सम्पादकीय

पर्यावरण : हिमविहीन होती पृथ्वी, अभी है समूची प्रकृति और उसके संसाधनों की चिंता का समय

Neha Dani
23 April 2022 1:43 AM GMT
पर्यावरण : हिमविहीन होती पृथ्वी, अभी है समूची प्रकृति और उसके संसाधनों की चिंता का समय
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उपलब्धियों वाला भारत का इसरो सबसे पहले अर्थ-2 की खोज करने में सफल हो।

सुप्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी और खगोलशास्त्री स्टीफन हाकिंग ने अपनी मृत्यु से कुछ माह पूर्व चेतावनी दी थी, कि हमारी पृथ्वी 600 वर्षों में आग का गोला बन जाएगी। भूगर्भ के कार्बनिक ऊर्जा संसाधनों को हम इतना जलाते चले आए हैं कि अब पृथ्वी ही जलने लगी, जिसकी आंच इस वर्ष 18 मार्च को अंटार्कटिका में भी पहुंच गई, जहां तापक्रम औसत से 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जा पहुंचा। उत्तरी ध्रुव पर आर्कटिक का बर्फीला क्षेत्र भी तपने लगा और वहां तापक्रम औसत से 30 डिग्री सेल्सियस ऊपर चढ़ बैठा।

अंटार्कटिका में 3,234 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कॉनकोर्डिया स्टेशन पर तापमान 18 मार्च को -12.2 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया, जो पूर्व में -42 डिग्री सेल्सियस के आस-पास रहता था, यानी लगभग 40 डिग्री सेल्सियस ऊपर। अंटार्कटिका का वोस्तोक स्टेशन, जो इससे भी अधिक ऊंचाई पर है, पर तापमान -17.7 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया, जो औसत से 15 डिग्री ऊपर था। और तटीय टेरा नोवा बेस पर तो ताप बर्फ के गणनांक से सात डिग्री सेल्सियस ऊपर छलांग लगा गया।
पृथ्वी के दक्षिण ध्रुव के इतना गर्म होने की सूचना जैसे ही कोलोरोडो के बोल्डर में नेशनल स्नो ऐंड आइस डाटा सेंटर पहुंची, तो वहां सभी वैज्ञानिक आश्चर्य से ठंडे पड़ गए, क्योंकि उन्हें सूचना उस समय मिली, जब वे उत्तरी ध्रुव पर ध्यान दे रहे थे, जहां कुछ क्षेत्रों में तापक्रम गलनांक तक पहुंच गया था, वह भी ग्रीष्म ऋतु के आगमन से पूर्व। तुलनात्मक दृष्टि से, पूरी दुनिया 1979 से 2000 के औसत से 0.6 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो गई है। विश्व स्तर पर इतने वर्षों के अंतराल का औसत तापमान 20वीं सदी के औसत से लगभग 0.30 डिग्री सेल्सियस अधिक है।
अंटार्कटिका की गर्माहट वास्तव में आश्चर्यजनक है। दोनों ध्रुवों पर सार्वभौमिक गर्माहट की मार पृथ्वी पर जीवन विनाश के रास्ते खोल रही है। विनाश का एक रास्ता हिमालय पर्वतमाला से भी खुल रहा है। सबसे ऊंचा और सबसे संवेदनशील हिमालय पृथ्वी पर दोनों ध्रुवों के बाद सबसे विशाल हिम भंडार है, और इसीलिए हिमालय को पृथ्वी का तीसरा ध्रुव भी कहते हैं। हिमालय पर्वतमाला हमारे जिंदा ग्रह की नाड़ी है, जहां विनाशकारी परिवर्तन सबसे पहले प्रारंभ होते हैं और सबसे व्यापक प्रभाव डालते हैं।
गर्मी के मौसम का आगमन होते ही हिमालय की बर्फ के द्रुत गति से पिघलने के समाचारों की बाढ़-सी आने लगी। पहाड़ की चोटियों से बर्फ पानी बनकर तेजी से नीचे उतर रहा है और नदियों में पानी की मात्रा और प्रवाह को बढ़ा रहा है। लेकिन यह अस्थायी है और सारा बर्फ पिघलते ही नदियों के अस्तित्व पर ही संकट आ जाएगा। उत्तरकाशी के यमुनोत्री क्षेत्र में हिमालय की ऊंची चोटियां हिम विहीन होकर नंगी हो गई हैं। यमुनोत्री के उद्गम क्षेत्र का बंदरपूंछ पर्वत अपना हिम-दुशाला उतारे खड़ा है।
त्रिशूल पर्वत से नंदा देवी तक पहाड़ों की चोटियों से बर्फ की चादर उतर रही है। अभी तो गर्मी की ऋतु अपने चरम पर नहीं पहुंची है। जहां बर्फ बची है, वहां से भी मई-जून तक लुप्त होने की आशंका है। पर्वतों की नयनाभिराम छवि धूमिल-सी हो गई है। हिमालय पर गर्माहट की मार हिमालय वासियों के लिए ही नहीं, पूरे विश्व के लिए एक गंभीर खतरा है। पृथ्वी पर निरंतर बढ़ते जलवायु संकट को अनुभव करते हुए हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि हमारा यह जिंदा ग्रह शनैः-शनैः जीवन शून्यता की ओर बढ़ रहा है।
इसलिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा, चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन और एलन मस्क की स्पेस एक्स पृथ्वी-2 (अर्थ-2) खोज मिशन में जुटे हैं। संभव है, चंद्रमा पर जल की तरह और मंगल पर प्रथम प्रयास और सबसे कम व्यय में पहुंचने की आश्चर्यजनक उपलब्धियों वाला भारत का इसरो सबसे पहले अर्थ-2 की खोज करने में सफल हो।

सोर्स: अमर उजाला

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