सम्पादकीय

अतिक्रमण और अदालत: आखिर अवैध कब्जे का यह सिलसिला कब तक चलेगा?

Gulabi Jagat
21 April 2022 11:17 AM GMT
अतिक्रमण और अदालत: आखिर अवैध कब्जे का यह सिलसिला कब तक चलेगा?
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देश की राजधानी में हिंसा की चपेट में आए इलाके जहांगीरपुरी
देश की राजधानी में हिंसा की चपेट में आए इलाके जहांगीरपुरी में अतिक्रमण हटाने की दिल्ली नगर निगम की कार्रवाई को लेकर जो विवाद पैदा हुआ, उसका समाधान जितनी जल्दी हो, उतना ही अच्छा। दिल्ली नगर निगम की इस कार्रवाई पर फौरी रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट को इस मामले का निपटारा करते हुए ऐसा कोई फैसला देना चाहिए, जो पूरे देश के लिए नजीर बने। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि देश के दूसरे हिस्सों में भी जब ऐसी कार्रवाई होती है, तब उसे लेकर विवाद पैदा होते हैं और कई बार उनके चलते न केवल यथास्थिति कायम रहती है, बल्कि सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे बढ़ते चले जाते हैं। अतिक्रमण एक राष्ट्रव्यापी समस्या है। दिल्ली समेत कई शहरों में तो सरकारी जमीनों पर कब्जे के चलते बसी अवैध बस्तियों को नियमित करने का भी सिलसिला चल निकला है। इस कारण इन शहरों में एक झुग्गी माफिया पैदा हो गया है, जो भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों से मिलकर अवैध कब्जे कराता है। आखिर यह सिलसिला कब तक चलेगा?
नि:संदेह अवैध कब्जे शहरों की सूरत बिगाड़ने के साथ अन्य कई तरह की समस्याएं पैदा करते हैं, लेकिन अतिक्रमण हटाने से ज्यादा जरूरी है, उसे होने न देना और यदि कहीं हो जाए तो सबसे पहले उसके लिए जिम्मेदार विभागों के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करना। यह ठीक नहीं कि जब कोई घटना घट जाए, तब नगर निकाय अथवा सरकारें अतिक्रमण हटाने की सुध लें। फिलहाल ऐसा ही हो रहा है। इस क्रम में अक्सर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई हड़बड़ी में अथवा तय प्रक्रिया की अनदेखी करके की जाती है। इससे न केवल वैसे सवाल उठते हैं, जैसे खरगोन या फिर दिल्ली में अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाने को लेकर उठे, बल्कि उजाड़े गए लोग अपना घर-बार खोकर अचानक सड़क पर भी आ जाते हैं।
नि:संदेह इसमें उनकी भी गलती होती है, उसमें नगर निकाय भी बराबर के भागीदार होते हैं। यह एक तथ्य है कि नगर निकायों की अनदेखी अथवा भ्रष्ट आचरण से अतिक्रमण और अवैध कब्जे होते हैं। सुप्रीम कोर्ट को जहां अवैध कब्जों के खिलाफ सख्ती दिखानी होगी, वहीं मानवीय दृष्टिकोण भी अपनाना होगा, लेकिन ऐसा करते हुए ऐसा कुछ करने से बचना होगा, जिससे अतिक्रमण करने-कराने अथवा अपनी राजनीति चमकाने वालों को बल मिले। यह अपेक्षा इसलिए, क्योंकि दिल्ली में शाहीन बाग धरने एवं कृषि कानून विरोधी प्रदर्शन के समय रास्तों को बाधित करना एक तरह का अवैध कब्जा ही था और सब जानते हैं कि लाखों लोगों की नाक में दम करने वाले इस अतिक्रमण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नहीं किया।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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