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कहते हैं जो मज़ा बाँटने में है, वह किसी और चीज़ में नहीं। इसलिए वह आजकल खुल कर बाँटने का आनंद उठा रहे हैं। आखिर वह आनंद उठाएं भी क्यों न? उनके बाप का क्या जाता है? लंगोट तो लोगों के ही उतरने हैं। चुनाव सिर पर हैं और उन्हें इस बार रिवाज़ भी बदलना है। नहीं तो यह कैसे साबित होगा कि उन्होंने प्रदेश को तरक्क़ी की जिस नई राह पर धकेला है़, वहाँ से वापिसी क़तई मुमकिन नहीं। अब तो समर में सिर पर कफन बाँध कर गए जवान की तरह प्रदेश की लाश ही वापिस आ सकती है। जहाँ देश के इतने प्रदेश पहले ही कज़ऱ् के गर्त में जा चुके हैं, अगर वहाँ एक और छोटा सा पहाड़ी राज्य भी समा गया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा। हर साल देश के कुछ नामी मीडिया हाऊस के मुँह में विज्ञापन ठूँस कर, विकास के मामले में देश के पहाड़ी प्रदेशों में भला यूँ ही सिरमौर तो नहीं हुआ जाता। लोगों का क्या? लोग तो नासमझ हैं, जो हर बार सत्ता बदल देते हैं। पाँच साल के राज में तो बेचारे नेता जी की दाढ़ भी गीली नहीं होती। लाखों की कुर्सी पर रखी हज़ारों की गद्दी का फोम ढीला नहीं होता। फिर नए मंत्रियों के आते ही सचिवालय के चमचे कुर्सी और गद्दी दोनों बदल देते हैं। रिवाज़ बदलने पर कम से कम कुर्सी और गद्दी, दोनों का ख़र्च बचेगा। बाक़ी ख़र्चों के लिए बैंक हैं ही।
इसलिए आजकल वे खुल कर बाँट रहे हैं। जगह-जगह नए स्कूल, कॉलेज, खंड कार्यालय, सर्कल, तहसीलें, नागरिक उपमंडल और कार्यालय खोले जा रहे हैं। अपने राज में शिलान्यासित परियोजनाओं का भले पाँच साल पूरे होने तक लोकार्पण न हो पाया हो, लेकिन नई परियोजनाओं की घोषणाओं के साथ उनकी नींव रखी जा रही है। पहले जहाँ एक स्कूल में साठ बच्चे थे, वे अब चार से अधिक स्कूलों में बँट कर उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा का भरपूर लाभ उठा रहे हैं। हाई और सीनियर सेकेंडरी स्कूल, महाविद्यालयों में तबदील हो रहे हैं। रही बात छात्रों की, तो जब गुड़ है तो कभी न कभी, कहीं न कहीं से मक्खियाँ भी आ ही जाएंगी। लाईनमैन या फिटर के कमरे को जे. ई., जे. ई. दफ़्तर को एस. डी. ओ., एस. डी. ओ. को एक्सईन, एक्सईन को एस. ई., एस. ई. को मुख्य अभियंता के कार्यालयों में स्तरोन्नत किया जा रहा है। फिलहाल क़ानूनगो सर्कल को तहसीलों और तहसीलों को एसडीएम ऑफिस में बदला जा रहा है। अगर रिवाज़ बदला तो अगली बार रिवाज़ बनाए रखने के लिए पटवार सर्किल को तहसील, तहसील को एसडीएम कार्यालय और एसडीएम कार्यालय को जि़ला में बदला जाएगा। महाविद्यालयों को विश्वविद्यालय में स्तरोन्नत किया जाएगा। स्वास्थ्य क्षेत्र भी इस दौड़ में पीछे नहीं। डिस्पेंसरी को पीएचसी में, पीएचसी को सीएचसी और सीएचसी को सिविल अस्पताल में स्तरोन्नत किया जा रहा है।
सिविल अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज में बदला जा सकता है। यह भी संभव है कि कई स्थानों पर जि़ला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज साथ-साथ हों। प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं इतनी आगे बढ़ चुकी हैं कि मरीज़ मीलों पीछे छूट गए हैं। रही बात डॉक्टरों और विशेषज्ञ सेवाओं की, तो वे पहले भी दूर की ढोल थीं। वैसे भी मनुष्य का जीवन ईश्वर के हाथ है। लेकिन टूटी-फूटी सडक़ों का उसी हाल में रहना ज़रूरी है, क्योंकि वे हमारे चरित्र की परिचायक हैं। रिवाज़ बदलने को आतुर नेता जी प्रदेश भ्रमण के लिए हेलीकॉप्टर को स्कूटर की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। किक मारी और निकल लिए राज्य के एक कोने से दूसरे के लिए। अधिकारियों और कर्मचारियों में कर्मठता लाने का इससे बेहतर तरीक़ा और कुछ नहीं हो सकता कि छुट्टी वाले दिन भी उन्हें सार्वजनिक सभाओं और रैलियों को सफल बनाने की जि़म्मेवारी सौंपी जाए। आजकल अधिक काम करने की वजह से मुख्यमंत्री का चेहरा निस्तेज हो गया है। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं। रिवाज़ बदलते ही वह फिर से मृदुभाषी, ओजस्वी और यशस्वी हो उठेंगे। उनका शासन कर्मठ, पारदर्शी, न्यायप्रिय, भ्रष्टाचारमुक्त और समतापूर्ण हो उठेगा।
पी. ए. सिद्धार्थ
लेखक ऋषिकेश से हैं
By: divyahimachal

Rani Sahu
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