सम्पादकीय

विकास की ऊर्जा

Subhi
3 May 2022 5:01 AM GMT
विकास की ऊर्जा
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मौसम का पारा जैसे-जैसे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे बिजली संकट भी बढ़ता जा रहा है। प्रदेश कोयला आयात की मांग कर रहे हैं। प्रदेशों को कोयले के अभाव में बिजली उत्पादन में आ रही परेशानियों के बारे में एक ही बात कही जा सकती है

Written by जनसत्ता: मौसम का पारा जैसे-जैसे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे बिजली संकट भी बढ़ता जा रहा है। प्रदेश कोयला आयात की मांग कर रहे हैं। प्रदेशों को कोयले के अभाव में बिजली उत्पादन में आ रही परेशानियों के बारे में एक ही बात कही जा सकती है कि हम आज भी अपने देश की अपेक्षित ऊर्जा के एक बड़े भाग का उत्पादन कोयले पर आधारित थर्मल संयंत्रों से कर रहे हैं। हम सभी इस बात को अच्छी तरह से जानते है कि कोयला एक अनवीकरणीय प्राकृतिक स्रोत है, जिस पर निर्भरता लंबे समय तक नहीं चल सकती।

पूरा विश्व ऊर्जा संकट से जूझ रहा है। भारत एक ऐसा देश है, जहां पर सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में व्यापक संभावनाएं हैं, बस उन पर काम करने की जरूरत है। देश का अधिकांश भाग पूरे वर्ष भरपूर सौर ऊर्जा प्राप्त करता है। हमारे समुद्री क्षेत्रों में पवन वेग इतना रहता है कि सरलता से ऊर्जा का दोहन किया जा सकता है। ये दोनों ही ऊर्जा स्रोत हमारे देश के लिए वरदान सिद्ध हो सकते हैं, अगर हम मुफ्तखोरी की राजनीति को छोड़कर इन क्षेत्रों पर काम करें।

हमें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा जैसे प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों पर अन्वेषण और शोध को बढ़ावा देना होगा, ताकि इन स्रोतों से कम लागत पर अधिक ऊर्जा प्राप्त करने की विधियों को विकसित किया जा सके। सरकार को सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में ऊर्जा दोहन के लिए किए जाने वाले अन्वेषण और शोध के कार्यों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन और आर्थिक मदद देनी चाहिए।

जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, वैसे-वैसे ऊर्जा खपत में भी उतनी ही तेजी से वृद्धि होती है। प्रदेशों को इस अतिरिक्त ऊर्जा मांग की पूर्ति के लिए अतिरिक्त कोयले की आवश्यकता होती है, जिसे पूरा किया जाना मुश्किल हो जाता है। इस समय पर उन राजनीतिक दलों से प्रश्न किया जाना चाहिए जो मुफ्तखोरी की राजनीति के दम पर सत्ता हासिल कर देश की अर्थव्यवस्था के साथ खिलवाड़ करते हैं। इस काम में लगभग सभी मुख्य दल लगे हैं। अब इस कोयले अभाव के संकट में अगर कोयले का आयात किया भी जाता है तो भी नुकसान हमारा ही है। हमारी विदेशी मुद्रा के कोष में कमी आना स्वाभाविक है।

देश के नागरिकों को इस बात को अच्छी तरह से समझना होगा कि कोई भी राजनीतिक दल अपने पार्टी फंड से मुफ्त में बिजली और पानी नहीं देता, वे देश के ही प्राकृतिक संसाधनों और आम जनता के पैसे से ही ये मुफ्त की बिजली और पानी देने की घोषणाएं करते हैं। फिर इस मुफ्तखोरी का आम नागरिक को क्या लाभ है? टैक्स का पैसा तो आम आदमी की जेब से ही निकाला जाना तय है। मतदाता को जागना होगा, बजाय इसके लिए अपने पैर पर स्वयं कुल्हाड़ी मारा जाए।


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