- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- रोटी, कपड़ा, मकान से...

x
प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है
प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। वैश्विक संकट बन चुके वायु प्रदूषण और पर्यावरण पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में 1972 में हुई चर्चा के दौरान हर साल विश्व पर्यावरण दिवस मनाए जाने की बात कही गई। दो वर्ष बाद 5 जून 1974 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया जिसके बाद से हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस आयोजन का उद्देश्य पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जागरूकता फैलाना है। 2018 में विश्व पर्यावरण दिवस समारोह की मेज़बानी भारत ने की थी और इसका थीम 'प्लास्टिक प्रदूषण' था। इस बार 2022 में विश्व पर्यावरण दिवस समारोह की मेज़बानी स्वीडन कर रहा है। विश्व पर्यावरण दिवस 2022 का विषय या थीम 'केवल एक पृथ्वी' है।
इसका आयोजन प्रत्येक वर्ष संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा किया जाता है। रविवार को पर्यावरण दिवस है तो हमें पर्यावरण की बड़ी चिंता होगी, जगह-जगह सेमिनार होंगे, सम्मेलन होंगे और यह विशेष दिवस एक दिन का उत्सव मात्र बनकर रह जाएगा। क्या साल के सिर्फ एक दिन हम इस मुद्दे पर बात करना, चर्चा करना और एक-दूसरे को जागरूक करना जरूरी समझते हैं? बाकी के 364 दिन हमें इस विषय पर बात करने तक की जरूरत नहीं महसूस होती। बचपन से सुनते आए हैं कि सभी को रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरत होती है। ये चीजें जरूरी भी हैं। लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी चीजें हैं जिनके बिना हम दुनिया में केवल और केवल कुछ ही मिनट रह पाएंगे। जो चीजें हमें प्रकृति ने मुफ्त में दी हैं। प्रकृति हमसे इन सभी चीजों के बदले में रुपए-पैसे भी नहीं लेती है, लेकिन हम बेखबर इन बातों को समझने के लिए तैयार ही नहीं हैं। मुझे लगता है कि आज के समय में सबसे पहली चीज जो जीने के लिए जरूरी है, वो है हवा। इसके बाद जरूरी है जल। इसके बाद भोजन आता है। क्योंकि ये चीजें नहीं मिलेंगी तो हम ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह पाएंगे। आइए जरा सोचें कि अगर ये नहीं होंगे तो क्या होगा? सबसे पहले जरूरत होती है हमें हवा की। हर एक प्राणी सांस लेता है।
सबके पास घर हो या न हो, कोई गारंटी नहीं है, लेकिन वो सांस जरूर लेगा। लेकिन आज प्रदूषण इतना फैल चुका है कि हमें शुद्ध हवा नहीं मिल पा रही है, जिस कारण हम बीमार होते जा रहे हैं। वृक्ष ही ऑक्सीजन का एकमात्र साधन है, लेकिन आज के समय पेड़ कटते जा रहे हैं। जनसंख्या बढ़ती जा रही है। कारें, गाडि़यां, बाइक, ट्रक, स्कूटर आदि बढ़ते जा रहे हैं। फैक्टरी और उनसे निकलने वाला ज़हरीला धुआं हम अपने फेफड़ों में अंदर ले जाते जा रहे हैं। जरा सोचिए, कैसे हम जी सकते हैं? अगर पेड़ काटने बंद नहीं हुए तो एक दिन ऐसा आएगा कि कुछ सालों के बाद हम ऑक्सीजन सिलेंडर साथ लेकर घुमा करेंगे। इसलिए अब सचेत हो जाना चाहिए। इस पर्यावरण दिवस पर एक काम तो जरूर कीजिए कि अधिक से अधिक पेड़ लगाइए। केंद्र सरकार ने 'सेल्फी विद सैपलिंग' अभियान भी शुरू किया है ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाएं। हमें जीवन के लिए ऑक्सीजन चाहिए तो हमें पेड़ भी लगाना चाहिए। हमें पीने के लिए पानी चाहिए तो जल संरक्षण भी करना होगा। हमें अपने लिए घर बनाना है तो रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को भी मकान निर्माण में जगह देनी होगी। जल संकट न हो, इसके लिए भूजल स्तर को बनाए रखना होगा। प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग में सावधानी बरतनी होगी। तभी हम रोजमर्रा की जिंदगी में अपने छोटे-छोटे प्रयासों से पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पेरिस लक्ष्य पूरा करने के लिए हमें 2020 से 2030 के बीच हर साल कार्बन उत्सर्जन को 7.6 फीसदी की दर से कम करना होगा। लांसेट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष 460 लाख डॉलर प्रदूषण जनित रोगों पर खर्च होते हैं जो विश्व की कुल अर्थव्यवस्था का लगभग 6.2 फीसदी है। पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2020 में भारत को 180 देशों की सूची में 168वां स्थान दिया गया है। जबकि वर्ष 2018 के पर्यावरणीय प्रदर्शन सूचकांक में भारत 177वें स्थान पर था।
पिछले कुछ वर्षों से फसल अवशेष जलाने की घटनाओं में निरंतर वृद्धि हुई है। दिल्ली के पड़ोसी राज्यों हरियाणा और पंजाब में धान की फसल की कटाई के बाद खेतों को साफ करने के लिए उनमें आग लगा दी जाती है जिसके चलते इससे उत्पन्न होने वाला धुआं आसपास की हवा को प्रदूषित कर देता है। यह हवा की गुणवत्ता, मिट्टी की उर्वरता और मानव स्वास्थ्य के लिए भी बेहद दुष्प्रभावी है। हमें अपने पर्यावरण को बचाने के लिए कई उपाय करने होंगे जैसे कि हमें वाहनों के उत्सर्जन मानकों को मज़बूत करना होगा। इलेक्ट्रिक वाहनों को मुख्यधारा में लाना होगा। निर्माण कार्यों के कारण उड़ने वाली धूल पर नियंत्रण करना होगा। अंतरराष्ट्रीय जहाज़ों से होने वाले उत्सर्जन में कमी करनी होगी। औद्योगिक प्रक्रिया से जुड़े उत्सर्जन मानकों को बेहतर बनाना होगा। घरेलू अपशिष्ट को जलाने पर सख्त पाबंदी को लागू करना होगा। अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में बढ़ोतरी करनी होगी। फसल के अवशेषों का बेहतर प्रबंधन करना होगा। वन भूमि में आग लगने की घटनाओं पर रोक लगानी होगी। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करना होगा। देश भर में प्लास्टिक के सामान का कम से कम प्रयोग करने और इसके कचरे के सही निष्पादन पर विशेष जोर दिया गया है। इस अभियान को सफल बनाने के लिए आम लोगों की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। अगर प्रत्येक घर पर ही कचरे की छंटाई करके प्लास्टिक को अलग कर दिया जाए तो एक बहुत बड़ी समस्या का समाधान अपने आप ही हो जाएगा। हालांकि पर्यावरण की गुणवत्ता को रातोंरात बहाल करना संभव नहीं है, पर हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरणीय लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में हम आगे-पीछे नहीं, बल्कि आगे की ओर बढ़ते रहें।
प्रत्यूष शर्मा
लेखक हमीरपुर से हैं
सोर्स- divyahimachal

Rani Sahu
Next Story