सम्पादकीय

यूक्रेन में शांति स्थापित करने की एर्दोगन की दूसरी कोशिश उनके घरेलू चुनाव अभियान का हिस्सा है

Rani Sahu
2 Jun 2022 9:05 AM GMT
यूक्रेन में शांति स्थापित करने की एर्दोगन की दूसरी कोशिश उनके घरेलू चुनाव अभियान का हिस्सा है
x
यूरोप में चल रहे संघर्ष के दौरान पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था (World Economy) को नुकसान पहुंचा है

के वी रमेश |

यूरोप में चल रहे संघर्ष के दौरान पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था (World Economy) को नुकसान पहुंचा है और मंदी का खतरा बढ़ गया है, मगर इससे कई देश लाभान्वित भी हुए हैं या उथल-पुथल से लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं. इनमें हंगरी, पोलैंड और तुर्की शामिल हैं. व्लादिमीर पुतिन के प्रति सहानुभूति रखने वाले हंगरी के दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन अपने पड़ोसी के खिलाफ रूस (Russia) की आक्रामकता को लेकर यूरोपीय एकता बनाने में मुख्य बाधा रहे हैं. वे यूरोप से रियायतें ले रहे हैं जिसमें रूस के खिलाफ यूरोपीय संघ (European Union) के तेल प्रतिबंध से छूट भी शामिल है. युद्ध शुरू होने के दो हफ्ते बाद जब एक स्तब्ध दुनिया आक्रमण के लिए रूस की निंदा कर रही थी, ओर्बन ने घोषणा की कि रूस को सुरक्षा की गारंटी दिए बगैर पूर्व की तरफ नाटो के विस्तार ने ही युद्ध का आधार तैयार किया है
प्रवासियों के खिलाफ नीतियों और आपातकाल वाली शक्तियों के साथ शासन की हर तरफ निंदा हुई मगर विदेश में बदनामी के बावजूद ओर्बन को राष्ट्रपति के रूप में चौथा कार्यकाल मिला. इस जीत ने ओर्बन के अपने देश में समर्थन के आधार को और बढ़ा दिया है जिससे वे रूस के खिलाफ तैयार नाटो-यूरोपियन संघ से खुल कर अलग नजर आ रहे हैं और अपने शब्दों और कार्यों से युद्ध में यूरोप के कदम को कमजोर कर रहे हैं. एक और दक्षिणपंथी सरकार के नेतृत्व में पोलैंड ने बिल्कुल उलटा रुख अपनाया है. वह रूस का मुख्य प्रतिद्वंद्वी बन गया है और पुराने रूस निर्मित हथियार और टैंक के बदले पश्चिमी देशों से भारी मात्रा में नकद और आधुनिक हथियारों सहित कई रियायतें ले रहा है.
ओर्बन और मोरावीकी सामूहिक यूरोपीय नेतृत्व के लिए सिरदर्द बन गए हैं
जारी युद्ध में पोलैंड के हमलों का जितना निशाना रूस बन रहा है उतना ही जर्मनी भी. प्रधानमंत्री माटुस्ज़ मोराविएकी के नेतृत्व वाली पोलैंड सरकार लगातार जर्मनी की आलोचना करती रही है और उसने युद्ध क्षेत्र से भाग रहे शरणार्थियों के देश में पुनर्वास के लिए पैसे की मांग की है. उसने जर्मनी से अत्याधुनिक हथियारों और उपकरणों की मांग की है ताकि वह अपने पुराने उपकरणों को यूक्रेन भेज सके. जर्मनी ने युद्ध शुरू होने के बाद जिस बढ़ोतरी वाले रक्षा खर्च का एलान किया है, पोलैंड उसमें से बड़े हिस्से की मांग कर रहा है. यहां के नेता खुद को अग्रणी देश के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं. उनका दावा है कि पुतिन के गुस्से का अगला निशाना वे होंगे जबकि तथ्य यह है कि अगर पुतिन युद्ध को और व्यापक स्तर पर ले जाएंगे तो यूक्रेन के दक्षिण में कॉकेशिनयन गणराज्य और उत्तर के बालटिक गणराज्य उनके गुस्से का ज्यादा शिकार होंगे.
ओर्बन और मोरावीकी सामूहिक यूरोपीय नेतृत्व के लिए दोहरे सिरदर्द बन गये हैं मगर तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन उन दोनों से बिल्कुल उलट हैं. एर्दोआन के लिए यूक्रेन युद्ध एक वरदान की तरह आया है. गिरती अर्थव्यवस्था और बढ़ते राजनीतिक विरोध ने 2023 के अगले राष्ट्रपति चुनाव में उनके लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. एर्दोगनने जिस मनमौजी ढंग से देश की अर्थव्यवस्था को संभाला है उसकी तुलना श्रीलंका के राजपक्षों से की जा सकती है. बढ़ती महंगाई ने लोगों के बचत को बिलकुल खत्म कर दिया है और जरूरत की चीजें भी उनकी पहुंच के बाहर हो गई हैं मगर एर्दोगन ने यह कहते हुए ब्याज दरें नहीं बढ़ाईं कि अधिक मुद्रा की सप्लाई व्यवसायों को बढ़ावा देगी और लंबी अवधि में देश में समृद्धि लौट आएगी.
प्रधानमंत्री के रूप में दो कार्यकालों के बाद श्रीलंका के राजपक्षे की तरह इस्लामवादी राष्ट्रपति ने 2017 में देश के संविधान को राष्ट्रपति प्रणाली वाली सरकार के रूप में बदल दिया जिसमें राष्ट्रपति का कार्यकाल दो बार पांच-पांच साल का कर दिया गया और उन्होंने पहला टर्म जीत लिया. लेकिन संसद में उनकी जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी को जबरदस्त झटके लगे और इस्तांबुल में मेयर के चुनाव में उनकी पार्टी हार गई. अगले साल राष्ट्रपति के दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव से पहले उन्हें दोबारा एकजुट हो कर शक्तिशाली हो रहे विपक्षी दलों से जबरदस्त चुनौती मिल रही है. एर्दोगन के सत्ता में शुरुआती दिनों में तुर्की में अर्थव्यवस्था में तेजी के साथ जबरदस्त समृद्धि आई. मगर महामारी ने दुनिया के दूसरे देशों की तरह तुर्की की भी अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया है और एर्दोगन उसे पटरी पर नहीं ला पा रहे हैं.
एर्दोगन में तानाशाही के लक्षण दिखाई देने लगे हैं
लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि एर्दोगन में तानाशाही के लक्षण दिखाई देने लगे हैं. उन पर प्रजातांत्रिक मूल्यों और विपक्ष को कुचलने, संविधान से तोड़-मरोड़ करने के आरोप लगे हैं जिस कारण उन्हें सेना और राजनीतिक विरोध का भी सामना करना पड़ा है. एर्दोगन की इस्लामी नीतियों ने उन्हें तुर्की के ग्रामीण क्षेत्रों में तो लोकप्रियता दिलाई है लेकिन इसने सेना को बुरी तरह से विभाजित कर दिया है जो परंपरागत रूप से धर्मनिरपेक्ष रही है. एर्दोगन की नीतियों ने सशस्त्र बलों के भीतर इस तरह की नाराजगी पैदा कर दी है कि तुर्की सेना के अधिकारियों के एक वर्ग ने 2016 में पीस ऐट होम काउंसिल नाम से एक समूह बना कर तख्तापलट का प्रयास किया जिसे एर्दोगन ने सेना के वफादार अफसरों की मदद से बेरहमी से कुचल दिया. सैकड़ों लोगों की हत्या कर दी गई और हजारों सैन्यकर्मी जेल भेज दिए गए.
तुर्की के विपक्ष को जेल में डालने और कठोर कानून के माध्यम से क्रूरता से कुचलने की कोशिश के बावजूद एर्दोगन उनके विरोध को खत्म करने में नाकाम रहे हैं. उन्होंने अगले साल राष्ट्रपति चुनाव में अपने संभावित मुख्य विरोधी कनान काफ्तानसिओग्लू को भी जेल में डाल दिया है. एर्दोगन की विरोधी यह मुख्य विपक्षी महिला नेता ने देश की राजधानी और सबसे बड़े शहर इस्तांबुल में मेयर चुनाव में अपनी रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी का नेतृत्व किया और उसे बड़ी जीत दिलाई जो एर्दोगन के लिए एक तगड़ा झटका है. उन्हें राष्ट्रपति और देश का अपमान करने के मामूली आरोप के लिए दोषी ठहराया गया है और एर्दोगन के खिलाफ चुनाव लड़ने से रोकने की स्पष्ट कोशिश में चार साल और 11 महीने जेल की सजा सुनाई गई है.
एर्दोगन की कपट पूर्ण राजनीति ऐसी है जिसने तुर्की की ईंधन के आयात पर लगभग पूर्ण निर्भरता को देखते हुए कि इराकी कुओं से तेल की अवैध आपूर्ति के लिए आईएसआईएस के साथ समझौता किया है. तुर्की ने पूर्वी भूमध्यसागरीय इलाके में अवैध रूप से तेल और गैस के लिए ड्रिल करने की कोशिश की जिसके लिए यूरोपीय संघ ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया है. डूब रही अर्थव्यवस्था और विपक्ष के बढ़ते विरोध समेत दूसरी परेशानियों से देश के लोगों का ध्यान हटाने के लिए एर्दोगन को यूक्रेन संघर्ष में एक आशा की किरण नजर आई है.
एर्दोगन ने सही पत्ते खेले हैं
अपने देश को अपनी ही करतूत से बुरी स्थिति में लाने के बाद उबारने के लिए उन्हें तीन काम करने की जरूरत थी यूरोप को अपने प्रतिबंधों को हटाने के लिए मजबूर करना, रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदने के लिए अमेरिका को अपने प्रतिबंधों को हटाने के लिए राजी करना और तुर्की को अमेरिका के F-35 स्टील्थ जेट कार्यक्रम में फिर से शामिल करने के लिए राजी करना और युद्ध में सहायता करने के अलावा यदि संभव हो तो पुनर्निर्माण के लिए यूक्रेन को मिलने वाली सहायता का एक बड़ा हिस्सा लेने की कोशिश करना.
एर्दोगन ने सही पत्ते खेले हैं. रूस के खिलाफ युद्ध में एकजुटता दिखाने के लिए नाटो ने यूरोपियन यूनियन को तुर्की के खिलाफ प्रतिबंधों को कम करने के लिए राजी कर लिया है. इसके अलावा एर्दोगन ने खुद को एक शांतिदूत की भूमिका में रखा और रूस और यूक्रेन के प्रतिनिधियों के बीच अंकारा में दो दौर की वार्ता की मेजबानी की. हालांकि दोनों ही वार्ता विफल रही. यूरोप को अपने प्रयासों से प्रभावित होता नहीं देख उन्होंने एक और चाल चली. स्वीडन और फ़िनलैंड के नाटो में शामिल होने के आवेदन पर एर्दोगन ने नाटो के उस नियम का फायदा उठाया जिसमें किसी नये देश को नाटो में शामिल करने के लिए सभी देशों में सर्वसम्मति होनी जरूरी है. कुर्दिश वर्कर्स पार्टी जैसे अपने राजनीतिक विरोधियों के लोगों की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने मांग की कि नॉर्डिक देशों का उन्हें शरण देना आतंकवाद को बढ़ावा देना है और वे इसके लिए तैयार नहीं हैं.
एर्दोगन ने यूरोपीय देशों की वर्तमान गंभीर अवस्था में भी एक अवसर ढूंढ लिया है
अब तुर्की को शांत करने की बारी यूरोप की हो गई है जबकि होना इसका उलटा चाहिए था. अब एक आरामदायक स्थिति में मौजूद एर्दोगन ने यूक्रेन और रूस के बीच शांति स्थापित करने में एक और कदम उठाने का फैसला किया. उन्होंने रूस, यूक्रेन और संयुक्त राष्ट्र के बीच वार्ता में खुद रेफरी बनने की पेशकश कर दी. एर्दोगन ने सोमवार को पुतिन और जेलेंस्की को अलग-अलग फोन किए. उन्होंने ज़ेलेंस्की को बताया कि तुर्की ने यूक्रेन और रूस के बीच वार्ता जारी रखने के लिए सभी प्रयास किए हैं और तुर्की के संचार निदेशालय के अनुसार आगे भी ऐसे प्रयास होते रहेंगे. एर्दोगन ने यूक्रेन, रूस और संयुक्त राष्ट्र के बीच संघर्ष विराम और वार्ता के प्रयासों की निगरानी के लिए इस्तांबुल में एक "ऑबजर्वेशन मेकेनिज्म" यानी "अवलोकन तंत्र" स्थापित करने की पेशकश की.
पुतिन के साथ अपनी बातचीत में उन्होंने रूसी राष्ट्रपति से कहा कि जल्द से जल्द शांति स्थापित करने और यूक्रेन में संघर्ष को लेकर विश्वास बहाली के कदम उठाए जाने की जरूरत है. एर्दोगन ने यूरोपीय देशों की वर्तमान गंभीर अवस्था में भी एक अवसर ढूंढ लिया है. यूरोपीय देशों ने रूसी गैस पर व्यापक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है लेकिन वैकल्पिक आपूर्ति की उन्हें सख्त जरूरत है. एर्दोगन ने प्रस्ताव दिया है कि नॉर्वे, अजरबैजान और जरूरत से अधिक गैस रखने वाले इजराइल की जगह गैस की वैकल्पिक आपूर्ति तुर्की के रास्ते हो सकती है.
यूरोप की गैस आपूर्ति में अंतर को भरने के लिए अज़रबैजान उत्पादन को बढ़ाने की योजना बना रहा है और आपूर्ति के लिए बनी एकमात्र ट्रांस-एनाटोलियन प्राकृतिक गैस पाइपलाइन (टीएएनएपी) तुर्की से गुजरती है. तुर्की गैस का एक हिस्सा लेता है लेकिन अजरबैजान के यूरोप में अधिक गैस पंप करने के पीछे वह खुद को यूरोप को मदद पहुंचाने वाले एक उदारवादी देश के रूप में प्रस्तुत कर रहा है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने व्यक्तित्व को चमकाने के लिए एर्दोगन के नाटकीय प्रयास विश्व मंच पर देशों को प्रभावित कर सकते हैं या नहीं यह फिलहाल कोई नहीं जानता, लेकिन क्या वे मतदाताओं को अपने क्रूर, आत्म-केंद्रित शासन से लुभा पाएंगे यह भी अगले साल होने वाले आम चुनाव में साफ हो जाएगा. (खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

सोर्स- tv9hindi.com

Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story