद्वीप के देशों में भी तीखी गर्मी महसूस की गई। लेकिन इस बार यूरोप में भीषण गर्मी का मामला काफी गम्भीर है। क्योंकि कोरोना महामारी की भयंकर लहरों को झेल चुके यूरोप के देशों में महंगाई इस समय चरम पर है। जबरदस्त गर्मी के चलते कई देशों में खाद्य संकट की आशंका बनी हुई है। जलवायु परिवर्तन के कारण बेमौसमी वर्षा या फिर अतिवर्षा की समस्याएं सामने आ रही हैं। ध्रुवीय बर्फ और ग्लेशियर अनुमानों से कहीं अधिक तेजी से पिघल रहे हैं। आर्कटिस बर्फ पिघलने की गति अनुमानों से चार गुणा अधिक है। उम्मीद तो यह थी कि अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए मिलजुल कर प्रयास करेगा, लेकिन कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों से उभरने की कोशिशों में उत्सर्जन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। जलवायु परिवर्तन की समस्या कोई एक दिन में पैदा नहीं हुई है और न ही इसका तुरंत समाधान सम्भव है। पिछले साल ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की थी कि 2070 तक भारत का कार्बन उत्सर्जन शून्य हो जाएगा। समस्या यह है कि विकासशील देश कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन विकसित और धनी देश सिर्फ भाषण देते हैं, खुद कोई पहल नहीं करते। ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फ्रांस के राष्ट्रपति से मिलकर अन्तर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन भी बनाया था और ''एक पृथ्वी कई प्रयास'' का आह्वान करते हुए कहा था कि हमें अपनी धरती के अनुकूल जीवनशैली अपनानी चाहिए और धरती को नुक्सान नहीं पहुंचाना चाहिए। पृथ्वी के बढ़ते तापमान से मनुष्य, पेड़-पौधे और जीव-जन्तुओं का अस्तित्व समाप्त हो सकता है। जीवाश्म इंधनों का इस्तेमाल घटाने और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ाने के मामले में किए जा रहे प्रयास संतोषजनक नहीं हैं। अब जबकि यूरोप भी गर्मी से उबलने लगा है, ऐसी स्थिति में मानवता को प्रकृति के साथ संबंधों को फिर से प्रभावित करना होगा। जब तक मनुष्य प्रकृति प्रेम का मूलमंत्र नहीं अपनाएगा तब तक इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। यह वैश्विक चुनौती है और मानवता का अस्तित्व बचाने के लिए तत्कालिक प्रयास करने होंगे, नहीं तो हमारे ग्रह का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।

Next Story