- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- आदि पुरुष इत्यादि...
सुधीश पचौरी; इस पर अपने विपक्ष का पुराना 'राग शिकायत' शुरू, कि पहले महंगाई, बेरोजगारी दूर करो… दो करोड़ रोजगार दो… पंद्रह लाख काला धन लाकर दो, तब कुछ करना… बहरहाल, इन दिनों का सबसे बेहतरीन प्रहसन है, कांग्रेस के अध्यक्ष का चुनाव! जरा देखिए: एक 'अड़ा' है, एक 'लड़ा' है और एक 'पड़ा' है! बाकी सब 'भारत जोड़ो' हैं।
एंकर कांग्रेस को छेड़ते रहते हैं कि क्या सब कुछ पहले से तय था, अगर नहीं तो सब सोनिया जी की धोक लगाने क्यों गए? क्या उनके आशीर्वाद के बिना काम नहीं चलता? लीजिए! राहुल की 'भारत जोड़ो यात्रा' भी अब कुछ यादगार दृश्य देने लगी है, जैसे कि बरसात में भीगते बोलते हुए राहुल वाला दृश्य या दूसरा 'भारत जोड़ो' से जुड़ीं अपनी माता जी के जूते के फीते कसने वाला दृश्य! एकदम सहज सुंदर और उदात्त दृश्य!
फिर एक-दो दिन लंबी खबरें और बहसें 'गरबा' ने बनाई। एक जगह 'गरबा' पर हमला होता दिखा। दूसरी जगह गरबा के 'रक्षकों' ने 'आइडेंटिटी छिपा कर' घुसे कुछ मुसलमान युवकों को पीट कर खबर बनाई और फिर एक गरबा पर पड़ोस से पत्थरबाजी की खबर, पुलिस की पकड़-धकड़ आदि की खबरें आईं और फिर उतनी ही असहिष्णु बहसें भी आती रहीं: एक पक्ष कहता कि वे नाम बदल कर गरबा में क्यों आते हैं?
क्या 'लव जिहाद' करने आते हैं? दूसरा बोलता कि कल तक सब जाया करते थे, ऐसा भेद गंगाजमुनी तहजीब के विपरीत है… ऐसी हर बहस शुरू से आखिर तक हिंदू-मुसलमान में बंटी रहती है! हिंदू हिंदू के लिए बोलता है और मुसलमान मुसलमान के लिए बोलता है।
फिर एक शाम एक चैनल पर गुजरात के आसन्न चुनावों को लेकर आए एक 'ओपिनियन पोल' ने विपक्ष के सारे उत्साह पर पानी फेर दिया। सर्वे बताता रहा कि विपक्ष महंगाई, बेराजगारी का रोना लाख रोए, गुजरात में एक बार फिर भाजपा ही जीतने जा रही है!
बेचारी एंकर पूछती ही रह गई कि ये कौन-सा जादू है कि भाजपा के आगे संभव 'एंटी इनकंबेंसी' भी 'प्रो-इनकंबेंसी' में बदल जाती है? फिर एक दिन महाराष्ट्र सरकार ने दफ्तरों में 'हैलो' की जगह 'वंदेमातरम्' से एक-दूसरे का अभिवादन करने का आग्रह किया, तो फिर बहसें उठ खड़ी हुर्इं: एक कहता है कि इससे देशभक्ति की भावना बढ़ेगी, दूसरा कहता कि क्या बिना इसे कहे लोग देशभक्त नहीं हो सकते?
फिर एक शाम ठाकरे शिवसेना की दशहरा रैली के बरक्स शिंदे की शिवसेना रैली एक साथ होती दिखी। पुलिस ने बताया कि ठाकरे की रैली में एक लाख आए, तो शिंदे की रैली में दो लाख आए! ठाकरे वाले बोले कि पुलिस ने गिन कैसे लिया? फिर एक दिन रावण को 'खिलजी छाप' दाढ़ी पहना कर और हनुमान जी को 'मुसलिम दाढ़ी' और 'चमड़े की पट्टी' में कसा दिखा कर फिल्म 'आदिपुरुष' के 'टीजर' ने रामभक्तों को बहुतई 'टीज' किया।
'टीजित जन' अपनी खीझ निकालते रहे! यूपी के एक मंत्री जी ने कहा कि इस तरह हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने का हक किसी को नहीं, इसे ठीक करो। उधर एमपी के मंत्री ने निदेशक को चिठ्ठी लिख कर गलतियों को सुधारने के लिए तो कहा ही, साथ ही यह भी शिकायत की कि बालीवुड के कुछ लोग सिर्फ हिंदुओं के देवी-देवताओं को क्यों निशाना बनाते हैं और किसी धर्म के साथ जरा ऐसा करके देखें…
इस बीच दशहरे के संबोधन में संघ प्रमुख भागवत जी ने बढ़ती आबादी की समस्या को विचारणीय विषय बना कर हर चैनल को बहस करने के लिए बाध्य कर दिया। फलस्वरूप हर चैनल देर तक आबादी की चुनौती पर बहसें करता-कराता रहा!
फिर एक दिन कांग्रेस के एक नेता/ प्रवक्ता जी ने महामहिम राष्ट्रपति दौपदी मुर्मू को 'चमचा' कह कर बहसें खड़ी कर दीं। भाजपा प्रवक्ता कूटते रहे कि कांग्रेस के नेता ने देश के सर्वोच्च पद की अवमानना की, कि कांग्रेस उसे हटाए, लेकिन नेताजी इसे 'निजी राय' कह कर अपनी पर जमे रहे! फिर एक दिन तमिल फिल्म 'पोन्नियन सेल्वन' के वेट्रीमारन ने यह कह कर कि चोला राजा शिवभक्त थे, लेकिन हिंदू नहीं थे- एक नई बहस छेड़ दी।
कमल हासन ने भी ऐसा ही कहा और उनके पैरोकार भी कहते रहे कि चोला के जमाने में 'हिंदू' शब्द था ही नहीं, इसलिए चोला 'हिंदू' नहीं थे! एक चर्चक ने व्यंग्य किया कि उस काल में तो 'आक्सीजन' शब्द भी नहीं था, तब क्या वो आक्सीजन से सांस नहीं लेते थे? एक ने कहा: यह भी एक प्रकार का देशज 'हिंदू फोबिया' है!