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- पत्रकारिता में उद्यमी...

समय के साथ-साथ देश बदल गया है, लोगों की सोच बदल गई है, व्यवसाय का तरीका बदल गया है और मीडिया भी बदल गया है। टाइम्स समूह में समीर जैन के आने के बाद मीडिया उद्योग में बड़े परिवर्तनों की शुरुआत हुई थी, लेकिन विद्वजनों को उनकी रणनीति की गहराई बहुत देर से समझ में आई। नब्बे के दशक के आसपास हैदराबाद में मुख्यालय वाले ईनाडु ने जिला संस्करणों की शुरुआत की। बाद में इंडियन एक्सप्रेस अपने चंडीगढ़ संस्करण से इसे टेस्ट मार्केटिंग के लिहाज से अपनाया, दिव्य हिमाचल ने जिला संस्करण को नीतिगत रूप में अपनाया और फिर जब दैनिक भास्कर ने भी उसे अपनाया तो पूरा मीडिया उद्योग इसकी नकल में उतर आया। सन् 2007 में मीडिया में एक नई विकृति आई और पेड न्यूज़ का सिलसिला शुरू हुआ। अब मीडिया में पेड न्यूज़ को अन्य सामाचारों से अलग दिखाने के लिए कई तरह के संकेतों का प्रयोग आरंभ हो गया है। ज्यादातर बड़े अखबार अब किसी न किसी रूप में पेड न्यूज़ को अन्य समाचारों से अलग दिखाना पसंद करते हैं। यह अलग बात है कि आम जनता में इन संकेतों को लेकर बहुत ज्यादा जागरूकता नहीं है। सन् 2014 में नरेंद्र मोदी का जलवा जब ठाठें मार रहा था तो मीडिया उद्योग में छोटे-छोटे बदलाव आने शुरू हुए, पर सन् 2014 के मध्य से सन् 2022 के मध्य तक के आठ वर्ष के अंतराल में बहुत कुछ और भी बदल गया है। विरोध के स्वरों को दबाने के लिए सरकारी दमन तंत्र ने अब शर्म करना बंद कर दिया है और सरकार चाहे ममता बनर्जी की हो, उद्धव ठाकरे की रही हो, योगी आदित्यनाथ की हो या नरेंद्र मोदी की, सबका हाल एक-सा ही है। पत्रकारों और मीडिया घरानों के खुलेआम दमन से भयभीत मीडिया अब सरकारों की यशोगाथा में लीन है। पहले जहां बहुत से पत्रकार अंबानी समूह से धन की सेवा स्वीकार करते थे वहीं अब पत्रकारों के पास अंबानी समूह द्वारा अधिगृहीत मीडिया कंपनियों की नौकरी में जाना एक विकल्प बन गया है। मीडिया जो कभी जनता की आवाज़ होता था, आज सरकारी भोंपू बनने के लिए विवश है क्योंकि मीडिया उद्योग अब बड़े पूंजीपतियों के हाथ में है जिनके अपने निहित स्वार्थ हैं। इसके साथ ही वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में लिखने-बोलने की स्वतंत्रता के मामले में भारतीय मीडिया उद्योग कई पायदान नीचे खिसक गया है। लिखने-बोलने की स्वतंत्रता की बात करने वाले लोगों का मत नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बनकर रह गया है। यहां तक कि इसे अनुचित, अनैतिक और देशद्रोह तक का फतवा मिलने लग गया है। सोशल मीडिया मंचों की महत्ता एकदम से बढ़ी है और इसके साथ ही इनका उपयोग व दुरुपयोग भी बढ़ा है। ट्विटर अब राजनीतज्ञों, फिल्म स्टारों और सेलेब्रिटी लोगों का प्रिय मंच बन गया है तो यूट्यूब की पकड़ भी तेजी से बढ़ी है।
By: divyahimachal
