सम्पादकीय

पर्यावरण दिवस विशेष : आओ, मरीज़ बनती धरती को बचाएं

Rani Sahu
3 Jun 2022 9:02 AM GMT
पर्यावरण दिवस विशेष : आओ, मरीज़ बनती धरती को बचाएं
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वायुमंडल में कॉर्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए 15 वर्ष की आयु में तख्ती पर ‘जलवायु के लिए स्कूलबंदी’ का नारा लिए स्वीडन की संसद के बाहर प्रदर्शन करने वाली विश्व प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग ने बिल्कुल सही कहा है

वायुमंडल में कॉर्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए 15 वर्ष की आयु में तख्ती पर 'जलवायु के लिए स्कूलबंदी' का नारा लिए स्वीडन की संसद के बाहर प्रदर्शन करने वाली विश्व प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग ने बिल्कुल सही कहा है कि जब वह 75 वर्ष की होगी तो सम्भवतः बच्चे पूछेंगे, 'तुमने पर्यावरण को बचाने के लिए उस समय कुछ क्यों नहीं किया जब करने का समय था। तुम कहते हो तुम अपने बच्चों को सबसे ज़्यादा प्यार करते हो और तुम ठीक उनकी आंखों के सामने उनके भविष्य को छीन रहे हो।' हमारी हर सांस पर्यावरण की शुद्धता पर निर्भर करती है। अपने प्रदेश, देश या विश्व की बात करें तो हमारी आबोहवा विषैली और दमगोट होती जा रही हैं। हिमाचल प्रदेश जैसे प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर राज्य में भी प्रदूषण अपनी दस्तक दे देता है। अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में यहां प्रदूषण सामान्य स्तर से बढ़ जाता है। बद्दी, नालागढ़, परवाणू, कालाअंब, सुंदरनगर और पहाड़ों की रानी शिमला भी प्रदूषण की चपेट में आ जाते हैं। 2021 की विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार भारत की राजधानी दिल्ली को सबसे प्रदूषित राजधानी शहर का दर्जा दिया गया है। बंगलादेश को सबसे प्रदूषित देश कहा गया है जबकि रिपोर्ट के अनुसार भारत पांचवां सबसे प्रदूषित देश। दुनिया के शीर्ष 15 सबसे प्रदूषित शहरों में से 10 अकेले भारत में हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2022 की वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार संसार के 99 प्रतिशत लोग कमोबेश अशुद्ध सांस लेते हैं। समझना आसान है कि मानव किस कदर विनाश की ओर बढ़ रहा है। यह कहना अनुचित नहीं कि इस स्थिति के लिए मानव स्वयं जिम्मेदार है। जांबिया के लुसाका में स्थित चिडि़या घर के एक पिंजरे के बाहर नोटिस लगा है जिसमें लिखा है-दुनिया का सबसे ख़तरनाक जानवर।

पिंजरे में कोई जानवर नहीं, बल्कि एक दर्पण है जिसमें आप अपना प्रतिबिंब देख सकते हैं। यह मनुष्य द्वारा पृथ्वी और प्रकृति के साथ किए गए सलूक पर तीखा व्यंग्य है जिससे ज़ाहिर है मानव ने ईश्वर द्वारा रचित खूबसूरत व दिलकश सृष्टि को एक मरीज़ बना दिया है। तेज़ी से बढती हुई आबादी की मांग को पूरा करने के लिए और अपने स्वार्थ के लिए मनुष्य ने प्राकृतिक संसाधनों का बेतरतीबी से दोहन किया है। संसार की बढ़ती आबादी को देखते हुए मानव ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक धरती और चाहिए, परंतु हमें मालूम है इसी धरती पर रह कर गुज़ारा करना होगा। जितनी तेज़ी से प्राकृतिक संसाधन समाप्त हो रहे हैं, उतनी तेज़ी से उनकी भरपाई नहीं की जा सकती। जल्दी ही ये संसाधन मानव के लिए कम पड़ जाएंगे। मतस्य पुराण में ऋषि मनीषा कहती हैं-दशपुत्रसमो द्रुमः अर्थात एक पेड़ दस पुत्रों के समान है। परंतु हमने धरती मां के रक्षक कहे जाने वाले वनों का तीव्र गति से नाश किया है। अपने आवास के लिए, ईंधन के लिए और चारागाहों के लिए वनों को काटा गया। इसके अलावा भी वनों का कटान किया जाता रहा। वनों को बचाने के लिए कानून का जंगल तो उग आया, परंतु वृक्ष कहीं-कहीं दिखाई देते हैं। यही समय है जब हमें मरीज़ बनती धरती को बचाना है।
जगदीश बाली
लेखक शिमला से हैं
पर्यावरण संरक्षण से प्रकृति संरक्षित
हमारी धरती, जनजीवन को सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण का सुरक्षित रहना बहुत जरूरी है। विश्व के देश आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन इस राह में दिनों दिन दुनियाभर में ऐसी चीजों का इस्तेमाल बढ़ गया है और इस तरह से लोग जीवन जी रहे हैं, जिससे पर्यावरण खतरे में है। इनसान और पर्यावरण के बीच गहरा संबंध है। प्रकृति के बिना जीवन संभव नहीं। ऐसे में प्रकृति के साथ इनसानों को तालमेल बिठाना होता है। लेकिन लगातार वातावरण दूषित हो रहा है जिससे कई तरह की समस्याएं बढ़ रही हैं जो हमारे जनजीवन को तो प्रभावित कर ही रही हैं, साथ ही कई तरह की प्राकृतिक आपदाओं की भी वजह बन रही हैं। सुखी स्वस्थ जीवन के लिए पर्यावरण का संरक्षण जरूरी है। इसी उद्देश्य से हर साल विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिन लोगों को पर्यावरण के प्रति सचेत किया जाता है और पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस हर साल जून महीने में मनाया जाता है।
दुनियाभर के तमाम देश 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाते हैं। इस साल भी पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए भारत समेत कई देशों में 5 जून को पर्यावरण मनाया जा रहा है। पहली बार पर्यावरण दिवस की शुरुआत 1972 में हुई थी। इस दिन की नींव संयुक्त राष्ट्र संघ ने 5 जून 1972 को रखी थी। इसी के बाद से हर साल लगातार 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाने लगा। भले ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का फैसला किया हो, लेकिन पर्यावरण दिवस को सबसे पहले स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में मनाया गया। 1972 में स्टॉकहोम में पहली बार पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया गया था जिसमें 119 देशों ने हिस्सा लिया था।
दुनिया में लगातार प्रदूषण बढ़ रहा है। इसी बढ़ते प्रदूषण के कारण प्रकृति पर खतरा बढ़ रहा है जिसे रोकने के उद्देश्य से पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत हुई, ताकि लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाए और प्रकृति को प्रदूषित होने से बचाने के लिए प्रेरित किया जा सके। भारत भी पर्यावरण संरक्षण को लेकर गंभीर है। इसी कारण पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत ने कानून बनाया है। इसके तहत 19 नवंबर 1986 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू किया गया था। जब पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा था तो भारत में भी पर्यावरण दिवस मनाया गया। उस समय देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण पर आयोजित कार्यक्रम में प्रकृति के प्रति अपनी चिंताओं को जाहिर किया था। हर वर्ष इस दिन के लिए एक थीम जारी की जाती है। विश्व पर्यावरण दिवस 2022 की थीम 'ऑनली वन अर्थ' यानी केवल एक पृथ्वी है। इस थीम के आधार पर 'प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना' पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। पर्यावरण समाज का एक हिस्सा है। इसको साफ-सुथरा रखना हम सब नागरिकों का कर्त्तव्य है, लेकिन मनुष्य अपने निजी स्वार्थ हेतु पर्यावरण को लंबे समय से प्रदूषित करता रहा है तथा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है। मनुष्य के इन कृत्यों के कारण प्रकृति विनाश की तरफ बढ़ रही है। इसे समय रहते रोकना होगा।
प्रो. मनोज डोगरा
लेखक हमीरपुर से हैं

सोर्स - divyahimachal

Rani Sahu

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