सम्पादकीय

पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिंगः 'खेजड़ी' बचाने के लिए आगे आया बिश्नोई समाज, जानें क्या है मामला

Rani Sahu
20 Jun 2022 6:13 PM GMT
पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिंगः खेजड़ी बचाने के लिए आगे आया बिश्नोई समाज, जानें क्या है मामला
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देश और दुनिया में पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिंग पर कोरी बातों और वृक्षारोपण के उत्सव के बीच राजस्थान में बाप गांव के ग्रामीणों ने अभिनव पहल की है


By लोकमत समाचार सम्पादकीय
देश और दुनिया में पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिंग पर कोरी बातों और वृक्षारोपण के उत्सव के बीच राजस्थान में बाप गांव के ग्रामीणों ने अभिनव पहल की है. उन्होंने पर्यावरण बचाने के लिए नया संघर्ष शुरू किया है. बाप नाम का यह गांव भारत-पाकिस्तान सीमा से सटे जोधपुर जिले में बड़ी सीड पंचायत समिति के अंतर्गत आता है.
थार के रेगिस्तान में पोखरण से 75 किमी दूर बाप गांव में पिछले बुधवार को बिश्नोई समाज एकत्र हुआ. अखिल भारतीय जीवन रक्षा बिश्नोई सभा ने अपने समुदाय के लोगों की सभा आयोजित की थी. इस रेगिस्तानी परिसर में विशाल सौर ऊर्जा परियोजना स्थापित करने का काम राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने हाथ में लिया है.
ग्रामीणों का आरोप है कि परियोजना क्रियान्वित करने वाली कंपनियां बड़ी संख्या में बहुउपयोगी खेजड़ी वृक्षों का कत्ल कर रही हैं. उनका कहना है कि पेड़ काटने के कारण उस परिसर में उनके संरक्षण में विचरने वाले हिरण भी अब दिखाई नहीं देते. कंपनियांं और उनके इशारे पर नाचने वाला प्रशासन इस आरोप को मानने के लिए तैयार नहीं था.
उसके बाद गांववासियों ने खुदाई की और काटे गए वृक्षों के बड़े-बड़े ठूंठ बाहर आ गए. लोग नाराज हो गए. बिश्नोई समाज ने इन पेड़ों को बचाने के लिए खेजड़ी बचाओ आंदोलन का आह्वान किया. बिश्नोई समाज ने विरोध प्रदर्शन किया. महंत भगवानदास के नेतृत्व में बिश्नोई समाज आंदोलन कर रहा है. समुदाय का आरोप है कि सौर ऊर्जा परियोजना के लिए आठ हजार से अधिक खेजड़ी वृक्ष काटे गए हैं.
खेजड़ी को राजस्थान का कल्प वृक्ष भी कहा जाता है. तुलसी की तरह ही राजस्थान में इस वृक्ष की पूजा की जाती है. खेजड़ी वृक्ष राजस्थान जैसे बेहद कम वर्षा वाले इलाके में भरी गर्मी में भी हरा-भरा रहता है. इसका चारा पशुओं की भूख मिटाता है. उन्नीसवीं सदी के अंत में राजस्थान में भयानक अकाल के दौरान लाखों लोग खेजड़ी की छाल खाकर जिंदा रहे.
खेजड़ी के उपकार को बिश्नोई समाज आज भी नहीं भूला है. खेजड़ी के फूल को मींझर कहते हैं. मींझर की महत्ता इतनी ज्यादा है कि प्रसिद्ध कवि कन्हैयालाल सेतिया की रचना मींझर को राजस्थान की लोक संस्कृति का वर्णन करने वाली लेखन शैली का अविभाज्य अंग माना जाता है. 1988 में केंद्र सरकार ने खेजड़ी पर डाक टिकट भी जारी किया था.
सदियों से पशु-पक्षियों, वृक्षों और पर्यावरण के संरक्षण के प्रति बिश्नोई समाज के संघर्ष का आरंभ बिंदु खेजड़ी वृक्ष है. बिश्नोई समाज के आद्य पुरुष जांभोजी महाराज ने यह संदेश दिया था, 'सिर कटे रुख बचे, तो भी सस्ता जान'. इस उपदेश का बिश्नोई समाज जी-जान से पालन करता है.
18वीं सदी में 11 सितंबर 1730 को अमृतादेवी बिश्नोई के नेतृत्व में इस समुदाय की महिलाएं खेजड़ी वृक्षों को बचाने के लिए उनसे चिपक गई थीं. मारवाड़ के राजा के राजमहल के निर्माण के लिए खेजड़ी वृक्ष काटे जा रहे थे. आंदोलन का विरोध करने पर जोधपुर के पास खेजडली गांव में राजा के सैनिकों ने अमृतादेवी सहित बिश्नोई समुदाय के 363 लोगों की निर्मम हत्या कर दी थी.
दुनिया के इतिहास में पर्यावरण की रक्षा के लिए यह अप्रतिम बलिदान स्वर्ण अक्षरों में अंकित है. बीसवीं सदी में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के चिपको आंदोलन को अमृतादेवी के आंदोलन से ही प्रेरणा मिली थी.
काले हिरण के शिकार के मामले में जब समूची व्यवस्था अभिनेता सलमान खान के साथ खड़ी थी, तब बिश्नोई समाज अपना सर्वस्व दांव पर लगाकर इस मूक प्राणी के पक्ष में खड़ा था. माना जाता है कि मशहूर पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या के आरोपी लाॅरेन्स बिश्नोई ने सलमान को पहली धमकी काले हिरण के शिकार के मामले में ही दी थी.
Rani Sahu

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