सम्पादकीय

Afghanistan War: क्या अफ़ग़ानिस्तान में गृहयुद्ध तय है?

Rani Sahu
10 Aug 2021 1:11 PM GMT
Afghanistan War: क्या अफ़ग़ानिस्तान में गृहयुद्ध तय है?
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आज बात करेंगे आतंकवादी तालिबान (Taliban) के हमलों के सामने अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) में राष्ट्रपति अशरफ ग़नी (Ashraf Ghani) की सरकार की लगातार खराब होती हालत की

विष्णु शंकर। आज बात करेंगे आतंकवादी तालिबान (Taliban) के हमलों के सामने अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) में राष्ट्रपति अशरफ ग़नी (Ashraf Ghani) की सरकार की लगातार खराब होती हालत की, देश की अमेरिका में प्रशिक्षित सेना के उखड़ते पैरों की और मुल्क पर मंडराते गृहयुद्ध के काले बादलों की. अशरफ ग़नी ने अपनी सरकार की हालत की समीक्षा के बाद मान लिया है कि तालिबान के साथ बातचीत नहीं हो सकती है. ग़नी अब सरकार के हामी क़बाइली नेताओं की मदद के सहारे हैं. साथ ही उन्होंने देश के आम शहरियों को हथियार देने का फैसला किया है ताकी वो और क़बाइली सरदारों के मिलिशिया मिल कर काबुल को तालिबान के हाथों में जाने से बचा सकें.

आप जानते ही हैं कि तालिबान ने काफी समय पहले ही अशरफ ग़नी की चुनी हुई सरकार से किसी प्रकार की शांतिवार्ता से इंकार कर दिया था और कहा था कि अगर ग़नी अफ़ग़ानिस्तान में अमन चाहते हैं तो सरकार से हट जाएं. तालिबान ने कहा था कि अगर ग़नी उनके कहे हिसाब से चलते हैं तो तालिबान फ़ौरन लड़ाई बंद कर देंगा और अमन क़ायम करने की तरफ बढ़ेंगा. वैसे तालिबान की कथनी और करनी में हमेशा अंतर रहा है. इस आतंकवादी संगठन का मक़सद सिर्फ अफ़ग़ानिस्तान पर कट्टर इस्लामी राज को फिर से लागू करना रहा है, और वह लगातार इसी कोशिश में लगा हुआ है. अशरफ ग़नी के लिये चिंता की बात यह है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान इलाकों पर तेज़ी से कब्ज़ा करते जा रहा है और देश की सेना उन्हें रोक पाने में पूरी तरह नाकाम रही है.
तालिबान ने एक सोची समझी साजिश के तहत पहले ग्रामीण इलाकों पर कब्जा किया
पहले तालिबान ने एक सोची समझी नीति के तहत देश के ग्रामीण इलाकों को जीता, प्रमुख हाइवेज़, सीमाओं और चुंगियों को कब्ज़े में लिया और अब देश के 34 सूबों की राजधानियों पर एक एक कर हमला बोल रहा है. पिछले शुक्रवार से अब तक तालिबान उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान के सूबों में से पांच की राजधानियों पर भयंकर लड़ाई और तबाही के बाद कब्ज़ा कर चुका है. ये सूबे हैं कुंदुज़, सरे पुल, ताखर की राजधानी तलोक़ान, जाओज़जान की राजधानी शिबरगन और समंगन की राजधानी ऐबक. इनके साथ साथ ईरान से लगने वाली सीमा के पास निमरोज़ की राजधानी ज़रंज पर भी अब तालिबान क़ाबिज़ है.
पश्चिमी अफ़ग़ानिस्तान में हेरात और मुल्क के दक्षिण में कंधार और हेलमंद सूबे की राजधानी लश्कर गाह पर कब्ज़े के लिए गंभीर लड़ाई चल रही है. अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान की सेना के समर्थन में तालिबान को निशाना बना कर कुछ हवाई हमले ज़रूर किए हैं लेकिन इनसे ज़मीनी हालात पर बहुत ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ा है. हालांकि सरकार के दावों में कहा गया है कि सैंकड़ों तालिबान आतंकवादी इन बमबारियों में मारे गए हैं.
उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में भी तालिबान का खतरा बढ़ा
दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान पर तो तालिबान का कब्ज़ा ऐतिहासिक तौर पर मज़बूत रहा है, लेकिन देश के पश्चिम और उत्तर में तालिबान के कारगर हमले और उनकी रफ़्तार ने देश पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञों को ताज्जुब में डाल दिया है. अगर अशरफ ग़नी मुल्क के उत्तरी सूबों पर अपनी पकड़ नहीं बनाए रखते हैं तो फिर उनकी सरकार बस गिनेचुने दिनों की मेहमान रह जाएगी. इसकी वजह यह है कि उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान को तालिबान विरोध का गढ़ माना जाता है.
1996 के बाद जब वहां तालिबान का राज था तब भी यहां के क़बाइली सरदारों और शहरियों ने उनका ज़ोरदार और कारगर विरोध किया था. इसी इलाके से देश की सेना के अधिकतर सैनिक भी आते हैं. शिबरगन को तो मशहूर क़बाइली नेता अब्दुल रशीद दोस्तम का गढ़ माना जाता था, लेकिन खबर है कि वहां से उनकी मिलिशिया और अफ़ग़ान सेना मज़ारे शरीफ की तरफ पीछे हट रही है.
ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि समंगन सूबे की राजधानी ऐबक पर कब्ज़े के बाद बल्ख सूबे की राजधानी मज़ारे शरीफ पर तालिबान के हमले का खतरा बढ़ गया है. समंगन ठीक काबुल और मज़ारे शरीफ को जाने वाले हाईवे पर पड़ता है और ऐबक पर तालिबान के कंट्रोल के बाद मज़ारे शरीफ और काबुल के बीच सीधा संपर्क अब खतरे में है.
मज़ारे शरीफ में भारत का कॉन्सुलेट अभी तक काम कर रहा था, लेकिन आज ही अब से कुछ देर पहले कॉन्सुलेट की तरफ़ से ट्वीट करके इस इलाके में रह रहे भारतीय नागरिकों से कहा गया है कि जो भी भारत लौटने का मन बना चुके हैं, वो फ़ौरन कॉन्सुलेट से संपर्क करें. यानि भारतीय डिप्लोमैट्स का भी आकलन यही है कि उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में भी अब तालिबान के कब्ज़े का खतरा बहुत बढ़ गया है.
इसी तरह से कुंदुज पर तालिबान का कब्ज़ा भी ग़नी के लिए बुरी खबर है. अब तालिबान यहां मौजूद अपने लड़ाकों को मुल्क के उत्तर में स्थित अन्य सूबों पर हमलों के लिए इस्तेमाल करेगा. तालिबान अपने कब्ज़े वाले शहरों में मौजूद जेलों से क़ैदियों को भी मुक्त करा रहा है. इनमें ऐसे बहुत क़ैदी हैं जो पहले तालिबान की फ़ौज का हिस्सा रहे थे और आने वाले दिनों में फिर और सूबों की राजधानियों में हमलों के लिए इस्तेमाल किये जाएंगे.
अशरफ ग़नी के विकल्प अब लगातार कम होते जा रहे हैं
काबुल के प्रेसिडेंशियल पैलेस के भीतर से खबर है कि अमेरिका के रवैये से राष्ट्रपति ग़नी खासे नाराज़ हैं. पश्चिमी देशों ने भी अफ़ग़ानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ दिया है. रूस और चीन भी सीधे-सीधे तालिबान से डील करते नज़र आ रहे हैं. पाकिस्तान तो ऐतिहासिक तौर पर तालिबान का हामी रहा है और अब हर तरह से उसकी मदद कर रहा है. ऐसे में अशरफ ग़नी के पास अब क़बाइली सरदारों की मिलिशिया और हथियारबंद शहरियों के अलावा कोई और बचा नहीं है जो उनकी सरकार के साथ खड़ा रहें. यानि अफ़ग़ानिस्तान में गृहयुद्ध तय लग रहा है.


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