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- राजद्रोह' खत्म करो
भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए की समीक्षा सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक पीठ करेगी। वह संविधान पीठ होगी या सामान्य पीठ सुनवाई करेगी, यह बाद में स्पष्ट होगा, लेकिन यह बेहद गंभीर पहल है। सुनवाई 5 मई से शुरू होगी। सर्वोच्च अदालत के सामने कुछ याचिकाएं हैं, जिनमें 1870 के इस उपनिवेशीय कानून को समाप्त करने की मांग की गई है। यह कानूनी धारा राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा साबित होती रही है। सरकार के खिलाफ कुछ शब्द लिखें, बोलें या कहें अथवा कोई सरकार-विरोधी आंदोलन छेड़ें, तो इस कानून के तहत 'देशद्रोही' करार दिया जा सकता है। यह संज्ञेय और गैर-जमानती धारा है। न जाने कितने लेखकों, विचारकों, समाज-सुधारकों, बौद्धिकों, कॉर्टूनिस्टों और राजनीतिक विरोधियों को 'राजद्रोह' के तहत जेल की सलाखों के पीछे धकेला जा चुका है! यहां तक कि तमिलनाडु में कूडनकलाम परमाणु प्लांट के खिलाफ आंदोलित हजारों ग्रामीणों पर 'राजद्रोह' की धारा 124-ए चस्पा कर दी गई थी। आज के स्वतंत्र, आधुनिक और विकसित भारत में यह औपनिवेशिक कानून फिजूल और एक हथियार मात्र है, जिसकी कोई गुंज़ाइश नहीं है। सरकार के खिलाफ कथित नफरत, अवमानना और असंतोष को भडक़ाने या फैलाने के लिए तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली