सम्पादकीय

नई ऊर्जा का दौर

Rani Sahu
13 Sep 2023 7:01 PM GMT
नई ऊर्जा का दौर
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By: divyahimachal
प्रधानमंत्री मोदी और सऊदी अरब के युवराज एवं प्रधानमंत्री मुहम्मद बिन सलमान के दरमियान कई समझौता-दस्तावेजों पर दस्तखत किए गए। वे द्विपक्षीय वार्ता के निष्कर्ष थे, लेकिन उनमें नवीकरणीय ऊर्जा का समझौता बेहद महत्वपूर्ण और प्रासंगिक माना जा रहा है। यदि दुनिया के पर्यावरण को छलनी होने से बचाना है, तो कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगानी होगी। पृथ्वी के तापमान को कम करना होगा, लिहाजा हरित और स्वच्छ ऊर्जा की प्राथमिकता बनानी होगी। सऊदी अरब भारत का भरोसेमंद और बड़ा कारोबारी साझेदार है। हमें तेल और गैस मुहैया कराने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है। बीते साल 4.3 लाख करोड़ रुपए का कारोबार किया गया है। करीब 24 लाख भारतीय सऊदी अरब में कार्यरत हैं। करीब 2700 भारतीय कंपनियां वहां काम कर रही हैं। भारतीय कई कंपनियों के सीईओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) भी हैं। बीते साल करीब 1.75 लाख भारतीय हज के लिए वहां गए। सऊदी अरब एक प्रगतिशील देश बन रहा है। वहां सिनेमा पर थोपी गईं पाबंदियां हटा ली गई हैं। अरबी औरतें कार चलाती हैं। बुर्के की बंदिशें जबरन नहीं हैं। भारत ने अमरीका और सऊदी अरब के संबंधों को सामान्य कराया है। दोनों देश प्रतिबद्ध हैं कि चीन ‘अड़ंगेबाज’ न बन सके।
नवीकरणीय ऊर्जा समय की दरकार है और एक मजबूत, साबित विकल्प भी है। भारत और सऊदी अरब के बीच समझौता हुआ है कि वे नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमताओं का विस्तार करेंगे। सऊदी अरब ने लक्ष्य तय किया है कि वह 2030 तक अपनी कुल ऊर्जा का 50 फीसदी हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा का रखेगा। भारत में इस ऊर्जा का 2022 में उत्पादन 175 गीगावाट था। अब 2030 तक उसे बढ़ा कर 450 गीगावाट किया जाएगा। एक गीगावाट 1000 मेगावाट के बराबर होता है। अर्थात हम 4.5 लाख मेगावाट अतिरिक्त ऊर्जा पैदा करने की स्थिति में होंगे। इसका अधिकांश भाग ‘सौर ऊर्जा’ का होगा, जो हमें सूर्य के प्रकाश से सहज सुलभ है। हम विश्व सौर गठबंधन देशों के सदस्य भी हैं। भारत वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा के सूत्रधार की भूमिका में है। देश में तो घरों की छत तक पर सौर प्लांट लगाए जा रहे हैं। भारत-अरब देशों में संभावनाएं ये भी जताई जा रही हैं कि दोनों देशों के ‘नेशनल ग्रिड’ समंदर के नीचे एक इंटरलिंक के जरिए जोड़े जा सकते हैं, नतीजतन ऊर्जा दोनों देशों को निरंतर उपलब्ध होगी। दोनों देशों ने अपने पारंपरिक स्रोतों के जरिए नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन पर महत्वपूर्ण प्रयास जारी रखे हैं। यह नए दौर की जरूरतों के लिए नए अनुसंधान माने जा सकते हैं। एक अनुमान यह भी सामने आया है कि अगले साल तक नवीकरणीय ऊर्जा की वैश्विक क्षमता करीब 4500 गीगावाट तक बढ़ सकती है। यह अमरीका और चीन की साझा क्षमता से दोगुनी होगी। बहरहाल राज्यवार नवीकरणीय ऊर्जा का विकास और बढ़ोतरी फिलहाल असमान है। यह गंभीर चुनौती भी है। चूंकि नई ऊर्जा के भंडारण की लागत काफी है, लिहाजा वह आकर्षक नहीं है।
राज्यों में ऊर्जा की ‘चरम मांग’ की स्थितियां भी भिन्न हैं। बेशक भारत में नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार लगातार हो रहा है और 2030 तक क्षमताएं खूब बढ़ जाएंगी। यदि वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमताओं में बढ़ोतरी होती रहती है, तो देशों के ‘नेशनल ग्रिड’ को जोडऩा किफायती होगा। भारत-अरब के प्रयोगों से स्थितियां और आर्थिक पहलू स्पष्ट होंगे। बैटरियों के जरिए ऊर्जा भंडारण की प्रौद्योगिकी में भी तेजी से सुधार हो रहे हैं, लेकिन व्यापार करने वाले देशों को सावधान और सतर्क रहना पड़ेगा कि प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग न किया जाए। बहरहाल भारत और सऊदी अरब के बीच समझौते से उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है कि नवीकरणीय ऊर्जा का भविष्य उजला है। दोनों देशों ने रक्षा, पर्यटन, व्यापार समेत कई क्षेत्रों में समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रिड को जोडऩे की सोचना वाकई अभिनव शुरुआत है। आतंकवाद पर भी भारत के रुख से सऊदी अरब को सहमत होना चाहिए। वास्तव में आतंकवाद पूरे विश्व के लिए ही एक बड़ा खतरा है, अत: सऊदी अरब को भारत की चिंताओं से सरोकार होना चाहिए। भारत को यह कोशिश करनी चाहिए कि सऊदी अरब पाकिस्तान को सीमा पार आतंकवाद फैलाने से रोके। तभी इस देश के साथ हमारे रिश्ते मजबूत हो पाएंगे।
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