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देश की राजनीति में तहलका मचा देने वाले पेगासस जासूसी मामले की निष्पक्ष जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यों की समिति बना कर बड़ा कदम उठाया है। इस जांच समिति में तीनों सदस्य तकनीकी विशेषज्ञ हैं।
देश की राजनीति में तहलका मचा देने वाले पेगासस जासूसी मामले की निष्पक्ष जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यों की समिति बना कर बड़ा कदम उठाया है। इस जांच समिति में तीनों सदस्य तकनीकी विशेषज्ञ हैं। समिति पूरे मामले की हर कोण से जांच करेगी और जल्द ही अदालत को रिपोर्ट देगी। जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज न्यायमूर्ति आर वी रवींद्रन करेंगे। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए न्यायमूर्ति रवींद्रन को व्यापक अधिकार दिए गए हैं, ताकि परत दर परत जांच में कोई बाधा पैदा न हो और सच्चाई देश के सामने लाई जा सके। पेगासस मामले से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले खंडपीठ ने की है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में सरकार को जांच समिति बनाने की इजाजत नहीं दी।
सरकार ने अनुरोध किया था कि जासूसी मामले में आरोपों की जांच के लिए केंद्र को विशेषज्ञ समिति बनाने की अनुमति दी जाए। लेकिन अदालत ने सरकार का अनुरोध यह कहते हुए ठुकरा दिया कि ऐसा करना पक्षपात के खिलाफ स्थापित न्यायिक सिद्धांत के उलट होगा। अदालत की यह टिप्पणी उसके गंभीर रुख को बताने के लिए पर्याप्त है। पेगासस मामला सामने आने के बाद सरकार ने जिस तरह का रवैया दिखाया, उससे यह संदेश गया कि सरकार इससे बचने की कोशिश कर रही है, कुछ छिपा रही है और सच्चाई सामने नहीं आने देना चाहती। ऐसे में अगर सरकार खुद ही जांच करती तो उस पर भरोसा कौन करता? इसलिए बेहतर यही था कि इस मामले की जांच अदालत की निगरानी में हो और दूध का दूध, पानी का पानी हो सके।
गौरतलब है कि सरकार पर राजनीतिक नेताओं, अदालत कर्मियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित कई भारतीय नागरिकों की जासूसी करवाने का आरोप है। इस साल जुलाई में जब यह मामला सामने आया तो हंगामा होना स्वाभाविक था। विपक्ष ने सरकार से संसद में इस मुद्दे पर चर्चा करवाने की मांग की। लेकिन सरकार ने नहीं करवाई। बल्कि सरकार यह कहती रही कि उसने ऐसी कोई जासूसी नहीं करवाई। सरकार यह स्वीकार करने भी बचती रही कि उसने इस जासूसी साफ्टवेयर का इस्तेमाल किया। जब मामला अदालत में पहुंचा तो उसने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए इस बारे में कोई जानकारी सार्वजनिक करने से इंकार कर दिया था। दरअसल इजराइल की कंपनी एनएसओ यह जासूसी साफ्टवेयर यानी पेगासस बनाती है। कंपनी का दावा है कि वह इस साफ्टवेयर को सिर्फ सरकारों को ही बेचती है या उन्हीं के कहने पर बनाती है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी था कि क्या भारत सरकार ने इसे खरीदा। और खरीदा तो क्या उसका इस्तेमाल किया? सरकार की ओर से कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिलने से संदेह गहराते गए।
भारतीय नागरिकों की जासूसी करवाने के मामले पहले भी सामने आते रहे हैं। इसलिए सर्वोच्च अदालत की यह समिति इस बात की भी जांच करेगी कि 2019 में भारतीय नागरिकों के वाट्सऐप खातों में सेंध का मामला उजागर होने के बाद सरकार ने क्या कदम उठाए। समिति यह भी पता लगाएगी कि क्या भारत के नागरिकों के खिलाफ इस्तेमाल के लिए भारत सरकार, किसी राज्य सरकार, या किसी भी केंद्रीय या राज्य एजंसी ने पेगासस साफ्टवेयर खरीदा था। पेगासस जासूसी कांड से यह संदेह और पुख्ता हुआ है कि राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ लेकर सरकार नागरिकों के निजता के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी को प्रभावित कर रही है। राष्ट्रीय सुरक्षा के मसला तो अदालत दखल नहीं भी देती। पर मामला नागरिकों के निजता से अधिकार से जुड़ा है। इसीलिए अदालत ने भी इसकी निष्पक्ष जांच करवाना जरूरी समझा। उम्मीद की जानी चाहिए है कि अब इस मामले की सच्चाई सामने आ सकेगी।
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